ब्लॉग: अमित शाह और भगवंत मान की केमिस्ट्री पर निगाहें...आखिर माजरा क्या है?
By हरीश गुप्ता | Published: April 27, 2023 07:36 AM2023-04-27T07:36:24+5:302023-04-27T07:39:34+5:30
पंजाब में अमृतपाल सिंह के मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और मुख्यमंत्री भगवंत मान के बीच दिलचस्प जुगलबंदी देखने को मिली. मान और शाह के बीच के सौहार्द्र को राजनीतिक पर्यवेक्षकों उत्सुकता से देख रहे हैं.
पंजाब का मुख्यमंत्री बनने के बाद पिछले 13 महीनों में भगवंत सिंह मान लंबा सफर तय कर चुके हैं. यद्यपि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के बारे में कहा था कि वे एक अनपढ़ व्यक्ति हैं, जो फाइलों को पढ़कर उस पर दस्तखत नहीं करते हैं और हर तरफ अपनी तस्वीरें लगी देखना चाहते हैं. उन्होंने 24 मार्च 2023 को एक सार्वजनिक रैली में इसे ‘मनोवैज्ञानिक विकार’ कहा था. लेकिन उसके बाद से सतलुज नदी में बहुत सारा पानी बह चुका है.
कहा जाता है कि प्रधानमंत्री से मान बहुत ज्यादा नाराज थे, क्योंकि उन्होंने सीमावर्ती राज्य पंजाब की मदद नहीं की थी. 16 मार्च 2022 को मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने 25 मार्च 2022 को प्रधानमंत्री से मुलाकात कर एक लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज और सहयोग की मांग की थी. मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद मान की यह प्रधानमंत्री मोदी के साथ पहली मुलाकात थी और चूंकि पूरे एक साल तक कुछ नहीं हुआ, इसलिए वे गुस्से में थे.
दिलचस्प यह है कि पाकिस्तान से ड्रग्स और हथियारों की सप्लाई रोकने के लिए गृह मंत्री अमित शाह से मदद मांगी और उनके साथ उनकी अद्भुत केमिस्ट्री बन गई. उन्होंने गृह मंत्री को भरोसा दिलाया कि पंजाब सरकार ने कट्टर धर्मोपदेशक अमृतपाल सिंह को गिरफ्तार करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है और इस अभियान में केंद्रीय एजेंसियों का पूरा सहयोग मांगा. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उन्होंने अमृतपाल को गिरफ्तार करने या सरेंडर करवाने के लिए एक कार्ययोजना तैयार की. वे चाहते थे कि पंजाब का भाजपा नेतृत्व कीचड़ उछालने से बचे, क्योंकि इससे उनका लक्ष्य प्रभावित होगा और 40 साल पहले जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी.
बिना किसी देरी के अमित शाह ने सारी मदद मुहैया करा दी और पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया कि अमृतपाल के मुद्दे पर सावधान रहें. आखिरकार, केंद्र और राज्य का संयुक्त प्रयास रंग लाया और बिना एक भी गोली चलाए अमृतपाल तथा उसके समर्थकों की गिरफ्तारी/आत्मसमर्पण में सफलता मिल गई. मान सरकार ने अमित शाह के इस सुझाव पर भी सहमति जताई कि इन सभी कट्टरपंथी तत्वों को असम की डिब्रूगढ़ केंद्रीय जेल में रखा जाए. मान और शाह के बीच के सौहार्द्र को राजनीतिक पर्यवेक्षकों द्वारा उत्सुकता के साथ देखा जा रहा है.
दिल्ली पुलिस का कौशल
सत्यपाल मलिक, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिहार के राज्यपाल के रूप में निजी पसंद थे और जो बाद में जम्मू-कश्मीर, गोवा तथा मेघालय के राज्यपाल बनाए गए थे, ने आईपीसी की धारा 144 की शक्ति को कठिन तरीके से जाना. पद से हटने के बाद उन्होंने संवेदनशील मुद्दों से निपटने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी की व्यक्तिगत रूप से और उनकी सरकार की भी तीखी आलोचना की है. वे दक्षिणी दिल्ली के एक घर में रह रहे हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव में भूमिका निभाने के लिए विपक्ष में पैर जमाने की कोशिश कर रहे हैं.
22 अप्रैल को उन्होंने खाप पंचायत नेताओं को अपने निवास पर आमंत्रित किया था. चूंकि उनके ड्रॉइंगरूम में इतने लोगों के लिए जगह नहीं थी, इसलिए उन्होंने पास में ही स्थित पार्क में बैठक करने का निर्णय किया और लंच का भी इंतजाम किया गया. मोदी से अलग होने के बाद जो लोग मलिक की गतिविधियों पर निगाह रख रहे हैं, उन्होंने आर.के. पुरम पुलिस थाने को अलर्ट किया और हंगामा मच गया.
स्थानीय पुलिस बिना ऊपर से अनुमति के कार्रवाई करते हुए डर रही थी और कुछ ही मिनटों में आदेश मिल गया. लेकिन समारोह शांतिपूर्ण था और पार्क में सरकार के खिलाफ कोई नारे भी नहीं लगाए जा रहे थे. माहौल पर निगाह रख रहे एक समझदार व्यक्ति ने कहा कि रिहाइशी क्षेत्र में शांति बनाए रखने के उद्देश्य से पार्क के अंदर और बाहर एक छोटे क्षेत्र में आईपीसी की धारा-144 लागू की जाए. एक एसडीएम ने सभा को गैरकानूनी घोषित किया और लोगों को वहां से तत्काल चले जाने को कहा.
उन्हें बताया गया कि चूंकि कोई पूर्व अनुमति नहीं ली गई थी इसलिए बैठक अवैध है. जब मलिक पुलिस कार्रवाई का विरोध करने के लिए अपने समर्थकों के साथ आर.के. पुरम पुलिस थाने गए तो उन्हें धारा-144 के बारे में बताया गया, जिसके अंतर्गत कार्रवाई की गई थी. मलिक नई वास्तविकता के साथ जीने का कठिन तरीका सीख रहे हैं.
दलाई लामा के प्रति सतर्क व्यवहार
हाल ही में राजधानी दिल्ली में दो दिवसीय वैश्विक बौद्ध शिखर सम्मेलन के आयोजन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दलाई लामा से संबंधित संवेदनशील मुद्दे को संभालने के लिए एक अनूठी रणनीति तैयार की. जाहिर है, मोदी को दलाई लामा और चीनी नेतृत्व के बीच एक नाजुक संतुलन बनाए रखना था. यह भले अजीब लगे लेकिन दलाई लामा के मुद्दे को संभालने के लिए मोदी 2014 से ही कड़ी मेहनत कर रहे हैं. उदाहरण के लिए प्रधानमंत्री बनने के कई माह बाद 20 अगस्त 2014 को वे आध्यात्मिक नेता से मिले थे लेकिन इसकी तस्दीक नहीं की क्योंकि मुलाकात की फोटो ट्विटर पर नहीं डाली गई थी.
हालांकि पूर्वी लद्दाख में शांति स्थापित रखने के लिए चीन को मनाने की असफल कोशिश के बाद, मोदी ने दलाई लामा को पिछले दो वर्षों के दौरान उनके जन्मदिन पर सार्वजनिक रूप से बधाई दी. फिर भी बौद्ध शिखर सम्मेलन का मोदी द्वारा उद्घाटन किए जाने के पहले दिन दलाई लामा को आमंत्रित नहीं किया गया था. इसके बजाय दोपहर के सत्र के दौरान बौद्ध भिक्षुओं द्वारा ‘‘महामहिम दलाई लामा, वैश्विक शांति और निरंतरता की दिशा में उनका योगदान’ विषय पर चर्चा आयोजित की गई.
यह दिलचस्प है कि दलाई लामा को सम्मेलन में दूसरे दिन सभा को संबोधित करने के लिए आमंत्रित किया गया था. ऐसे मामलों में भूमिका निभाने वाले एक विदेश नीति विशेषज्ञ का कहना है कि मोदी ऐसे नाजुक समय में दलाई लामा के साथ फोटो खिंचवाना नहीं चाहते थे जब चीन के साथ महत्वपूर्ण बातचीत चल रही हो और चीनी विदेश मंत्री के जी20 सम्मेलन में भारत आने की उम्मीद हो. चीनी सरकार दलाई लामा को अलगाववादी मानती है.