डॉ. एस.एस. मंठा का ब्लॉग: विपक्ष को बदलनी होगी अपनी कार्यशैली
By डॉ एसएस मंठा | Published: July 8, 2019 12:38 PM2019-07-08T12:38:50+5:302019-07-08T12:38:50+5:30
लोकतांत्रिक राजनीति में विपक्ष का महत्वपूर्ण स्थान होता है. लेकिन विपक्ष के संख्या बल को देखते हुए क्या ऐसा नहीं लगता कि बदलते समय के साथ उसकी भूमिका पर पुनर्विचार करने की जरूरत है? विपक्ष को अपनी काम करने की पद्धति में बदलाव लाना होगा.
भाजपा ने विगत लोकसभा चुनाव में अपने दम पर 303 सीटें हासिल कीं, जो कि कुल जनादेश का 56 प्रतिशत है. जबकि उसके गठबंधन अर्थात राजग की सीटों को भी जोड़ लिया जाए तो यह 65 प्रतिशत हो जाता है. तो क्या यह मान लिया जाए कि बाकी 35 प्रतिशत सीटें विरोधियों को मिली हैं? हकीकत में ऐसा नहीं है.
दूसरी सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस को 9.6 प्रतिशत सीटें मिली हैं और इसमें संप्रग को भी मिला लिया जाए तो प्राप्त सीटों का प्रतिशत 16.8 हो जाता है. द्रमुक, तृणमूल कांग्रेस और वाईएसआर कांग्रेस ये सब क्षेत्रीय दल हैं, जिनके बीच कोई समानता नहीं है. इनमें से प्रत्येक ने चार प्रतिशत सीटें हासिल की हैं. द्रमुक को तमिलनाडु की सत्ता में आने की उम्मीद है.
वह सत्ताधारी पक्ष का विरोध नहीं कर सकती, इसलिए वह तटस्थ रहने की नीति अपनाएगी. तृणमूल कांग्रेस ऐसा लगता है कि भटकाव की स्थिति में है. जबकि वाईएसआर कांग्रेस ने सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ अनुकूल रुख दिखाया है. इस प्रकार सत्तारूढ़ गठबंधन की सीटों का प्रतिशत 65 से बढ़कर 69 हो गया. बीजद, टीआरएस और बसपा में से प्रत्येक की दो-दो प्रतिशत सीटें हैं.
इनमें से पहले दो दलों के सत्तारूढ़ दल को ही समर्थन देने की संभावना है, जिससे उसका संख्याबल 73 प्रतिशत हो जाता है. बसपा की हालत द्रमुक से अलग नहीं है. बचे दलों की संख्या बीस है, लेकिन उनका संख्याबल इतना कम है कि अगर मतदान की बारी आई तो वे सत्तारूढ़ गठबंधन के साथ जाना ही पसंद करेंगे.
इस प्रकार लोकसभा में मतदान की जरूरत पड़ने पर सत्तारूढ़ गठबंधन को 80 से 85 प्रतिशत मत मिल सकते हैं. इस प्रकार पांच वर्षो तक लोकसभा में भाजपा का ही दबदबा रहेगा. राज्यसभा में भी सत्तारूढ़ गठबंधन के पास वर्तमान में बहुमत हासिल करने लायक सीटें हैं और शीघ्र ही यह संख्या बढ़कर 150 तक पहुंच जाने की संभावना है.
लोकतांत्रिक राजनीति में विपक्ष का महत्वपूर्ण स्थान होता है. लेकिन विपक्ष के संख्या बल को देखते हुए क्या ऐसा नहीं लगता कि बदलते समय के साथ उसकी भूमिका पर पुनर्विचार करने की जरूरत है? विपक्ष को अपनी काम करने की पद्धति में बदलाव लाना होगा.
सरकार द्वारा उठाए जाने वाले प्रत्येक कदम का विरोध करने के बजाय उसे सिर्फ उन्हीं मुद्दों को उठाकर मजबूती से डटे रहना होगा जो वास्तव में जनकल्याण के विपरीत हों.