Blog: भारत में पेट्रोल-डीजल हो सकता है उम्मीद से भी ज्यादा सस्ता, सऊदी अरब ने तेल की कीमतों में की 25 प्रतिशत की ऐतिहासिक कटौती

By डॉ शैलेंद्र देवलानकर | Published: March 18, 2020 02:57 PM2020-03-18T14:57:16+5:302020-03-18T15:42:17+5:30

सऊदी अरब ने तेल की कीमतों को 25 प्रतिशत घटाया है, और साथ ही भविष्य में तेल उत्पादन बढ़ाने और कीमतें कम करने की भी घोषणा की है। तेल की कीमतों में गिरावट अपने लिए अच्छी है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 5-6 रुपयों की कमी आ सकती है।

Gulf region oil war can result benefit to India petrol diesel price will be cheaper | Blog: भारत में पेट्रोल-डीजल हो सकता है उम्मीद से भी ज्यादा सस्ता, सऊदी अरब ने तेल की कीमतों में की 25 प्रतिशत की ऐतिहासिक कटौती

सऊदी अरब ने तेल की कीमतों को 25 प्रतिशत घटाया है

Highlightsवैश्विक कच्चे तेल के बाजार में अपनी संप्रभुता स्थापित करने के लिए चल रहा संघर्षसऊदी अरब ने तेल की कीमतों को 25 प्रतिशत घटाया है, और साथ ही भविष्य में तेल उत्पादन बढ़ाने और कीमतें कम करने की भी घोषणा की है1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान इराक द्वारा कुवैत पर हमला करने के बाद वैश्विक बाजार में तेल की कीमत में भारी गिरावट आई थी

वैश्विक कच्चे तेल के बाजार में अपनी संप्रभुता स्थापित करने के लिए चल रहा संघर्ष वर्तमान में अपनी चरम सीमा पर गया है। तेल उत्पादक देशों द्वारा कितने तेल का उत्पादन लिया जाए, इसे लेकर ओपेक और रूस के बीच की चर्चा फीकी हुई है। इसलिए, रूस ने ओपेक राष्ट्रों को टक्कर देने के लिए तेल उत्पादन बढ़ाने का फैसला किया है। ऐसे मे वैश्विक तेल बाजार में रूस की हिस्सेदारी बढ़ जाएगी, इसे ध्यान मे रखते हुए सऊदी अरब ने तेल की कीमतों को 25 प्रतिशत घटाया है, और साथ ही भविष्य में तेल उत्पादन बढ़ाने और कीमतें कम करने की भी घोषणा की है। तेल की कीमतों में गिरावट अपने लिए अच्छी है। पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 5-6 रुपयों की कमी आ सकती है।

सऊदी अरब ने की ऐतिहासिक घोषणा

प्रमुख तेल उत्पादक और तेल बाजार देशों में से एक सऊदी अरब ने हाल ही में एक ऐतिहासिक घोषणा की है। तदनुसार, सऊदी अरब ने अब कच्चे तेल की कीमतों में 25 प्रतिशत की कटौती करने का फैसला किया है। इस कारण से प्रति बैरल 55 $ कीमत पर मिलने वाला तेल, 35 से40 डॉलर तक नीचे आ गया है । 1991 के बाद पहली बार, तेल की कीमतों में काफी गिरावट आई है। 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान इराक द्वारा कुवैत पर हमला करने के बाद वैश्विक बाजार में तेल की कीमत में भारी गिरावट आई थी। फिर 2014 में , तीन देशों मे - अमेरिका , रूस और सऊदी अरब के बीच तेल उत्पादन पर संघर्ष शुरू हुआ। नतीजतन,  तेल की कीमतों में तेजी से गिरावट आई थी। उसके बाद अब दुनिया में तेल की कीमतों में इतनी बड़ी गिरावट देखी जा रही है।

सऊदी अरब भविष्य में तेल की कीमतों में कर सकता है और कटौती

वर्तमान में पूरी दुनिया को कोरोना वायरस का सामना करना पड़ रहा है। दुनिया भर के 90 देश इस वायरस से संक्रमित हैं। एक लाख से अधिक लोग इस वायरस से संक्रमित हुए हैं और हजारों लोग मर चुके हैं। दुनिया का विनिर्माण केंद्र चीन से, इसकी शुरवात हुई और वहां इसके प्रसार के कारण, चीन के नागरिकों को घर से बाहर जाने के लिए मना किया है, नतीजतन चीन के लाखों कारखाने और  मॉल बंद है। परिणामस्वरूप, दुनिया की आपूर्ति श्रृंखला बंद हो गई है। अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ टूट गई है। आर्थिक विकास की दर घट रही है। कई देशों की अर्थव्यवस्था रुक गई है। औद्योगिक उत्पादन में काफी गिरावट आई है। इसके अलावा, तेल की मांग में भारी गिरावट आई है। स्वाभाविक रूप से, ऐसी स्थिति में तेल उत्पादन में गिरावट आना अपेक्षित है। हालांकि, सऊदी अरब ने घोषणा की है कि वह तेल उत्पादन बढ़ाएगा। आज सऊदी अरब प्रति दिन 97 लाख बैरल तेल का उत्पादन करता है। इसे अब बढ़ाकर एक करोड़ बैरल प्रतिदिन किया जाएगा। इसके अलावा, तेल खरीदने वालों को पर्याप्त छूट प्रदान करने के लिए, और एशियाई, यूरोपीय देशों को लुभाने के लिए, सऊदी अरब ने तेल की कीमतों में 25 प्रतिशत की कटौती की है और कहा है कि वे इसे भविष्य में और भी कम कर देंगे। एसी घोषणा सऊदी अरब के सरकारी तेल उत्पादक कंपनी अरामको ने की है।

तेल की आपूर्ति तेजी से बढ़ेगी

यह निर्णय सभी के लिए आश्चर्यजनक है, इसीलिए इसके कारणों को जानना महत्वपूर्ण है। इसके पीछे एक महत्वपूर्ण कारण ओपेक यानी ऑर्गनायझेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्ट कंट्री मतलब तेल उत्पादक देशों का संगठन। इस ओपेक संगठन में 14 देश शामिल हैं। कोरोना वायरस के प्रभाव के कारण तेल उत्पादन को कम करने के बारे में इन देशों के साथ रूस की वार्ता चल रही थी। रूस ने कहा कि तेल उत्पादन में प्रति दिन 15 लाख बैरल की कमी की जानी चाहिए। ओपेक के मुख्यालय वाले व्हिएन्ना शहर में पिछले हफ्ते से वार्ता चल रही थी; लेकिन चर्चा फीकी रही। उसके बाद, रूस ने घोषणा की कि हम तेल उत्पादन पर कोई भी प्रतिबंध नहीं मानेंगे,  हम उत्पादन बढ़ाएंगे और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपना तेल बेचेंगे। एक ओर जहां ओपेक ने तेल उत्पादन को कम करने का फैसला किया है, वहीं दूसरी ओर, रूस उत्पादन बढ़ाने जा रहा है और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेचने ने वाला है, परिणामस्वरूप तेल की आपूर्ति तेजी से बढ़ेगी।

रूस और सऊदी अरब में छिड़ा तेलयुद्ध

अंतरराष्ट्रीय तेल बाजार में अधिकतम हिस्सेदारी कैसे हासिल करें, इसलिए एक  प्रतियोगिता रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका और खाड़ी देशों में जारी है और  वह कितनी प्रखर हो गई है यह दुनिया के सामने आ चुका है। रूसी तेल को बेचने से रोकने के लिए सऊदी अरब ने तेल की कीमतों में 25 प्रतिशत की कटौती की है। इसलिए यह संघर्ष घिनौने स्तर पर पहुंच गया है। 

दुनिया में 25 प्रमुख तेल उत्पादक देश

आज दुनिया में 25 प्रमुख तेल उत्पादक देश हैं। उन देशों मे से 14 देश  मायने रखते हैं। इन 14 देशों ने मिलकर ओपेक बनाया। प्रारंभ में, इस संगठन के पांच देश सदस्य थे। बाद में वह संख्या बढ़ती गई। इनमें से अधिकांश देश पश्चिम एशियाई, इस्लामिक और अफ्रीकी हैं। इसके अलावा, इसमें रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। रूस तेल उत्पादक देशों मे से तीसरे स्थान का उत्पादक देश है। आज, सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश संयुक्त राज्य अमेरिका है, इसके बाद सऊदी अरब है। तेल उत्पादन को लेकर रूस और सऊदी अरब के बीच बहुत बड़ी प्रतिस्पर्धा है। इससे तेल की कीमत प्रभावित हो रही है। यदि तेल उत्पादन को बढ़ावा दिया जाता है, तो तेल की कीमतों में गिरावट आएगी; लेकिन अगर सभी देश इस बात पर सहमत हों कि कितना उत्पादन करना है, तो ऐसा नहीं होगा।    

पहले भी बन चुकी है ऐसी स्थिति

वास्तव में , 2014 में एक ऐसी ही घटना हुई थी। उस समय भी, रूस ने अपनी इच्छानुसार तेल उत्पादन में अग्रणी भूमिका निभाई थी। संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी मनमाने ढंग से इसका उत्पादन किया। परिणामस्वरूप, तेल की उपलब्धता में तेजी से वृद्धि हुई है और कीमतों में गिरावट आई। यदि एक देश अपने तेल के उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि करता है, तो यह अन्य देशों के व्यापार को प्रभावित करता है। इसलिए ओपेक संगठन ने 2012 से रूस से बात करना शुरू किया। हम सब मिलकर तय करेंगे की कितना तेल का उत्पादन लिया जाए, एसा प्रस्ताव रखा। लगभग दो साल से बातचीत चल रही थी। 2016 में, ओपेक और रूस के बीच एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। तदनुसार, तेल उत्पादन प्रति दिन 5.5 लाख बैरल तक कम करने का फैसला किया, और रूस ने इस फैसले का समर्थन किया। इस समझौते की अवधि 4 वर्ष थी। लेकिन अभी यह समझौता खतम हुआ है, इसलिए एक नए समझौते की आवश्यकता है; लेकिन रूस इस तरह का समझौता करने के लिए तैयार नहीं है। रूस किसी भी समझौते मे अटकना नहीं चाहता। वे भी उचित मात्रा में तेल का उत्पादन करना चाहते हैं। रूस की इस भूमिका से ओपेक संगठन के देश घबराए हुए है। लेकिन, सऊदी अरब ने अपने तेल की कीमतों में 25 प्रतिशत की कमी की है, यह ध्यान मे रखते हुए कि वैश्विक तेल बाजार में रूस की हिस्सेदारी बढ़ जाएगी।    

तेल भंडार पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ सकता है

वास्तव में, आम आदमी के लिए तेल की कीमतों में कमी आना सुकून देने वाली बात है। लेकिन तेल के भंडार प्राकृतिक हैं और वे सीमित हैं। यदि मांग न होने पर तेल का बहुत ही ज्यादा उत्पादन लिया जाता है, तो तेल भंडार पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा। दूसरा, कई देशों के शेयर बाजार अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तेल की कीमतों पर निर्भर हैं। तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव होने के कारण यह शेयर बाजारों को प्रभावित करेगा। अक्सर, निवेशकों को परिणामों का सामना सहना पड़ता है। इसका असर अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है। 

तेल की कीमतों को संतुलित करने की जरूरत

भारत अपनी जरूरत का 75 % तेल आयात करता है। इसके लिए भारत को बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा का इस्तेमाल करना पड़ता है। इसका भारी बोझ वित्तीय घाटे के रूप में देखा जाता है। ऐसे में भारत जैसा देश निश्चित रूप से तेल की गिरती कीमतों से लाभान्वित होगा। देश में पेट्रोल, डीजल की कीमत कम हो जाएगी, और आम जनता की जेब का बोझ कुछ हद तक कम हो जाएगा; लेकिन आज, भले ही कीमतों में 10 रुपये की गिरावट आई है, लेकिन यह दूसरे पल में बढ़ सकती है। इस तरह की वृद्धि से लोगों में असंतोष पैदा हो सकता है। यह असंतोष सरकार के खिलाफ रहता है। इसलिए तेल की कीमतों को संतुलित करने की जरूरत है। अंतरराष्ट्रीय बाजार मे तेल की कीमत आम तौर पर 55 से 60 डॉलर तक रही हैं। अब वे कम होकर 35 $ के नीचे आते हैं, तो पूरे बाजार में संतुलन तंत्र बाधित हो जाएंगा। दीर्घकालिक स्थिति या भविष्य के बारे में सोचते है तो यह निश्चित रूप से खतरनाक है। इसलिए ओपेक और रूस के बीच समझौता होना महत्वपूर्ण है। अन्यथा, इसके गंभीर परिणाम होंगे।

Web Title: Gulf region oil war can result benefit to India petrol diesel price will be cheaper

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