एन. के. सिंह का ब्लॉगः न्याय व्यवस्था पर विश्वास डगमगाना चिंताजनक

By एनके सिंह | Published: December 11, 2019 09:53 AM2019-12-11T09:53:57+5:302019-12-11T09:53:57+5:30

सत्ता में बैठे लोगों को सोचना होगा कि पुलिस का ‘फौरी न्याय’ और जनता का ‘भीड़ न्याय’ जब अपने शबाब पर आएगा तो उसकी चपेट में ये लोग भी आ सकते हैं.

hyderabad encounter rap murder: Worrying to trust justice system, police, telangana | एन. के. सिंह का ब्लॉगः न्याय व्यवस्था पर विश्वास डगमगाना चिंताजनक

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देश फिर बंट गया. एक भारत खुश है तो दूसरा आशंकित. दोनों में से कोई यह नहीं सोच पा रहा है कि समस्या की जड़ कहां है. और अगर जड़ से निदान न हुआ तो कल कोई पुलिसवाला फिर ‘आत्म-रक्षा’ में किसी को भी मार देगा. यह नहीं हुआ तो कोई भीड़ किसी और की शक के आधार पर  पीट-पीट कर हत्या करती रहेगी. 

सत्ता में बैठे लोगों को सोचना होगा कि पुलिस का ‘फौरी न्याय’ और जनता का ‘भीड़ न्याय’ जब अपने शबाब पर आएगा तो उसकी चपेट में ये लोग भी आ सकते हैं. दुनिया का इतिहास गवाह है कि सिस्टम पर भरोसा उठने के कारण इस तरह की सामाजिक मानसिकता कैसे संविधान, प्रजातंत्न और कानून का शासन रातों-रात बदल देती है. 

अच्छा लगता है सुनकर कि जनता इतनी चैतन्य है और उसकी सामूहिक सोच इतनी बदली है. अब वह इस बात से खुश है कि हैदराबाद पुलिस ने महिला पशु-चिकित्सक के बलात्कार और फिर हत्या के चारों आरोपियों को 192 घंटों के भीतर कोर्ट से रिमांड पर लेकर ठीक उसी जगह, जहां घटना हुई थी (यानी सुनसान जगह पर), अल-सुबह अपने ‘सेल्फ डिफेन्स’ में उन पर गोली चलाकर मार दिया. 

रंगारेड्डी जिले के लोगों को जब पता चला तो उन्होंने पुलिस पर फूल बरसाए, महिलाओं ने राखी बांधी और देश के लोगों ने ही नहीं, संसद में कई महिला सांसदों ने भी उन्हें बधाई दी. पीड़िता के मां-बाप ने पुलिस को धन्यवाद दिया और कहा कि ‘मेरी बेटी की आत्मा को शायद अब शांति मिलेगी.’ जनता भी खुश है इस ‘फौरी न्याय’ से. 

खैर यह तो पुलिस ने अंधेरे में ‘आत्म-रक्षा’ में किया लेकिन यह वही जनता है जो कभी गाय की तस्करी या बच्चा चोरी के शक में अक्सर स्वयं ही ‘भीड़ न्याय’ कर ‘समस्या का निदान’ कर देती है.    चिंता इस बात की नहीं है कि पुलिस ने फौरी न्याय देकर देश की सामूहिक चेतना को उद्वेलित करने वाली घटना का अंत किया. चिंता यह है कि लोगों का विश्वास देश की संविधान-प्रदत्त न्याय व्यवस्था से किस कदर उठ गया है. गौ-तस्करी या बच्चा चोरी की शक में पकड़े जाने वाले लोगों को जनता इस सिस्टम को नहीं सौंपती बल्कि उसे खुद ही ‘निपटा’ देती है. ऐसा करते वक्त उसे इसी न्याय व्यवस्था की पहली कड़ी, पुलिस, की मंशा और ईमानदारी पर पूरा शक रहता है कि थाना इसे ‘ले-दे कर’ छोड़ देगा.

इससे बड़ी आपराधिक उदासीनता राज्य की सरकारों की है जिनमें अधिकांश ने केंद्र द्वारा ‘महिला सुरक्षा’ के मद में भेजे गए पैसे का एक पैसा भी खर्च नहीं किया. लिहाजा अगर जनता ‘भीड़ न्याय’ कर रही है और पुलिस के ‘फौरी न्याय’ पर फूल बरसा रही है तो उसकी गलती तो नहीं है लेकिन खतरा बड़ा है.

Web Title: hyderabad encounter rap murder: Worrying to trust justice system, police, telangana

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