डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः रोजगार सृजन के बिना किस काम का आरक्षण?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 1, 2019 07:49 AM2019-02-01T07:49:37+5:302019-02-01T07:49:37+5:30

दुनिया भर के समाजों में असमानताएं प्राचीन काल से ही मौजूद हैं. उनसे अलग-अलग तरीकों से निपटा जाता रहा है.

Dr. S. S. Manda's Blog: Which job reservation is without job creation? | डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉगः रोजगार सृजन के बिना किस काम का आरक्षण?

सांकेतिक तस्वीर

यदि राजनीतिक पंडितों और राजनीतिक दलों के कुछ वर्गो पर विश्वास किया जाए तो समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को दस प्रतिशत आरक्षण देने के सरकार के फैसले से राजग के सहयोगियों के बीच फिर से विश्वास बहाली में मदद मिली है, जिनमें हाल के दिनों में कुछ तनाव देखने को मिल रहा था. लेकिन जब रोजगार के अवसर ही कम हों तो नौकरियों में आरक्षण क्या किसी पार्टी की सत्ता में वापसी की गारंटी हो सकता है? यदि ऐसा होता है तो इसे सदी का सबसे महत्वपूर्ण सुधार होना चाहिए. लेकिन हालात जो कहानी कहते हैं वह शायद इतनी सीधी नहीं है. एक ऐसे देश में, जिसकी 1.3 अरब की आबादी में 65 प्रतिशत युवा हों, 30 साल से कम आयुवर्ग में हों, अगर शासक वर्ग को बिना किसी रुकावट के शासन करना है तो उन्हें लाभदायक रोजगार देने में सक्षम होना ही चाहिए.

दुनिया भर के समाजों में असमानताएं प्राचीन काल से ही मौजूद हैं. उनसे अलग-अलग तरीकों से निपटा जाता रहा है. आजादी के पहले, ब्रिटिश भारत में भी कुछ निश्चित जातियों और समुदायों के पक्ष में अलग से कोटा रखा गया था.  स्वतंत्रता पूर्व के ब्रिटिश राज में भारत सरकार के 1909 के अधिनियम के तहत मुस्लिमों, सिखों, भारतीय ईसाइयों, एंग्लो इंडियन और यूरोपीय लोगों के लिए अलग से आरक्षण प्रदान किया गया था. 1932 में तत्कालीन सरकार ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए चुनावों में कुछ निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित किए थे.

भारत में नौकरियों की उपलब्धता के बारे में अनुमान लगाना जटिल है, क्योंकि 90 प्रतिशत से अधिक नौकरियां गैरसरकारी क्षेत्र में हैं. पक्ष और विपक्ष दोनों ने इस संबंध में अपनी सुविधा के हिसाब से बहुत सारे आंकड़े उद्धृत किए हैं. प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की ओर से जो पृष्ठभूमि पत्र जारी किया गया है, उसमें दावा किया गया है कि ‘हालांकि 2015 के बाद कोई आधिकारिक रोजगार सव्रेक्षण नहीं हुआ है, लेकिन अलग-अलग ऐसे कई आंकड़े हैं जो रोजगार में स्वस्थ वृद्धि का संकेत देते हैं.’

इसमें निष्कर्ष निकाला गया है कि ‘2013 से 2017 की अवधि में शुद्ध रोजगार सृजन 2.1 करोड़ था, जो कि 2004-05 से 2011-12 की अवधि के 1.1 करोड़ रोजगार सृजन की तुलना में बहुत अधिक है.’ लेकिन जब आबादी बढ़ती है तो श्रम बल भी बढ़ता है. इसलिए बेरोजगारी दर को जनसंख्या के अनुपात में देखना चाहिए था. श्रम और रोजगार मंत्रलय की 2017-18 की वार्षिक रिपोर्ट बताती है कि 2011-12 से 2015-16 में जनसंख्या और श्रमबल का अनुपात 51 से गिरकर 48 पर पहुंचा है और बेरोजगारी दर 3.8 प्रतिशत से बढ़कर पांच प्रतिशत पर पहुंच गई है. 

ऐसे हालात में, रोजगार सृजन की दर बढ़ाने के बजाय रोजगार में आरक्षण बढ़ाना कितना लाभकारी हो सकता है ?

Web Title: Dr. S. S. Manda's Blog: Which job reservation is without job creation?

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