संपादकीय: पासवान के आगे झुकना पड़ा भाजपा को 

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 25, 2018 05:16 AM2018-12-25T05:16:09+5:302018-12-25T05:16:09+5:30

बिहार में भाजपा पासवान तथा नीतीश के सामने झुककर घाटे में ही रही है.

Editorial: BJP Ramvilas Paswan and Bihar Politics | संपादकीय: पासवान के आगे झुकना पड़ा भाजपा को 

संपादकीय: पासवान के आगे झुकना पड़ा भाजपा को 

अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे पर बिहार में भाजपा को झुकना पड़ा है. राजनीति में कभी-कभी ऐसे हालात पैदा होते हैं, जिसमें बड़े से बड़े और सबसे ज्यादा ताकतवर दल को भी लचीला रुख अपनाकर झुकना ही पड़ता है. भारतीय राजनीति पूरी तरह जातिगत समीकरणों पर टिकी है. ऐसे में राजनीतिक दलों को अपना आधार बढ़ाने या उसे बचाने के लिए मन मार कर कुछ फैसले करने पड़ते हैं. 

बिहार में लोकसभा सीटों के बंटवारे पर भाजपा का जनता दल (यू) तथा रामविलास पासवान की लोक जनशक्तिपार्टी के साथ समझौता राजनीति के इसी सच का परिचायक है. केंद्र में सत्ता पाने की दृष्टि से उत्तर प्रदेश के बाद बिहार का सबसे ज्यादा महत्व है. वहां कांग्रेस तथा राजद ने उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी को अपने पाले में खींचकर भाजपा एवं जद (यू) के सव्रेसर्वा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी थी. 

पासवान यह संकेत देने लगे थे कि यदि सीटों का बंटवारा जल्दी नहीं हुआ तो वह भी कुशवाहा की तरह भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए का साथ छोड़ सकते हैं. पासवान को अपने साथ जोड़कर रखना भाजपा और नीतीश कुमार दोनों के लिए बेहद जरूरी था. मांझी महादलित और कुशवाहा कोइरी वोट बैंक पर प्रभाव रखते हैं. दोनों कांग्रेस-राजद के साथ जुड़ गए. इससे कांग्रेस-राजद की ताकत बढ़ गई और भाजपा-जदयू गठबंधन की जीत की संभावनाओं पर विपरीत असर पैदा होने के आसार पैदा हो गए थे. 

भाजपा किसी भी हालत में जोखिम मोल लेना नहीं चाहती थी. मांझी एवं कुशवाहा के जवाब में पासवान के सहारे दलित वोट बैंक को अपने पाले में रखना भाजपा के लिए बहुत जरूरी हो गया और आनन-फानन में सीटों के बंटवारे का फामरूला तय हो गया. इसके तहत भाजपा व जद (यू) 17-17 तथा पासवान की पार्टी 6 सीटों पर बिहार में लोकसभा का चुनाव लड़ेगी. पासवान ने समझौते के तहत अपने लिए राजस्थान की टिकट भी पक्की कर ली. बिहार में तेजी से बदलते घटनाक्रमों के बीच भाजपा के पास कोई विकल्प भी नहीं था. 

नीतीश कुमार भी सीटों के बंटवारे पर जल्दी समझौता न होने पर अलग राह पकड़ने का इशारा कर रहे थे. राजस्थान, म.प्र., छत्तीसगढ़ तथा तेलंगाना में हार के घाव ङोल रही भाजपा बिहार में कोई जोखिम मोल नहीं लेना चाहती थी. 2014 में उसने तथा जद (यू) ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. भाजपा को 22 तथा जद (यू) को महज दो सीटों पर सफलता मिली थी. भाजपा को नीतीश की पार्टी के लिए 17 सीटें छोड़नी पड़ी और खुद भी 17 सीटों से संतोष करना पड़ा. देश की मौजूदा राजनीति में इस वक्त भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को सबसे कुशल रणनीतिकार समझा जाता है मगर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार और उसके बाद बिहार में सीटों के बंटवारे ने स्पष्ट कर दिया कि राजनीति में कभी भी कोई स्थायी रूप से अजेय नहीं रहता. कुल मिलाकर बिहार में भाजपा पासवान तथा नीतीश के सामने झुककर घाटे में ही रही है.

Web Title: Editorial: BJP Ramvilas Paswan and Bihar Politics

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