नेबरहुड फर्स्ट नीति कितनी सफल?
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: September 1, 2018 05:01 AM2018-09-01T05:01:06+5:302018-09-01T05:01:06+5:30
प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने नेपाल में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में भारत को ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ और ‘एक्ट ईस्ट नीति’ की धुरी बताया और इस क्षेत्न को एक-दूसरे से संपर्क मार्ग से जोड़ने का आह्वान किया
शोभना जैन
प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ने नेपाल में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में भारत को ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ और ‘एक्ट ईस्ट नीति’ की धुरी बताया और इस क्षेत्न को एक-दूसरे से संपर्क मार्ग से जोड़ने का आह्वान किया ताकि क्षेत्न मिलकर आर्थिक तकनीकी विकास कर सके, आतंकवाद और अन्य समस्याओं से मिलकर निबट सके। इसी क्रम में जरा याद कीजिए चार साल पहले, 26 मई 2014 का दिन, यानी मोदी सरकार का शपथ ग्रहण समारोह। गर्मजोशी भरा माहौल। एक नई शुरुआत की आहट वाला जोश। नवनिर्वाचित प्रधानमंत्नी मोदी ने उस शपथ ग्रहण समारोह के लिए विशेष तौर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्नी नवाज शरीफ सहित दक्षेस के सभी आठ देशों के राष्ट्राध्यक्षों/ शासनाध्यक्षों के नेताओं को आमंत्रित किया। मोदी ने क्षेत्न के साथ भाईचारा बढ़ाने के लिए इन सभी को खासतौर पर न्यौता दिया था। लग रहा था कि नवनिर्वाचित मोदी सरकार की पड़ोस को पहली प्राथमिकता (नेबरहुड फर्स्ट) देने की नीति की वजह से भारत के आसपड़ोस के साथ रिश्तों के एक नए दौर की शुरुआत होगी, पड़ोसी देशों के साथ नजदीकियां और बढ़ेंगी। इसी क्रम में प्रधानमंत्नी ने अपनी पहली विदेश यात्ना के लिए भूटान को चुना और एक माह बाद ही जून 2014 में भूटान की यात्ना की। वैसे मालदीव को छोड़ मोदी ने कार्यकाल के चार साल में आपसी समझबूझ और सहयोग बढ़ाने के लिए इन सभी देशों की यात्नाएं कीं। लेकिन चार साल बाद अगर इस नीति का लेखाजोखा लें तो यह सवाल हवा में तैरता है कि आखिर यह नीति कितनी सफल रही? आखिर हमारा आसपड़ोस कितना नजदीक आया, यह क्षेत्न भारत से कितना और जुड़ पाया? मोदी के शक्तिशाली, निजी संबंध बनाने की शैली वाली विदेश नीति की वजह से पिछले चार वर्षो में दुनिया के अनेक देशों में हमारी पहचान बनी, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी एक पहचान बनी, लेकिन एक सच यह भी है कि इस सबमें हमारा पास-पड़ोस विशेषत: कुछ पड़ोसी दूर चले गए।
पाकिस्तान की तो बात छोड़ ही दें, लेकिन ‘रोटी-बेटी’ के रिश्तों वाले नेपाल के साथ भी तीन वर्ष पूर्व रिश्ते डगमगाए जिन्हें पटरी पर लाने के प्रयास अब भी जारी हैं। चीन के प्रभाव में आकर मालदीव तो लगातार आंखें तरेर रहा है, सेशल्स जैसे परंपरागत मित्न देशों के साथ नजदीकियां नहीं रहीं जैसी कि रहा करती थीं। चीन ने इस क्षेत्न में तेजी से अपना प्रभाव बढ़ाया है और नेपाल, मालदीव और सेशल्स, श्रीलंका आदि पड़ोसी देशों में बड़े पैमाने पर आर्थिक निवेश किया, जिससे उनका आर्थिक विकास हुआ। नेपाल जैसा देश जिसे आधारभूत ढांचा विकसित करने की बहुत जरूरत है, वहां इस क्षेत्न में काम किया। निश्चित तौर पर इसके सामरिक मायने खासे अहम हैं। हिंद महासागर क्षेत्न में बसा मालदीव जैसा सामरिक महत्व वाला देश दूर ही नहीं गया बल्कितल्खियां भी आईं। इसी क्षेत्न में अहम पड़ोसी सेशल्स से भी दूरियां बनीं। निश्चित तौर भूटान जो इस क्षेत्न में भारत का भरोसेमंद दोस्त रहा है, अब चीन उसे भी इसी अर्थशास्त्न के जरिए घेरने की कोशिश कर रहा है। दरअसल, भारत के सभी पड़ोसी मित्न देशों में भूटान ही ऐसा देश रहा है जिसने भारत की असहमति का सम्मान करते हुए चीन की महत्वाकांक्षी ‘वन बेल्ट वन रोड परियोजना’ पर हस्ताक्षर नहीं किए क्योंकि भारत का कहना है कि यह परियोजना पाक अधिकृत कश्मीर से होकर गुजरती है जो कि भारत की संप्रभुता को सरासर चुनौती है। दरअसल, इस परियोजना के जरिए वह इस क्षेत्न में आधारभूत ढांचा फैलाना चाहता है। वह इन देशों में आधारभूत ढांचे का विकास करने की दलील दे रहा है लेकिन निश्चय ही इससे चीन का इस क्षेत्न में दबदबा बनेगा और उसके हित सधेंगे। चीन के बढ़ते वर्चस्व से इस क्षेत्न में दोस्तियों के समीकरण बदल रहे हैं। बिम्सटेक बैठक नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार, भूटान, थाईलैंड जैसे देशों के साथ कनेक्टिविटी बढ़ाने और आर्थिक तकनीकी सहयोग बढ़ाने और भरोसा कायम करने का ही प्रयास है।
निश्चय ही सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि दुनिया भर से रिश्ते जोड़ने और बेहतर बनाने की मुहिम में पड़ोस पीछे नहीं छूट जाए। भारत को इस क्षेत्न में आधारभूत परियोजनाएं समय से पूरी करनी चाहिए क्योंकि विकास की तरफ बढ़ते हुए कनेक्टिविटी सबसे अहम है। चीन के आक्रामक तेवर की तुलना में क्षेत्न में भारत की छवि भरोसेमंद दोस्त, लोकतांत्रिक मित्न देश की है।
किसी भी देश की प्रगति और विकास में क्षेत्नीय शांति और सुरक्षा अहम तौर पर जुड़े रहते हैं। निश्चित तौर पर भारत को अपनी ‘नेबरहुड फर्स्ट नीति’ अपनी इसी सकारात्मकता से खासतौर पर पुराने मित्न देशों पर अधिक ध्यान देने और सावधानीपूर्ण तरीके से आगे बढ़ने के आधार पर आगे बढ़ानी होगी।