संपादकीय: हर नागरिक चौकीदार की भूमिका निभाए

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: March 21, 2019 06:09 PM2019-03-21T18:09:04+5:302019-03-21T18:09:04+5:30

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के तमाम दिग्गजों ने कांग्रेस के ‘चौकीदार’ अभियान का जवाब देने के लिए ट्विटर पर अपने नाम में चौकीदार शब्द जोड़ लिया है। भाजपा का दावा है कि देश की रक्षा करने की सामथ्र्य केवल उसी में है, भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की क्षमता केवल उसी में है तथा देश के शोषित-पीड़ित तबकों के हितों की रक्षा भी केवल वही कर सकती है इसीलिए वह देश की असली चौकीदार है।

Editorial: Every citizen plays the role of chowkidar | संपादकीय: हर नागरिक चौकीदार की भूमिका निभाए

संपादकीय: हर नागरिक चौकीदार की भूमिका निभाए

‘चौकीदार’ आज लोकसभा चुनाव जितानेवाला शक्तिशाली शब्द बन गया है। यह शब्द आम तौर पर पहरेदारी का काम करने वाले उन लोगों के लिए प्रयुक्त होता है जो रात-रात भर जागकर आपकी हमारी संपत्ति एवं जान-माल की रक्षा करते हैं। कई बार वह प्राण देकर भी अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हैं। इसके बावजूद ‘चौकीदार’ का स्थान समाज में सबसे निचले पायदान पर होता है तथा उसका कोई सम्मान नहीं करता। इन दिनों चुनाव में ‘चौकीदार’ शब्द का जमकर इस्तेमाल हो रहा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर भाजपा के तमाम दिग्गजों ने कांग्रेस के ‘चौकीदार’ अभियान का जवाब देने के लिए ट्विटर पर अपने नाम में चौकीदार शब्द जोड़ लिया है। भाजपा का दावा है कि देश की रक्षा करने की सामथ्र्य केवल उसी में है, भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की क्षमता केवल उसी में है तथा देश के शोषित-पीड़ित तबकों के हितों की रक्षा भी केवल वही कर सकती है इसीलिए वह देश की असली चौकीदार है। राजनीतिक हानि-लाभ से परे हटकर देखें तो देश का हर नागरिक चौकीदार है लेकिन इस शब्द को पहरेदारी करनेवाले वर्ग से जोड़ दिया गया है। दुर्भाग्य से हम चौकीदार की अपनी सामाजिक भूमिका को समझ ही नहीं पा रहे हैं। एक दौर था जब गांव में कोई अवांछित तत्व घुस आता था या कोई अप्रिय वारदात हो जाती तो लोग एकजुट होकर उसका मुकाबला करते थे। उसके पीछे भावना अपने आस-पड़ोस के साथ पूरे गांव की रक्षा करने की होती थी। यह भावना आज भी गांवों तथा कस्बों में कभी-कभी दिखाई दे जाती है लेकिन वह दम तोड़ने लगी है। 

आज हम हर समस्या के लिए सरकार को दोष देते हैं लेकिन यह नहीं जानते कि बतौर नागरिक हमारी भी वही जिम्मेदारियां हैं जिसकी एक चौकीदार से हम अपेक्षा करते हैं। हमारे पड़ोस में कुछ हो जाए, हमारे सामने किसी महिला या बच्ची के चीरहरण की साजिश हो, डकैती या चोरी अथवा तस्करी हो रही हो, हमारी आंखों के सामने तमाम अवैध काम हो रहे हों, किसी पर अन्याय-अत्याचार हो रहा हो, हमारे शहर-मोहल्ले के प्रति संबंधित अधिकारी उदासीन हों, हम चुपचाप देखते या सहन करते रहेंगे। समाज पर निगरानी रखने की अपनी जिम्मेदारी से हम मुंह मोड़ लेते हैं। आज हमें शिकायत है कि भ्रष्टाचार बढ़ रहा है, महिलाओं पर शारीरिक-मानसिक अत्याचार में वृद्धि हो रही है, मानव तस्करी हो रही है, धोखाधड़ी, चोरी, डकैती आए दिन की बात हो गई है। 

राशन का अनाज खुले बाजार में बिक रहा है, असामाजिक तत्व राजनीति में ज्यादा आ रहे हैं, ऐसे तत्व समाज पर हावी भी हो रहे हैं। हमें सोचना होगा कि इन सबके लिए हम कहां तक जिम्मेदार हैं। हम चौकीदार की तरह सजग होते और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह ईमानदारी से करते तो समाज इन तमाम बुराइयों से मुक्त रहता। ‘चौकीदार’ शब्द को चुनावी हथियार बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है मगर जब वह हथियार बन ही गया है तो प्रत्येक मतदाता को भी सजग चौकीदार बनकर यह सुनिश्चित करना होगा कि योग्य व्यक्ति को ही वोट मिले और वही जनप्रतिनिधि बने। हमें लोकतंत्र के चौकीदार की भूमिका निभानी पड़ेगी। 

Web Title: Editorial: Every citizen plays the role of chowkidar

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