फहीम खान का ब्लॉग : नक्सलियों के बहाने रोजगार का विरोध कब तक चलता रहेगा?
By फहीम ख़ान | Published: June 5, 2021 12:56 PM2021-06-05T12:56:56+5:302021-06-05T13:03:58+5:30
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में स्थानीय पुलिस और उसकी कमांडो फोर्स (सी-60) ने नक्सलियों की कमर तोड़ रखी है.
यह सभी भली भांति जानते हैं कि नक्सली जंगल के इलाकों पर अपना अधिराज्य मानते हैं इसलिए वह नहीं चाहते कि उनकी मर्जी के बिना जंगल में कोई उद्योग शुरू हो. नक्सलियों ने हमेशा उद्योगों के खिलाफ रुख अपनाया है, ऐसा दिखाई देता रहा है. लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है. यदि नक्सली संगठन उद्योगों के खिलाफ ही होते तो उनके सबसे ज्यादा प्रभाव क्षेत्र माने जानेवाले छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार में उन्हीं के प्रभाव क्षेत्र में धड़ल्ले से उद्योग चल रहे नहीं होते.
महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में स्थानीय पुलिस और उसकी कमांडो फोर्स (सी-60) ने नक्सलियों की कमर तोड़ रखी है. यहां आलम यह है कि नक्सलियों को खुद की जान बचाते हुए यहां -वहां भागना पड़ रहा है. जंगल में अपनी जान बचाते छिप रहे नक्सली किसी उद्योग का विरोध करते है या नहीं इससे क्या फर्क पड़ता है? क्योंकि जिन नक्सलियों ने अबतक एक व्यक्ति को भी रोजगार नहीं दिलाया उनके विरोध के मायने ही क्या है.
हाल में नक्सलियों के नाम से एक फर्जी पत्र महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में जारी हुआ. जिसमें यह कहा गया कि गौण खनिज के उत्खनन से पर्यावरण को हानि पहुंच रही है इसलिए सुरजागढ़ में गौण खनिज उत्खनन कार्य के लिए कोई मजदूर ना जाए. इस पत्र के माध्यम से ऐसा दर्शाया गया कि नक्सलियों की दहशत की वजह से ग्रामीण इस परियोजना में शामिल नहीं होने जा रहे हैं. लेकिन सबसे पहले यह जान ले कि जो पत्र नक्सलियों के नाम से जारी हुआ है वह पूरी तरह से फर्जी है और जिस किसी ने उसे जारी किया है उसका साफ मकसद यह है कि सुरजागढ़ की पहाड़ी पर गौण खनिज का उत्खनन ना किया जाए और इस माध्यम से गढ़चिरौली जिले में जो रोजगार शुरू होने जा रहा है वह ना हो पाए.
3000 लोगों को मिलेगा रोजगार
असल में कुछ स्थानीय लोग खुद को नेता बता कर अपनी राजनीति चमकाने के लिए इस तरह की परियोजनाओं का इसलिए विरोध करते रहे हैं कि इसके पीछे उनके अपने निजी हित कुछ और होते हैं. सुरजागढ़ की पहाड़ी पर यदि यह उत्खनन होता है तो इसी वर्ष गढ़चिरौली जिले में करीबन एक हजार लोगों को रोजगार मिलेगा ऐसा दावा त्रिवेणी अर्थ मूवर्स कंपनी के अधिकारी कर रहे हैं. इन अधिकारियों का यह भी कहना है कि यहां पर 2 वर्षों के भीतर 3000 से ज्यादा लोगों को रोजगार मुहैया कराया जाएगा। यदि विरोध होता रहा तो फिर एक बार यह रोजगार पैदा होने से पहले ही खत्म भी हो सकते है. अधिकारियों का यह कहना है कि कंपनी वाकई में स्थानीय लोगों को रोजगार देकर यहां उत्खनन करना चाहती है.
रोजगार ही दिला सकता है नक्सलियों से मुक्ति
उधर पुलिस अधिकारियों का यह कहना है कि अभी गढ़चिरौली जिले में स्थानीय युवाओं को नक्सलियों के बहकावे में आने से बचाना है तो यहां पर रोजगार दिलाने की बहुत जरूरत है. अगर स्थानीय स्तर पर रोजगार मिलने लगे तो अपने आप नक्सली संगठनों को मिलने वाला सहयोग कम हो जाएगा. आज गढ़चिरौली जिले में नक्सलियों का संगठन पूरी तरह कमजोर हो चुका है. यह सही मौका है जब सरकार, प्रशासन और कारपोरेट मिलकर यहां पर रोजगार के अवसर बढ़ाए। यदि ऐसा संभव होता है तो भविष्य में नक्सलियों को स्थानीय युवाओं का सहयोग कभी नहीं मिलेगा। उनका संगठन इतना कमजोर हो जाएगा कि गढ़चिरौली जिले को लंबे अरसे बाद नक्सलवाद की समस्या से छुटकारा मिल सकता है. इसके लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध होना बेहद जरूरी है.
नक्सलियों ने कितनो को दिया रोजगार?
गढ़चिरोली जिले में स्थानीय युवाओं को रोजगार दिलाने के लिए प्रयासरत विभिन्न सामाजिक संगठनों के पदाधिकारी यह मानते हैं कि नक्सलियों के नाम का दुरुपयोग कर स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होने वाले रोजगार का विरोध नहीं होना चाहिए. उनका यह कहना है कि लंबे समय से सुरजागढ़ की पहाड़ी पर गौण खनिज उत्खनन करने का विरोध होता रहा. लम्बे अरसे पहले जमशेदजी टाटा यहां उद्योग लगाने से चूक गए और इसके बाद लगातार चंद लोगों के विरोध के चलते कोई कंपनी यहां उद्योग लगाना नहीं चाहती। कुछ वर्ष पूर्व सुरजागढ़ स्टील एंड माइंस कंपनी ने यह कोशिश की थी लेकिन विरोध के चलते उसे भी निराश होकर लौटना पड़ा। यदि यह सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो इस इलाके में कभी रोजगार उपलब्ध नहीं हो सकेंगे। इतने वर्षों से नक्सलियों के नाम पर सुरजागढ़ परियोजना का विरोध हो रहा है लेकिन कोई यह भी बताएं कि विरोध करने वालों ने जिले में कितने लोगों को रोजगार मुहैया कराया है? ऐसा सवाल अब सामाजिक संगठनों द्वारा भी पूछा जा रहा है.
हमेशा विरोध ने ही बिगाड़ा काम
असल में प्रशासन की ओर से सुरजागढ़ पहाड़ी पर उत्खनन करा कर स्थानीय स्तर पर रोजगार के द्वार खोलने की कोशिश हर बार हुई है लेकिन चंद विरोधियों के चलते हमेशा यह कार्य बीच में ही बंद हो जाता है. जबकि सभी यह भलीभांति जानते है कि सुरजागढ़ के रास्ते ही गढ़चिरोली जिले में रोजगार के द्वार खुल सकते है. अबकी बार अगर किसी कंपनी ने आगे आकर काम शुरू किया है तो इसे सकारात्मक दृष्टिकोण से सहयोग करने की जरूरत है क्योंकि बार-बार विरोध को देखकर भविष्य में कोई भी कंपनी यहां रोजगार दिलाने के लिए आना नहीं चाहेगी.
रोजगार के साथ स्थानीय लोगो के विकास में हाथ भी बंटाए कंपनी
इसी के साथ गडचिरोली जिले की एटापल्ली तहसील के सुरजागढ़ में गौण खनिज का उत्खनन और इस पर प्रक्रिया के लिए उद्योग लगनेवाली सम्बंधित कंपनी ने भी स्थानीय युवाओ को रोजगार दिलाने के साथ ही ग्रामीण और गाँवों के विकास, आदिवासियों के सर्वांगीण विकास में भी हाथ बांटना जरुरी है. यदि सम्बंधित कंपनी जिले के सुदूर इलाको में स्वास्थ्य, बिजली, रोड, पानी जैसी बुनियादी समस्याओ को भी दूर करने में सहयोग प्रदान करें तो रोजगार के साथ ही इन इलाको की बुनियादी समस्याओ का भी निराकरण किया जा सकेगा. लेकिन अब समय आ गया है जब यह फैसला करना पडेगा कि रोजगार का विरोध करनेवाले नक्सलियों को आखिर कितनी तवज्जो दी जानी चाहिए?