संपादकीय: धरती का जीवन खतरे में, मिलकर बचाना होगा
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 28, 2019 06:28 PM2019-04-28T18:28:57+5:302019-04-28T18:28:57+5:30
धरती को हम तभी संरक्षित कर सकते हैं, जब अपने जंगलों को बचाएं, अपने पर्यावरण को हरा-भरा बनाए रखने के लिए ज्यादा से पेड़-पौधे लगाएं, प्राकृतिक जल स्त्रोतों की रक्षा करें, वन्य जीवों को संरक्षित करने के लिए आगे बढ़ें, बिजली, वाहनों आदि का कम इस्तेमाल कर प्रदूषण को रोकें.
वैज्ञानिकों के एक समूह के अनुसार पृथ्वी पर फैले जीवन की विपुल मात्र को बचाने की सालाना लागत 100 अरब डॉलर हो सकती है. इनका मानना है कि मानवनिर्मित जैव विविधता आपदा को रोकने के लिए समाज को शीघ्रता से आगे आना होगा. बहुत साल पहले महात्मा गांधी ने भारतवासियों को आधुनिक तकनीकों का अंधानुकरण करने के विरुद्ध सचेत किया था.
वह मानते थे कि पृथ्वी, वायु, जल तथा भूमि हमारे पूर्वजों से मिली संपत्ति नहीं हैं. वे हमारे बच्चों तथा आगामी पीढ़ियों की धरोहरें हैं. हमें वे जैसी मिली हैं उन्हें उसी रूप में भावी पीढ़ी को सौंपना होगा. फिलहाल, पृथ्वी ही एकमात्र ऐसा ग्रह है, जहां मानव जीवन संभव है, पर दुर्भाग्यवश, मनुष्य अपने स्वार्थ के चलते और भौतिक सुख भोगने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन कर रहा है, जिससे ग्लोबल वार्मिग जैसी गंभीर समस्या विकराल रूप धारण कर रही है और पर्यावरण प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है.
अस्तित्व का संकट
इससे न सिर्फ धरती के नष्ट होने का खतरा बढ़ रहा है, बल्कि मानव जीवन का अस्तित्व भी संकट में पड़ता दिखाई दे रहा है. वर्तमान में संचार उद्योग सबसे तेजी से फैलाने वाला उद्योग है और लगभग पूरी तरह इंटरनेट, सर्वर, डेटा कलेक्शन सेंटर और डिजिटल डेटा पर आधारित हो गया है. वैज्ञानिकों के अनुमान के विपरीत संचार उद्योग में बिजली की अत्यधिक खपत हो रही है और निकट भविष्य में इसके और बढ़ने का अनुमान है.
बिजली की खपत से कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है और विश्व का तापमान बढ़ रहा है. जीवन को बनाए रखने के लिए सूक्ष्म जगत और इस विशाल ब्रrांड को एक साथ मिलकर काम करना पड़ता है. सूक्ष्म बैक्टीरिया से लेकर जंगलों तक, हर घटक की एक महत्वपूर्ण भूमिका है. पिछली शताब्दी के दौरान, दुनिया के अधिकांश जंगल खत्म हो गए हैं.
वृक्षारोपण को देना होगा बढ़ावा
सर्वविदित है कि पेड़ हमें ऑक्सीजन देते हैं, जल को छानते और साफ करते हैं, हवा को शुद्ध करते हैं, खेतों में मिट्टी का कटाव रोकते हैं और हमें भोजन भी देते हैं. वह भी सब कुछ मुफ्त में. जंगलों का तेजी से विनाश पृथ्वी की क्षमता को गंभीर रूप से नष्ट कर रहा है. उधर, भारत जैसे विकासशील देशों में अब भी जनसंख्या का आकार तेजी से बढ़ते रहने के कारण संसाधनों की उपलब्धता और मांग में असंतुलन बन रहा है.
धरती को हम तभी संरक्षित कर सकते हैं, जब अपने जंगलों को बचाएं, अपने पर्यावरण को हरा-भरा बनाए रखने के लिए ज्यादा से पेड़-पौधे लगाएं, प्राकृतिक जल स्त्रोतों की रक्षा करें, वन्य जीवों को संरक्षित करने के लिए आगे बढ़ें, बिजली, वाहनों आदि का कम इस्तेमाल कर प्रदूषण को रोकें. आखिर, पृथ्वी दिवस की कल्पना में हम उस दुनिया का सपना साकार होना ही तो देखते हैं जिसमें दुनिया भर का हवा-पानी प्रदूषण मुक्त होगा!