गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: शिक्षा को औपनिवेशिक सोच से मुक्त करें

By गिरीश्वर मिश्र | Published: August 12, 2024 08:43 AM2024-08-12T08:43:44+5:302024-08-12T08:44:45+5:30

औपनिवेशिक भारत में प्रमुख शिक्षा संस्थान भारतीयों को ‘विदेशी’ बनने या स्वीकार्य पश्चिमी मापदंडों के आधार पर अपनी सभ्यता का परीक्षण करने के लिए प्रशिक्षित करने का कार्य करते रहे.

Free education from colonial thinking | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: शिक्षा को औपनिवेशिक सोच से मुक्त करें

गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: शिक्षा को औपनिवेशिक सोच से मुक्त करें

Highlightsभारतीयों को यूरोपीय लोगों की तरह सोचने और बनने के लिए ढाला गया.आवरण में छद्म रूप में स्वयं को प्रोत्साहित करने का यह प्रभावी उपाय अंग्रेजों की कामयाब तजवीज थी. यूरोप-समर्थित शैक्षणिक परंपरा पूरी दुनिया में दूसरों को भरसक हाशिये पर धकेलती रही है.

औपनिवेशिक भारत में प्रमुख शिक्षा संस्थान भारतीयों को ‘विदेशी’ बनने या स्वीकार्य पश्चिमी मापदंडों के आधार पर अपनी सभ्यता का परीक्षण करने के लिए प्रशिक्षित करने का कार्य करते रहे. दूसरे शब्दों में भारतीयों को यूरोपीय लोगों की तरह सोचने और बनने के लिए ढाला गया. आवरण में छद्म रूप में स्वयं को प्रोत्साहित करने का यह प्रभावी उपाय अंग्रेजों की कामयाब तजवीज थी. 

फिर भारतीय लोग दूसरों द्वारा पेश किए गए अमूर्त और सैद्धांतिक औजारों के साथ खुद को समायोजित करते रहे और आज भी कर रहे हैं. ऐसे में वे मनुष्य के रूप में स्वायत्त या स्वाधीन जीवन कभी नहीं जी सकते.  

यूरोप-समर्थित शैक्षणिक परंपरा पूरी दुनिया में दूसरों को भरसक हाशिये पर धकेलती रही है. स्वतंत्रता मिलने के साथ उपनिवेशवाद से मुक्ति के प्रयास शुरू हो गए परंतु यह बात कि औपनिवेशिक साम्राज्यवादियों से विरासत में मिली ज्ञान-प्रणालियों की जांच भी करनी चाहिए थी और उन्हें दी गई महात्मा गांधी की चुनौती भी बिसरती गई और यह कार्य उपेक्षित ही रह गया. 

वर्तमान स्थिति यह है कि अनेक भारतीय संस्थानों के पाठ्यक्रम भारतीय परिप्रेक्ष्य की वास्तविकताओं या इसकी समस्याओं को भी पूरी तरह से प्रतिबिंबित नहीं करते हैं. यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में रह कर भारतीय शोधकर्ता भारतीय दर्शन और मूल्यों की सामग्रियों और गुणों से खुद को दूर कर लेते हैं. 

ऐसा तब है जब ज्ञान-सृजन की आधुनिक (औपनिवेशिक!) पद्धति से बहुत पहले भारत ज्ञान-मीमांसा की दृष्टि से गंभीर चिंतन का गढ़ था. आजादी के सात दशकों के बावजूद हम उधर ध्यान न दे सके. वि-उपनिवेशीकरण का आधार भारतीय होना चाहिए, इस तथ्य को पहचान कर भारत में समकालीन उच्च संस्थानों और उनके उत्पादों, अनुसंधान प्रयासों और स्नातकों के लिए पाठ्यक्रम तैयार करना चाहिए.

भारतीय संस्कृति के संरक्षण व समकालीन अनुसंधान और वैचारिक वास्तविकताओं में उनके समावेश के अलावा, भारतीय विश्वविद्यालयों को भारतीय प्रतिभाओं और ज्ञान मीमांसा को ईमानदारी से चित्रित करने के लिए मौजूदा पाठ्यक्रमों और कार्यक्रमों का विस्तार करने में सक्षम व तैयार होना चाहिए. पाठ्यक्रम भारतीय विश्वदृष्टिकोण के पीछे छिपे तर्क और तर्कों पर प्रश्न पूछने और उनका विस्तार करने में सक्षम होने चाहिए. 

ये पाठ्यक्रम छात्रों और लोगों की रुचि को इस तरह से आकर्षित करने वाले होने चाहिए जो केवल औपचारिकताएं न निभा रहे हों बल्कि स्वयं और राष्ट्रीय पहचान की चेतना का आह्वान कर सकें. इसके साथ ही भारतीय मनीषा और अवधारणाओं का इस तरह से प्रसार होना चाहिए कि वे हमारी जरूरतों और चुनौतियों का सामना करने में समर्थ हो सकें. 

इसलिए उच्च शिक्षा पाठ्यक्रम में नए विचारों के कार्यान्वयन के माध्यम से एक नई जान फूंकने की जरूरत है. ऐसे कदम उठाना जरूरी है क्योंकि यह उन वैचारिक संरचनाओं को नया आकार देगा जिससे वैश्विक समुदाय में भारतीयों की स्थिति बेहतर बनेगी.

Web Title: Free education from colonial thinking

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