डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: दो फैसले देश के और पाक का बवंडर !

By विजय दर्डा | Published: May 15, 2023 07:16 AM2023-05-15T07:16:57+5:302023-05-15T07:16:57+5:30

अच्छा हुआ महाराष्ट्र में सरकार की स्थिरता को लेकर जारी संशय खत्म हो गया है. दूसरी तरफ सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली में सरकार और एलजी की जंग को खत्म करने की कोशिश की है. निश्चय ही इससे महाराष्ट्र और दिल्ली के विकास की धारा कुछ तेज प्रवाहित होगी. लेकिन हमारा पड़ोसी पाकिस्तान अशांत है क्या शांति आएगी वहां?

Dr. Vijay Darda's blog: Two decisions from the country and Pakistan's whirlwind | डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: दो फैसले देश के और पाक का बवंडर !

डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: दो फैसले देश के और पाक का बवंडर !

इस कॉलम में अमूमन मैं किसी एक खास विषय पर अपना नजरिया रखता हूं, विश्लेषण करता हूं. लेकिन पिछले सप्ताह सर्वोच्च न्यायालय के दो महत्वपूर्ण फैसले आए जिनके परिणाम दूरगामी होंगे और पड़ोसी पाकिस्तान के भीतर इमरान और सेना के बीच संघर्ष ऐतिहासिक मोड़ पर जा पहुंचा है. मुझे लगता है कि इस सप्ताह इन तीनों विषयों का गहन विश्लेषण बहुत जरूरी है.

सबसे पहले बात महाराष्ट्र को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की! पिछले साल जून में शिवसेना में दो फाड़ हो गया था. उद्धव के भरोसेमंद माने जाने वाले साथी एकनाथ शिंदे और उनके साथी भाजपा के साथ जा मिले थे. उस वक्त के राज्यपाल बी.एस. कोश्यारी ने  उद्धव ठाकरे को विधानसभा के फ्लोर पर अपना बहुमत साबित करने का फरमान सुनाया था. फ्लोर टेस्ट से पहले ही उद्धव ने इस्तीफा दे दिया. भाजपा की नाव पर सवार होकर एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बन गए. शिंदे के मुख्यमंत्री बनते ही उद्धव सर्वोच्च न्यायालय चले गए और तब से सरकार की गर्दन पर तलवार लटकी हुई थी. सरकार की स्थिरता संशय में थी. 

जाहिर सी बात है कि जब सरकार की अस्थिरता की आशंका होती है तो पूरा सिस्टम ढीला पड़ जाता है. अधिकारियों को लगता है कि यह सरकार पता नहीं कितने दिन है? दूसरी सरकार आएगी तो नया नजरिया होगा. आम तौर पर अधिकारी ऐसी हालत में जो है, जैसा है, चलने दो का दृष्टिकोण अपना लेते हैं. इसका खामियाजा राज्य को उठाना पड़ रहा था.

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान  न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एम.आर. शाह, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी, न्यायमूर्ति हिमा कोहली तथा न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा ने फैसले में क्या कहा है यह आपको पता ही है. राज्यपाल के काम करने के तरीके पर गंभीर सवाल फिर उठा है.

न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि न तो संविधान और न ही कानून राज्यपाल को राजनीतिक क्षेत्र में प्रवेश करने और अंतर-पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है. मैं हमेशा कहता रहा हूं कि राज्यपाल को राजनीति में नहीं पड़ना चाहिए. राज्यपाल का पद किसी पार्टी विशेष का नहीं होता लेकिन भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य है कि ज्यादातर राज्यपाल दलगत राजनीति से ऊपर नहीं उठ पाते हैं. फिलहाल अब सरकार सुनिश्चित हो गई है तो राज्य विकास के मार्ग पर अबाध गति से दौड़े यह कामना की जानी चाहिए.

दिल्ली का दंगल

सर्वोच्च न्यायालय का दूसरा बड़ा फैसला दिल्ली सरकार और वहां के एलजी के बीच अधिकारों की रस्साकशी पर आया है. प्रधान  न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने स्पष्ट कर दिया है कि लोक व्यवस्था, पुलिस और जमीन जैसे विषयों को छोड़कर अन्य सेवाएं दिल्ली सरकार के पास होंगी. बेंच ने स्पष्ट रूप से कहा है कि नौकरशाहों पर निर्वाचित सरकार का नियंत्रण ही होना चाहिए. केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली का विशेष प्रकार का दर्जा है. 

इस फैसले का असर यह होगा कि विभिन्न विभागों के अधिकारी अब एलजी को नहीं बल्कि दिल्ली सरकार में संबंधित विभागों के मंत्री को रिपोर्ट करेंगे. दिल्ली सरकार अब अधिकारियों का स्थानांतरण भी कर सकेगी और उनके कामकाज की गोपनीय रिपोर्ट यानी सीआर भी दिल्ली सरकार ही लिखेगी. लेकिन खास कैडर के आईएएस अफसरों के सीआर रिव्यू का अधिकार उपराज्यपाल के पास होगा! 

देखने वाली बात है कि इस पर कितनी तकरार होती है. हालांकि इस फैसले ने सुनिश्चित किया है कि सरकार के कामकाज में एलजी का हस्तक्षेप बंद हो. यही होना भी चाहिए. लेकिन मुझे लगता है कि जमीन और पुलिस का मालिकाना हक भी दिल्ली सरकार के पास ही हो तो ज्यादा बेहतर रहेगा. पुलिस के बगैर कानून व्यवस्था कोई सरकार आखिर कैसे संभाल सकती है?

पाक में बवंडर

हमारी चर्चा का तीसरा विषय पड़ोसी देश पाकिस्तान का है और इस विषय में भी न्यायालय की भूमिका महत्वपूर्ण रही है. यह तो आप सब जान चुके हैं कि क्रिकेट की पिच पर बल्लेबाजों की धज्जियां उड़ाने वाले इमरान खान गिरफ्तार हुए और समर्थकों के भारी उपद्रव के बाद  न्यायालय के हस्तक्षेप से रिहा भी हो गए हैं. लेकिन इस मामले में जो गौर करने वाली बात है कि पाकिस्तान के इतिहास में यह पहला मौका है जब प्रदर्शनकारियों ने सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया है. रावलपिंडी स्थित सेना मुख्यालय में प्रदर्शनकारी घुस गए, दूसरे सैन्य प्रतिष्ठानों पर पत्थर फेंकने की घटनाएं हुई हैं.

जरा सोचिए कि पाकिस्तान का आम आदमी अपनी सेना से कितना तंग आ चुका है कि उसके हाथों ने पत्थर उठा लिए. लोगों को साफ लग रहा है कि इमरान खान के बढ़ते कद और तीखे तेवर से सेना चिढ़ी हुई है. वहां की कठपुतली सरकार के कंधे पर बंदूक रखकर वह हर हाल में इमरान खान को तबाह कर देना चाहती है लेकिन इमरान खान का कद वाकई इस वक्त बहुत बड़ा हो गया है. आटा-दाल के लिए भी मोहताज अवाम इमरान के साथ खड़ी हो गई है.

न्यायालय ने इमरान को फिलहाल रिहाई दे दी है लेकिन इस वक्त का बड़ा सवाल यह है कि मजबूत इरादों वाले इमरान क्या वाकई पाक सेना को शिकस्त देने की ताकत रखते हैं या फिर सेना का विरोध करने वाले अन्य नेताओं की तरह उनका भी सफाया हो जाएगा? अभी कहना जरा मुश्किल है लेकिन हमें इमरान की सफलता के लिए जरूर दुआ करनी चाहिए. यही भारत के हक में है..!

Web Title: Dr. Vijay Darda's blog: Two decisions from the country and Pakistan's whirlwind

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