ब्लॉग: फसलों के संकट से हमेशा जूझते रहते हैं देश के किसान

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: March 6, 2023 03:49 PM2023-03-06T15:49:11+5:302023-03-06T15:51:16+5:30

दुनिया में तरह-तरह की तकनीक व्यापार-वाणिज्यिक कार्यों को सहायता कर रही हैं, लेकिन कृषि क्षेत्र में कभी टमाटर का उत्पादन भारी पड़ता है, कभी फूल गोभी की फसल पर ट्रैक्टर चलाना पड़ता है तो कभी धनिया, कभी टमाटर को फेंकना पड़ता है।

Farmers of the country are always struggling with the crisis of crops | ब्लॉग: फसलों के संकट से हमेशा जूझते रहते हैं देश के किसान

महाराष्ट्र के किसान संकट में हैं

Highlights प्याज उत्पादन में 40 प्रतिशत का योगदान देने वाले राज्य महाराष्ट्र के किसान संकट में हैंकुछ परेशान किसानों ने मंडी में प्याज बेचना ही बंद कर दिया हैस्थाई समाधान हर हाल में ढूंढ़ना चाहिए, जो किसान और देश हित में आवश्यक है

नई दिल्ली: देश के प्याज उत्पादन में 40 प्रतिशत का योगदान देने वाले राज्य महाराष्ट्र के किसान संकट में हैं। राज्य और एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी नासिक जिले के लासलगांव में प्याज 2 से 4 रुपए में बिक रहा है। बंपर फसल लेकर मंडी पहुंचे किसानों को उसे मिट्टी के मोल बेचना पड़ रहा है। कुछ परेशान किसानों ने मंडी में प्याज बेचना ही बंद कर दिया है। यद्यपि प्याज की कीमतों में यह पहली बार हो रहा है, ऐसा नहीं है। कभी प्याज के दामों का गिरना और कभी महंगा होना, लगभग हर साल की कहानी है। सिर्फ परिस्थिति की गंभीरता और अवधि ध्यान देने योग्य रहती है।

ताजा परिस्थितियों में भी विशेषज्ञों का मानना है कि मार्च के आखिर तक स्थिति सुधर जाएगी। हालांकि जब कभी-भी फल-सब्जियों के दामों में उतार-चढ़ाव की बात होती है, उस समय उनके भंडारण के लिए गोदामों की याद आती है। इसके साथ ही फसलों के योजनाबद्ध उत्पादन पर चर्चा आरंभ होती है। वर्तमान प्याज के मामले में कहा जा रहा है कि लंबे समय तक बारिश से बुआई में देरी हुई और कई किसानों ने 'पछेती खरीफ' (देर से बोई जाने वाले खरीफ प्याज) किस्म को चुना। अनुमान है कि उत्पादकता में 20 प्रतिशत तक की वृद्धि हुई है, जिससे मौजूदा स्थिति पैदा हुई है।

देश को हमेशा कृषि प्रधान कहा जाता है। अर्थव्यवस्था का बड़ा भाग खेती-किसानी पर निर्भर बताया जाता है, मगर जब किसानों की मूलभूत समस्या की बात आती है तो उसका निदान किसी के पास नहीं रहता है। अधिक वर्षा हुई तो परेशानी और कम वर्षा हुई तो भी मुश्किलें। ऐसे में कृषि क्षेत्र में चल रहे अनुसंधान उत्पादन तो बढ़ाने में हर तरह से सक्षम हैं, लेकिन बढ़े हुए उत्पादन के विपणन की कोई तैयारी नहीं है। आवश्यकता और उत्पादन के बीच तालमेल स्थापित नहीं हो पा रहा है। कार्पोरेट जगत ने कृषि क्षेत्र में कदम रखकर काफी चीजों को अपने नियंत्रण में किया है तथा मुनाफा बढ़ाया है। किंतु अकेला किसान कभी बनती-कभी बिगड़ती स्थिति से मुकाबला करने में सक्षम नहीं है। वह बार-बार सरकार के सामने हाथ फैलाने के लिए मजबूर है। दुनिया में तरह-तरह की तकनीक व्यापार-वाणिज्यिक कार्यों को सहायता कर रही हैं, लेकिन कृषि क्षेत्र में कभी टमाटर का उत्पादन भारी पड़ता है, कभी फूल गोभी की फसल पर ट्रैक्टर चलाना पड़ता है तो कभी धनिया, कभी टमाटर को फेंकना पड़ता है। साफ है कि कहीं न कहीं तालमेल की दिक्कत है। इसे देश में प्राथमिकता के आधार पर दूर करना चाहिए। यह राजनीतिक विषय नहीं है, फिर भी राजनीतिज्ञों को इसमें रस आने लगता है। यह एक गंभीर समस्या है। इसका स्थाई समाधान हर हाल में ढूंढ़ना चाहिए, जो किसान और देश हित में आवश्यक है।

Web Title: Farmers of the country are always struggling with the crisis of crops

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