#MeToo पर विश्वनाथ सचदेव का नजरिया, नारी उत्पीड़न का हर अपराधी बेनकाब हो

By लोकमत न्यूज़ ब्यूरो | Published: October 18, 2018 05:14 AM2018-10-18T05:14:11+5:302018-10-18T05:14:11+5:30

भले ही संयोग हो कि देश में ‘मी टू अभियान’ नवरात्रि के दौरान ही उभरा है, पर महत्वपूर्ण है यह बात कि नारी-पूजा के पर्व के साथ देश की नारी ने अपने शोषण के विरुद्ध बिगुल बजाया है।

Every criminal should be exposed to woman harassment | #MeToo पर विश्वनाथ सचदेव का नजरिया, नारी उत्पीड़न का हर अपराधी बेनकाब हो

सांकेतिक तस्वीर

-विश्वनाथ सचदेव
मुझे याद है हमारे बचपन में घर में एक त्यौहार मनाया जाता था, जिस दिन कुछ बच्चियों को बुलाकर उनकी पूजा की जाती थी, उन्हें भोजन कराया जाता था। पंजाबी में इसे कंजक बिठाना कहा जाता था। बच्चियों की पूजा का जिम्मा घर के किसी बेटे का होता था। वह बाकायदा बच्चियों के पैर धोता था, उन्हें आदर से बिठाकर भोजन कराता था। अब भी मनाया जाता होगा यह त्यौहार। नवरात्रि के दिनों में ही होता है और जहां तक मैं जानता हूं देश के अलग-अलग हिस्सों में किसी न किसी रूप में नारी-पूजा की यह परंपरा जीवित है।

नाम अलग-अलग हो सकता है। वैसे भी नवरात्रि का महान पर्व कुल मिलाकर नारी-पूजा का ही अवसर है, जब ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता:’ की भावना को साकार किया जाता है।

बचपन में तो यह बात कभी समझ नहीं आई कि घर के बेटे को ही कन्या-पूजने, उनके पांव धोने का काम क्यों सौंपा जाता था, पर आगे चलकर यह बात समझना मुश्किल नहीं था कि वस्तुत: यह संस्कार रोपने की प्रथा थी। बचपन में ही बेटों को यह सिखाने-समझाने का प्रयास था कि बेटियां पूजनीय होती हैं। आज बचपन में पढ़ाए गए उस पाठ का यह पन्ना इसलिए नहीं खुला कि देश-भर में नवरात्रि का त्यौहार मनाया जा रहा है- देवी-पूजा के माध्यम से नारी-शक्ति के प्रति विश्वास और आदर प्रकट किया जा रहा है।

यह भले ही संयोग हो कि देश में ‘मी टू अभियान’ नवरात्रि के दौरान ही उभरा है, पर महत्वपूर्ण है यह बात कि नारी-पूजा के पर्व के साथ देश की नारी ने अपने शोषण के विरुद्ध बिगुल बजाया है। यह सही है कि यह ‘मी टू अभियान’ दुनिया के कई देशों से होता हुआ हमारे देश में पहुंचा है, पर गलत यह भी नहीं है कि हमारा समाज एक अर्से से नारी-उत्पीड़न के शर्मनाक अध्यायों का गवाह रहा है।

यह पहली बार नहीं है जब नारी को वस्तु या शरीर मात्र मानने के खिलाफ आवाज उठ रही है, पर यह निश्चित रूप से पहली बार है जब शोषण के खिलाफ एक ऐसा अभियान उभरता दिख रहा है, जो बहुत पहले उभरना चाहिए था और जो बहुत दूर तक जाना चाहिए।

इस अभियान की शुरुआत फिल्म-उद्योग से हुई है और तपिश पत्रकारिता तक पहुंची है। आरोपों-प्रत्यारोपों का दौर चल रहा है। आरोपियों को सजा दिए जाने की मांग की जा रही है और आरोप लगाने वालों की नीयत पर उंगलियां भी उठाई जा रही हैं। सच और झूठ का फैसला तो जांच से ही हो सकता है और स्थितियों को देखते हुए इस बात की पूरी आशंका है कि आरोप कभी प्रमाणित ही न हो पाए।

लेकिन इसका अर्थ यह कदापि नहीं होगा कि अपराध हुआ ही नहीं। ‘मी टू अभियान’ से जुड़े मामलों को एक तरफ कर भी दें, तब भी इस सच्चाई को तो किसी भी तरह से अनदेखा नहीं किया जा सकता कि समाज का एक बड़ा तबका नारी को उपयोग और उपभोग की वस्तु ही मानता है।  जब-जब नारी ने इस अधिकार को चुनौती दी है, दुर्भाग्य से, उसके इरादों पर ही सवाल उठाए गए हैं।

आज जो ‘मी टू अभियान’ चल रहा है, उसे ऐसी ही एक चुनौती के रूप में देखा-समझा जाना चाहिए। यह तर्क कोई मायने नहीं रखता कि आज सवाल उठाने वाली महिलाएं बरसों तक चुप क्यों रहीं। फिल्मों की दुनिया हो या पत्रकारिता की, या फिर राजनीति और कार्पोरेटी सभ्यता की, सब जगह नारी के शोषण और उत्पीड़न के उदाहरण मिलते रहे हैं। यदि इस उत्पीड़न के खिलाफ तत्काल आवाज नहीं उठी तो इसका मतलब सिर्फ यही है कि तब उत्पीड़न की शिकार अपने भीतर इतना साहस नहीं जुटा पाई थीं- आज वह साहस कर रही हैं। कल तक की कायरता पर उंगली उठाए जाने के बजाय आज के साहस को सलाम करने की आवश्यकता है।

हम देख रहे हैं कि हमारे देश में ‘मी टू’ के ‘अपराधी’ अदालतों का सहारा ले रहे हैं। मानहानि के दावे कर रहे हैं। यह सही है कि जब तक अपराध प्रमाणित न हो जाए, व्यक्ति आरोपी ही होता है, और आरोपी को अपराधी नहीं कहा जाना चाहिए। यौन-उत्पीड़न के हर आरोप के प्रमाण प्रस्तुत करना शायद संभव नहीं है, पर इसका मतलब यह भी तो नहीं होना चाहिए कि अपराधी ससम्मान बरी हो जाए। कुछ मामले ऐसे भी होते हैं जिनमें आरोपी को भी स्वयं को निरपराध प्रमाणित करना चाहिए। मैं जानता हूं मौजूदा कानून-व्यवस्था में यह संभव नहीं है। तो फिर क्या 
किया जाए? 

मुझे अपने बचपन की कंजक याद आ रही है। हम अपने बच्चों को ये संस्कार दें कि वे अपनी स्थिति का गलत लाभ उठाने की कोशिश न करें; वे नारी को वस्तु न मानें। संस्कार देने वाली यह बात बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन उतनी ही महत्वपूर्ण बात यह भी है कि प्रमाणों का तकाजा देकर या अपनी स्थिति और हैसियत के सहारे कोई व्यक्ति स्वयं को निरपराध घोषित करने-करवाने में सफल न हो। वह हर अपराधी बेनकाब होना चाहिए, जो सहज मानवीय व्यवहार की सीमाएं  लांघता है अथवा लांघने की कोशिश करता है। 

(विश्वनाथ सचदेव लेखक, वरिष्ठ स्तम्भकार और नवभारत टाइम्स के संपादक रच चुके हैं)

Web Title: Every criminal should be exposed to woman harassment

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