गौरीशंकर राजहंस का नजरियाः चीन से रहना होगा हमेशा सतर्क
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 16, 2019 10:24 AM2019-02-16T10:24:51+5:302019-02-16T10:24:51+5:30
पीछे मुड़कर देखने से ऐसा लगता है कि तिब्बत के मामले में भारत ने भयानक भूल कर दी थी. 1949 में चीन में माओवादियों का राज हो गया और उसके अगले वर्ष साम्यवादी चीन ने तिब्बत को हड़प लिया.
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अरुणाचल प्रदेश गए थे जहां उन्होंने 4 हजार करोड़ रुपयों की विभिन्न विकास योजनाओं का शिलान्यास किया. जैसे ही यह खबर चीन पहुंची, उसने प्रधानमंत्री मोदी के अरुणाचल दौरे की निंदा की और कहा कि अरुणाचल प्रदेश तिब्बत का अभिन्न अंग है. इसके पहले भी जब-जब भारत के कोई महत्वपूर्ण नेता अरुणाचल प्रदेश गए, चीन ने उसका घोर विरोध किया है.
चीन का कहना है कि दशकों पहले एक दलाई लामा ने अरुणाचल प्रदेश में जन्म लिया था जिन्हें बाद में तिब्बत की राजधानी ल्हासा लाया गया था, इसलिए अरुणाचल प्रदेश तिब्बत का हिस्सा हो गया. यह एक बेतुकी दलील है क्योंकि पुराने जमाने में लोग कहीं से कहीं चले जाते थे और बस जाते थे.
पीछे मुड़कर देखने से ऐसा लगता है कि तिब्बत के मामले में भारत ने भयानक भूल कर दी थी. 1949 में चीन में माओवादियों का राज हो गया और उसके अगले वर्ष साम्यवादी चीन ने तिब्बत को हड़प लिया. जब यह खबर पंडित नेहरू को मिली तो वे क्षुब्ध हुए. परंतु तत्कालीन साम्यवादी चीन के प्रधानमंत्री चाउ एन लाई ने उन्हें भरोसा दिलाया कि चीन तिब्बत की स्वतंत्रता अक्षुण्ण रखेगा और किसी तरह भी उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा.
तिब्बत हमेशा एक स्वतंत्र देश था और रक्षा तथा विदेशी मामलों में वह पूर्णत: भारत पर निर्भर था. जिस समय चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया उस समय वहां भारत की सेना की टुकड़ी थी, भारत की पुलिस थी और भारत का डाकघर था तथा भारतीय मुद्रा भी वहां चलती थी.
समय का तकाजा है कि हम चीन की चालबाजियों को समझें और किसी भी हालत में इस मामले में निश्चिंत होकर न बैठें. चीन को सबक सिखाने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि हम चीन में निर्मित उपभोक्ता वस्तुओं का बहिष्कार करें. चीन को अब समझना होगा कि यदि उसने अपनी शरारतें बंद नहीं कीं तो भारत उसका मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार है.