डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: कोरोना से चुनौतियों के नए आयाम 

By डॉ एसएस मंठा | Published: April 7, 2020 02:04 PM2020-04-07T14:04:43+5:302020-04-07T14:04:43+5:30

Dr. S.S. Mantha's blog: new dimensions of challenges from Corona | डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: कोरोना से चुनौतियों के नए आयाम 

लोकमत फाइल फोटो

Highlights एक शोध रिपोर्ट के अनुसार इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि सामाजिक अलगाव और अकेलापन समय से पहले मृत्यु के जोखिम को बढ़ाता है. सामाजिक अलगाव का मोटापा, धूम्रपान और शारीरिक निष्क्रियता के समान ही बुरा असर पड़ता है.

डॉक्टरों द्वारा मरीजों के इलाज के लिए अपनी तरफ से हरसंभव कोशिश करने के बावजूद कोविड-19 ने स्वास्थ्य क्षेत्र की अपर्याप्तता और उस पर पड़ने वाले दबावों को उजागर किया है. वर्ष 2005 के बाद से ही स्वास्थ्य सेवा की अधिकांश क्षमता निजी क्षेत्र में या निजी क्षेत्र के साथ साझेदारी में रही है. निजी क्षेत्र में देश के 58 प्रतिशत अस्पताल और 81 प्रतिशत डॉक्टर हैं.

देश में तीन हफ्ते के लॉकडाउन के जो प्रभाव पड़ने वाले हैं, वे भी कम चिंताजनक नहीं हैं. पहली बात तो यह कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और उसका अलगाव में रहना मुश्किल होता है. दूसरे, डर और चिंता का युवा एवं बुजुर्ग दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है. अमेरिकन जर्नल ऑफ एपिडेमियोलॉजी में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के अनुसार इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि सामाजिक अलगाव और अकेलापन समय से पहले मृत्यु के जोखिम को बढ़ाता है.

रिपोर्ट के अनुसार सामाजिक अलगाव का मोटापा, धूम्रपान और शारीरिक निष्क्रियता के समान ही बुरा असर पड़ता है. अलगाव में रहने वाले अन्य बीमारियों के प्रति भी ज्यादा संवेदनशील होते हैं. शोधकर्ताओं ने पाया है कि समूह के बजाय अकेले में रहने वाले व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस से लड़ने के लिए अलग तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त करती है, जिससे उनमें नई बीमारी विकसित होने की आशंका अधिक होती है.

इसकी जिस तरह भी हो सके, क्षतिपूर्ति किया जाना जरूरी है. क्या लोगों को रोजगार के होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए हर जनधन खाते में पांच हजार रु. नहीं डाले जा सकते? क्या सभी कंपनियों को सरकार द्वारा किए जाने वाले भुगतान जल्दी जारी किए जा सकते हैं? क्या सभी कर वापसी मामलों को जल्दी संसाधित किया जा सकता है? इसका मतलब होगा कि संकट को संभालने के लिए कंपनियों के हाथ में अधिक नकदी होगी. इसके अलावा कच्चे तेल की कीमतें गिरने से हर माह करीब 45 हजार करोड़ रु. की बचत हो रही है. इसे ऐसे फंड में परिवर्तित किया जा सकता है जिसका उपयोग वर्तमान में कोरोना संकट से लड़ने के लिए और बाद में चिकित्सा सुविधाएं जुटाने के लिए किया जा सके.

 

Web Title: Dr. S.S. Mantha's blog: new dimensions of challenges from Corona

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