वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: इटावा के सच्चे हिंदी प्रेमी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: December 9, 2018 08:17 AM2018-12-09T08:17:43+5:302018-12-09T08:17:43+5:30
'हिंदी सेवा निधि के इस भव्य कार्यक्रम में उपस्थित सैकड़ों लोगों से मैंने आग्रह किया कि वे अपने हस्ताक्षर अंग्रेजी में करना बंद करें।'
आज मैं इटावा में हूं। उत्तर प्रदेश के इस शहर से मुङो बहुत प्रेम है, क्योंकि यही वह शहर है, जिसके दो स्वतंत्नता सेनानियों ने आज से 50-52 साल पहले मेरी बहुत मदद की थी। वे थे स्वर्गीय कमांडर अर्जुनसिंह भदौरिया और उनकी धर्मपत्नी सरला भदौरिया। ये दोनों उस समय सांसद थे। जब अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का पी।एचडी। का शोधग्रंथ हिंदी में लिखने की मांग करने के कारण मुङो स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से निकाल दिया गया था तो संसद में जबर्दस्त हंगामा हुआ। तब भदौरिया-दंपति ने मुङो अपने घर, 216 नार्थ एवेन्यू में शरण दी। उन्होंने मुङो अपनी संतान से भी अधिक प्रेम और सम्मान दिया।
इटावा मैं आया हूं, हिंदी सेवा निधि के वार्षिक कार्यक्रम में। इस निधि की स्थापना न्यायमूर्ति प्रेमशंकर गुप्त ने 26 साल पहले की थी। वे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जज थे। वे ऐसे जज थे, जो अपने फैसले हिंदी में करते थे। निधि के समारोहों में अक्सर कई राज्यपाल, कई मुख्य न्यायाधीश, कई मुख्यमंत्नी, कई विद्वान, कई साहित्यकार आते रहते हैं। इस बार भी मंच ऐसे ही लोगों से सुशोभित हुआ है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त जज सुधीर अग्रवाल मेरे पास बैठे थे। इन्होंने अयोध्या के राम मंदिर पर भी फैसला दिया था। उन्होंने मेरे एक सुझाव को न्यायिक जामा पहनाया था। सारे मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और सरकारी कर्मचारियों और उनके परिजनों की शिक्षा और चिकित्सा सरकारी पाठशालाओं और सरकारी अस्पतालों में ही हो, ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुधीरजी ने दिया था।
आज मैंने उ।प्र। विधानसभा के अध्यक्ष पं। हृदयनारायण दीक्षित और उ।प्र। के मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर से निवेदन किया कि वे इस फैसले को लागू करवाएं। हिंदी सेवा निधि के इस भव्य कार्यक्रम में उपस्थित सैकड़ों लोगों से मैंने आग्रह किया कि वे अपने हस्ताक्षर अंग्रेजी में करना बंद करें। लगभग सभी श्रोताओं ने हाथ उठाकर संकल्प किया कि वे अब अपने हस्ताक्षर हिंदी में ही करेंगे। भारत में हिंदी को राजभाषा बनाने की दिशा में यह पहला कदम है।