फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: मॉब लिंचिंग रोकने के उपायों पर देना होगा ध्यान

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 24, 2020 09:19 AM2020-04-24T09:19:48+5:302020-04-24T09:19:48+5:30

मॉब लिंचिंग के लिए भारतीय भाषाओं हिंदी या मराठी में हमारे पास कोई उपयुक्त शब्द नहीं है, क्योंकि ऐसी घटनाएं भारत में होती नहीं थीं. 2014 के पूर्व न्यायेतर हत्याएं भले होती रही हों लेकिन ऐसे संगठित तरीके से नहीं होती थीं जैसे कि अब हो रही हैं और अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं.

Firdaus Mirza blog: Measures to prevent mob lynching should be focused | फिरदौस मिर्जा का ब्लॉग: मॉब लिंचिंग रोकने के उपायों पर देना होगा ध्यान

तस्वीर का इस्तेमाल केवल प्रतीकात्मक तौर पर किया गया है। (फाइल फोटो)

पालघर जिले में दो साधुओं और उनके ड्राइवर की मॉब लिंचिंग की दुखद घटना ने एक बार फिर से मॉब लिंचिंग के मुद्दे को पूरे देश के सामने ला दिया है. 2014 से लेकर अब तक 28 लोग मॉब लिंचिंग की घटनाओं में अपनी जान गंवा चुके हैं जिनमें 24 अल्पसंख्यक समुदाय से थे. यह सिर्फ उन घटनाओं का आंकड़ा है जिनकी रिपोर्ट दर्ज की गई थी, जिन्हें दर्ज नहीं किया गया उनके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है.

मॉब लिंचिंग के लिए भारतीय भाषाओं हिंदी या मराठी में हमारे पास कोई उपयुक्त शब्द नहीं है, क्योंकि ऐसी घटनाएं भारत में होती नहीं थीं. 2014 के पूर्व न्यायेतर हत्याएं भले होती रही हों लेकिन ऐसे संगठित तरीके से नहीं होती थीं जैसे कि अब हो रही हैं और अपराधी बेखौफ घूम रहे हैं.

मॉब लिंचिंग का उदाहरण इखलाक की हत्या के बाद सामने आया. उसके बाद पहलू खान तथा अन्य कई लोगों को कथित गोरक्षकों द्वारा मारे जाने के बाद यह तब चर्चा में आया जब इस तरह के जघन्य अपराध के आरोपी को झारखंड में एक केंद्रीय मंत्री ने माला पहनाई.

भारत एक लोकतांत्रिक देश है जो संविधान और कानूनों द्वारा संचालित है जिसे संवैधानिक जनादेश द्वारा चलाया जाता है. संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार की गारंटी देता है और कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी को भी उसके जीवन या स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कानून का प्राथमिक लक्ष्य एक ऐसे व्यवस्थित समाज का निर्माण करना होता है जहां परिवर्तन और प्रगति का नागरिकों का सपना साकार हो और व्यक्तिगत आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति को जगह मिले.

कानून को एक सभ्य समाज की नींव माना जाना चाहिए और प्रत्येक नागरिक संविधान व कानून के तहत प्रदत्त अधिकारों  को पाने का हकदार है. कानून की महिमा को इसलिए कम नहीं किया जा सकता कि कोई व्यक्ति या समूह यह मानता है कि उसे कानून अपने हाथ में लेने और दोषी को अपनी धारणा के अनुसार दंडित करने का अधिकार है. ऐसे लोग भूल जाते हैं कि कानून-व्यवस्था कायम रखने का दायित्व कानून लागू करने वाली एजेंसियों का है और किसी को भी कानून अपने हाथ में लेकर मनमाने तरीके से दंड देने का अधिकार नहीं है. जैसे कोई कानून में अपने अधिकारों के लिए लड़ने का हकदार है, वैसे ही दूसरे को तब तक निदरेष माना जाता है जब तक कि निष्पक्ष सुनवाई के बाद उसे दोषी नहीं पाया जाता.

सोशल मीडिया के दुरुपयोग के बाद मॉब लिंचिंग और मॉब वायोलेंस के अपराध बढ़ गए. टार्गेटेड मैसेज को उनकी सत्यता की पुष्टि किए बिना आगे बढ़ाया जा रहा है. यह भी पाया गया कि कुछ संगठनों ने इस तरह के नफरत भरे संदेशों को फैलाने के लिए आईटी पेशेवरों की सेवाएं ली हैं.

मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां इसे तहसीन पूनावाला सहित विभिन्न सामाजिक कार्यकर्ता लेकर गए. सुप्रीम कोर्ट ने 17 जुलाई 2018 को इस बारे में फैसला दिया, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को विभिन्न दिशा-निर्देश जारी करने के लिए कहा गया था. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित महत्वपूर्ण निवारक उपाय निम्न थे-

1. राज्य सरकारें प्रत्येक जिले में नोडल अधिकारी के रूप में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की नियुक्ति करेंगी.
2. वे एक विशेष कार्यबल का गठन करेंगे ताकि उन उन लोगों के बारे में खुफिया रिपोर्ट हासिल की जा सके जिनके ऐसा अपराध कर सकने की आशंका हो या जो नफरत फैलाने वाले भाषण भड़काऊ भाषण और फेक न्यूज फैलाने में शामिल हों.

3. राज्य सरकारें अविलंब उन जिलों, उपखंडों और/ या उन गांवों की पहचान करेंगी जहां हाल के दिनों में मॉब लिंचिंग की घटनाएं हुई हों.
4. संबंधित राज्यों के गृह विभाग के सचिव संबंधित जिले के नोडल अधिकारी को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश/परामर्श जारी करेंगे कि चिह्न्ति क्षेत्रों के पुलिस थानों के प्रभारी अधिकारी यदि उनके क्षेत्रधिकार के भीतर मॉब वायोलेंस की कोई घटना संज्ञान में आए तो अतिरिक्त सतर्क रहें.

5. नोडल अधिकारी जिले में मॉब वायोलेंस या लिंचिंग जैसी प्रवृत्तियों की पहचान करेंगे और ऐसी घटनाएं रोकने के लिए कदम उठाएंगे.
6. राज्य के गृह विभाग के पुलिस महानिदेशक नोडल अधिकारियों की नियमित समीक्षा बैठक लेंगे.
इसके अलावा और भी कई बातें सुप्रीम कोर्ट द्वारा कही गई थीं. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सिफारिश किए हुए लगभग दो साल बीत चुके हैं लेकिन इस संबंध में कोई कानून नहीं बनाया गया है.

Web Title: Firdaus Mirza blog: Measures to prevent mob lynching should be focused

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