गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: समय के साथ होड़ लेते त्यौहार हमारी जिजीविषा के परिचायक

By गिरीश्वर मिश्र | Published: October 21, 2022 03:14 PM2022-10-21T15:14:34+5:302022-10-21T15:18:12+5:30

नव-रात्रि में दुर्गा की आराधना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मचती है। फिर आती है विजयादशमी। भगवान रामचंद्र द्वारा राक्षसराज रावण के संहार को याद किया जाता है और रावण-दहन होता है।

Festivals competing with the times are the signs of our life | गिरीश्वर मिश्र का ब्लॉग: समय के साथ होड़ लेते त्यौहार हमारी जिजीविषा के परिचायक

(Photo credit: Travel Traingle)

Highlightsप्रकृति की लय के साथ अपनी लय मिलाते हुए यह त्यौहार जीवन में सुख, समृद्धि, उत्साह और गति के उत्सुक स्वागत का अवसर होता है।इसका मुख्य आकर्षण है शक्ति के केंद्र प्रकाश की ऊर्जा से अपने आप को पुष्ट और संवर्धित करना।यह भी अकारण नहीं है कि कार्तिक यानी अक्तूबर के महीने में भारतीय उत्सवों की भरमार होती है।

भारतीय समाज अपने स्वभाव में मूलतः उत्सवधर्मी है और यहां के ज्यादातर उत्सव सृष्टि में मनुष्य की सहभागिता को रेखांकित करते दिखते हैं। प्रकृति की रम्य क्रीड़ा स्थली होने के कारण मौसम के बदलते मिजाज के साथ कैसे जिया जाए, इस प्रश्न पर विचार करते हुए भारतीय जन मानस की संवेदना में ऋतुओं में होने वाले परिवर्तनों ने खास जगह बनाई है। फलतः सामंजस्य और प्रकृति के साथ अनुकूल को ही जीवन का मंत्र बनाया गया। 

यहां जीवन का स्पंदन उसी के अनुसार होता है और उसी की अभिव्यक्ति यहां के मिथकों और प्रतीकों के साथ होती है। कला, साहित्य, संगीत आदि को भी सुदूर अतीत से ही यह विचार प्रभावित करता आ रहा है। इस दृष्टि से दीपावली का लोक-उत्सव जीवन के हर क्षेत्र-घर-बार, खेत-खलिहान, रोजी-रोटी और व्यापार-व्यवहार सबसे जुड़ा हुआ है। 

इस अवसर पर भारतीय गृहस्थ की चिंता होती है घर-बाहर के परिवेश को स्वच्छ करना और निर्मल मन के साथ उत्साहपूर्वक आगामी चुनौतियों के लिए अपने को तैयार करना। प्रकृति की लय के साथ अपनी लय मिलाते हुए यह त्यौहार जीवन में सुख, समृद्धि, उत्साह और गति के उत्सुक स्वागत का अवसर होता है। इसका मुख्य आकर्षण है शक्ति के केंद्र प्रकाश की ऊर्जा से अपने आप को पुष्ट और संवर्धित करना।

यह भी अकारण नहीं है कि कार्तिक यानी अक्तूबर के महीने में भारतीय उत्सवों की भरमार होती है। यह प्रकृति की सुषमा का ही प्रकटन है कि विजयादशमी से जिस मंगल-यात्रा की शुरुआत होती है वह पूरे महीने भर चलती रहती है। नव-रात्रि में दुर्गा की आराधना और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम मचती है। फिर आती है विजयादशमी। भगवान रामचंद्र द्वारा राक्षसराज रावण के संहार को याद किया जाता है और रावण-दहन होता है। 

फिर बड़ी आशा और उत्साह के साथ घर की सफाई-पुताई के साथ दीपावली की तैयारी शुरू होती है। कहते हैं इसी दिन राजा राम अयोध्या पधारे थे और उनके स्वागत में दीपोत्सव हुआ था और वह परम्परा तब से चली आ रही है। दीपावली के साथ उसके आगे-पीछे कई उत्सव भी जुड़े होते हैं। इनमें शरद पूर्णिमा (कोजागिरी) और करवा चौथ के बाद आती है धनतेरस जिस दिन धन्वन्तरि जयंती भी होती है। 

फिर तो अटूट क्रम चल पड़ता है। इस क्रम में छोटी दिवाली (नरक चतुर्दशी), काली पूजा (श्यामा पूजा या महा निशा पूजा), गोवर्धन पूजा, भैया दूज (यम द्वितीया), चित्र गुप्त पूजा (बहीखाते और कलम की पूजा) और छठ की पूजा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन उत्सवों को मनाने में पर्याप्त क्षेत्रीय विविधता भी देखने को मिलती है और समय के साथ होड़ ले रहे ये सभी त्यौहार हमारी जिजीविषा के परिचायक हैं।

Web Title: Festivals competing with the times are the signs of our life

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