ब्लॉगः भूजल दोहन से सूखती जा रही धरती की कोख

By पंकज चतुर्वेदी | Published: August 30, 2022 02:40 PM2022-08-30T14:40:05+5:302022-08-30T14:40:28+5:30

यह हमारे लिए चिंता की बात है कि देश के एक-चौथाई हिस्से पर आने वाले सौ साल में मरुस्थल बनने का खतरा आसन्न है। अंधाधुंध सिंचाई व जमकर फसल लेने के दुष्परिणाम की बानगी पंजाब है, जहां दो लाख हेक्टेयर जमीन देखते ही देखते बंजर हो गई।

haryana west up agrriculutre Earth's womb is drying up due to groundwater exploitation | ब्लॉगः भूजल दोहन से सूखती जा रही धरती की कोख

ब्लॉगः भूजल दोहन से सूखती जा रही धरती की कोख

पंजाब में इस बार जून में तो बरसात हुई नहीं और जुलाई में जैसे ही झड़ी लगी, रोप लगने लगे। मानसून आने में देर हुई तो जिन इलाकों की रोजी-रोटी ही खेती से चलती हो, वह बुआई-रोपाई में देर कर नहीं सकते, वरना अगली फसल के लिए विलंब हो जाएगा। कोई साढ़े बारह लाख ट्यूबवेल पिछले एक महीने से दिन-रात धरती की अनंत गहराइयों में बचे चुल्लू भर पानी को उलीचते रहे। वैसे इस साल पूरे देश में धान का रकबा पिछले साल की तुलना में 13.39 फीसदी कम रहा है लेकिन पंजाब में पिछले साल के 30.66 लाख हेक्टेयर की तुलना में इस बार भी तीस लाख हेक्टेयर से कम नहीं है धान का रकबा।

बेहिसाब धान की खेती ने धरा की कोख को न केवल सूखा कर दिया बल्कि उसके आंचल की उत्पादकता भी चूक रही है। यही नहीं, ठंड शुरू होते ही दिल्ली एनसीआर में जिस दमघोंटू स्मॉग और उसके कारक पराली जलाने की चर्चा होती है, उसका भी मूल कारण धान की खेती व उसकी बुआई में देरी है। खेती-किसानी भारत की अर्थव्यवस्था का सुदृढ़ आधार है और इस पर ज्यादा पानी खर्च होना लाजिमी है, लेकिन हमें यदि खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करना है तो जल सुरक्षा की बात भी करनी होगी। दक्षिणी या पूर्वी भारत में अच्छी बरसात होती है वहां खेत में बरसात का पानी भरा जा सकता है, सो पारंपरिक रूप से वहीं धान की खेती होती थी और वहीं के लोगों का मूल भोजन चावल था। पंजाब-हरियाणा आदि इलाकों में नदियों का जाल रहा है, वहां की जमीन में नमी रहती थी, सो चना, गेहूं, राजमा जैसी फसल यहां होती थी।

दुर्भाग्य है कि देश की कृषि नीति ने महज अधिक लाभ कमाने का सपना दिखाया और ऐसे स्थानों पर भी धान की अंधाधुंध खेती शुरू हो गई जहां उसके लायक पानी उपलब्ध नहीं था। परिणाम सामने हैं कि हरियाणा-पंजाब जैसे राज्यों का अधिकांश हिस्सा भूजल के मामले में ‘डार्क जोन’ में बदल गया है और हालात ऐसे हैं कि जमीन के सूखने के चलते अब रेगिस्तान की आहट उस तरफ बढ़ रही है। बात पंजाब की हो या फिर हरियाणा या गंगा-यमुना के दोआब के बीच बसे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की, सदियों से यहां के समाज के भोजन में कभी चावल था ही नहीं, सो उसकी पैदावार भी यहां नहीं होती थी। हरित क्रांति के नाम पर कतिपय रासायनिक खाद-दवा और बीज की तिजारत करने वाली कंपनियों ने बस जल की उपलब्धता देखी और वहां ऐसी फसलों को प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया जिसने वहां की जमीन बंजर की, भूजल सहित पानी के स्रोत खाली कर दिए, खेती में इस्तेमाल रसायनों से आसपास के नदी-तालाब व भूजल को दूषित कर दिया। हालात ऐसे हो गए कि पेयजल का संकट भयंकर हो गया।

पंजाब मृदा संरक्षण और केंद्रीय भूजल स्तर बोर्ड के एक संयुक्त सैटेलाइट सर्वे में यह बात उभर कर आई कि यदि राज्य ने इसी गति से भूजल दोहन जारी रखा तो आने वाले 18 साल में केवल पांच फीसदी क्षेत्र में ही भूजल बचेगा। सन 1985 में पंजाब के 85 फीसदी हिस्से की कोख में लबालब पानी था। सन्‌ 2018 तक इसके 45 फीसदी में बहुत कम और छह फीसदी में लगभग खत्म के हालात बन गए हैं। आज वहां 300 से एक हजार फुट गहराई पर नलकूप खोदे जा रहे हैं। जाहिर है कि जितनी गहराई से पानी लेंगे उतनी ही बिजली की खपत बढ़ेगी।

बिजली, जल के बाद धान वाले इलाकों में रेगिस्तान की आहट का संकेत इसरो के एक अध्ययन में सामने आया है। शोध कहता है कि भारत की कुल 328.73 मिलियन जमीन में से 105.19 मिलियन जमीन पर बंजर ने अपना डेरा जमा लिया है, जबकि 82.18 मिलियन हेक्टेयर जमीन रेगिस्तान में बदल रही है। यह हमारे लिए चिंता की बात है कि देश के एक-चौथाई हिस्से पर आने वाले सौ साल में मरुस्थल बनने का खतरा आसन्न है। अंधाधुंध सिंचाई व जमकर फसल लेने के दुष्परिणाम की बानगी पंजाब है, जहां दो लाख हेक्टेयर जमीन देखते ही देखते बंजर हो गई। बठिंडा, मानसा, मोगा, फिरोजपुर, मुक्तसर, फरीदकोट आदि में जमीन में रेडियो एक्टिव तत्व की मात्रा सीमा तोड़ चुकी है और यही रेगिस्तान की आमद का संकेत है।

 भारत सरकार के बफर स्टॉक में धान पर्याप्त मात्रा में है और अब केवल लोकप्रियता के चलते ही राज्य सरकारें अंधाधुंध धान खरीदती हैं और औसतन हर साल खरीदे गए धान का दस फीसदी तक बगैर उचित भंडारण के नष्ट हो जाता है। जान लें यह केवल धान ही नहीं नष्ट होता, बल्कि उसको उगाने में व्यय पानी भी व्यर्थ चला जाता है।

Web Title: haryana west up agrriculutre Earth's womb is drying up due to groundwater exploitation

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