विकास के नाम पर मनमानी छेड़छाड़ से दरकते हिमालय के पहाड़, उत्तराखंड का 22 फीसदी हिस्सा भूस्खलन को लेकर गंभीर

By पंकज चतुर्वेदी | Updated: October 6, 2025 05:42 IST2025-10-06T05:42:16+5:302025-10-06T05:42:16+5:30

डॉ. मुरली मनोहर जोशी, डॉ. कर्ण सिंह, शेखर पाठक, के. गोविंदाचार्य, रामचन्द्र गुहा सहित 57 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर अपने सितंबर-2022 के उस निर्णय को बदलने का अनुरोध किया है जिसमें चार धाम के लिए चौड़ी सड़क बनाने पर अदालत ने मंजूरी दी थी.

Himalayan mountains crumbling due arbitrary interference in name development 22% of Uttarakhand risk landslides blog Pankaj Chaturvedi | विकास के नाम पर मनमानी छेड़छाड़ से दरकते हिमालय के पहाड़, उत्तराखंड का 22 फीसदी हिस्सा भूस्खलन को लेकर गंभीर

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Highlights32 प्रतिशत मध्यम और 46 प्रतिशत निम्न खतरे में आ रहा है.भूस्खलन के चलते तीन हजार करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है.2023 में यह संख्या पांच गुना बढ़कर 1100 पर पहुंच गई.  

इस बार की बरसात उत्तराखंड  में भूस्खलन से तबाही की नई इबारत लिख गई और चेतावनी भी दर्ज कर गई कि राज्य में पहाड़ गिरने का खतरा अब पूरे साल, हर मौसम में बना हुआ है. इस साल के तीन महीने में 1000 से अधिक भूस्खलन दर्ज किए गए हैं, जिनमें 260 से अधिक लोगों की जान गई है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की हालिया लैंडस्लाइड एटलस ऑफ इंडिया रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जनपद भूस्खलन के लिहाज से देश का सबसे संवेदनशील जिला बन गया है. पिछले  दिनों डॉ. मुरली मनोहर जोशी, डॉ. कर्ण सिंह, शेखर पाठक, के. गोविंदाचार्य, रामचन्द्र गुहा सहित 57 लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिख कर अपने सितंबर-2022 के उस निर्णय को बदलने का अनुरोध किया है जिसमें चार धाम के लिए चौड़ी सड़क बनाने पर अदालत ने मंजूरी दी थी.

इस बीच भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण ( जीएसआई ) की ताजा रिपोर्ट ने  उत्तराखंड के पहाड़ों पर रहने वालों की चिंताएं और बढ़ा दी हैं जिसमें बताया गया  है कि राज्य का 22 फीसदी हिस्सा भूस्खलन को लेकर गंभीर, जबकि  32 प्रतिशत मध्यम और 46 प्रतिशत निम्न खतरे में आ रहा है. इस मानसून में राज्य को भूस्खलन के चलते तीन हजार करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है.

जीएसआई ने साफ लिखा है कि आल वेदर रोड, हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट और बेतहाशा निर्माण के चलते पहाड़ों पर खतरा और बढ़ गया है. इसरो के डाटा के अनुसार 1988 से 2023 के बीच उत्तराखंड में भूस्खलन की 12,319 घटनाएं हुईं. सन्‌ 2018 में प्रदेश में भूस्खलन की 216 घटनाएं हुई थीं जबकि 2023 में यह संख्या पांच गुना बढ़कर 1100 पर पहुंच गई.  

2022 की तुलना में भी 2023 में साढ़े चार गुना की वृद्धि भूस्खलन की घटनाओं में देखी गई है. पिछले साल भूस्खलन की 2946 घटनाएं दर्ज की गईं जिनमें 67 लोगों की मौत हुई थी. उत्तराखंड सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग और  विश्व  बैंक ने सन्‌ 2018 में एक अध्ययन करवाया था जिसके अनुसार छोटे से उत्तराखंड में 6300 से अधिक स्थान भूस्खलन जोन के रूप में चिन्हित किए गए.

रिपोर्ट कहती है कि राज्य में चल रही हजारों करोड़ की विकास परियोजनाएं पहाड़ों को काट कर या जंगल उजाड़ कर ही बन रही हैं और इसी से भूस्खलन जोन की संख्या में इजाफा हो रहा है. दुनिया के सबसे युवा और जिंदा पहाड़ कहलाने वाले हिमालय के पर्यावरणीय छेड़छाड़ से उपजी सन्‌ 2013 की केदारनाथ त्रासदी को भुला कर उसकी हरियाली उजाड़ने की कई परियोजनाएं उत्तराखंड राज्य के भविष्य के लिए खतरा बनी हुई हैं.  उत्तराखंड में बन रही पक्की सड़कों के लिए 356 किमी के वन क्षेत्र में कथित रूप से 25 हजार पेड़ काट डाले गए.

मामला एनजीटी में भी गया लेकिन तब तक पेड़ काटे जा चुके थे. यही नहीं, सड़कों का संजाल पर्यावरणीय लिहाज से संवेदनशील उत्तरकाशी की भागीरथी घाटी से भी गुजर रहा है. उत्तराखंड के चार प्रमुख धामों को जोड़ने वाली सड़क परियोजना में 15 बड़े पुल, 101 छोटे पुल, 3596 पुलिया, 12 बाइपास सड़कों का काम जारी है. ऋषिकेश से कर्णप्रयाग तक रेलमार्ग परियोजना भी स्वीकृति हो चुकी है, जिसमें न सिर्फ बड़े पैमाने पर जंगल कटेंगे, बल्कि वन्य जीवन भी प्रभावित होगा, पहाड़ों को काटकर सुरंगें और पुल बनाए जाएंगे.  

Web Title: Himalayan mountains crumbling due arbitrary interference in name development 22% of Uttarakhand risk landslides blog Pankaj Chaturvedi

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