ब्लॉग: पूर्वोत्तर के विकास के दरवाजे खोलने वाला ऐतिहासिक समझौता

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 5, 2024 10:33 AM2024-09-05T10:33:43+5:302024-09-05T10:35:51+5:30

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भारत सरकार, त्रिपुरा सरकार, नेशनल एग्रेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा तथा ऑल त्रिपुरा टाइगर्स फोर्स के बीच समझौते हुए. 

doors to the development of historical settlement | ब्लॉग: पूर्वोत्तर के विकास के दरवाजे खोलने वाला ऐतिहासिक समझौता

(प्रतीकात्मक तस्वीर)

Highlightsउग्रवाद से ग्रस्त पूर्वोत्तर भारत के एक और राज्य त्रिपुरा में शांति की दिशा में बुधवार को बेहद महत्वपूर्ण तथा ऐतिहासिक सफलता मिली.देश को उग्रवाद तथा आतंकवाद ने बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. त्रिपुरा ने भी इन पूर्वोत्तर राज्यों के साथ उग्रवाद की पीड़ा को झेला है.

उग्रवाद से ग्रस्त पूर्वोत्तर भारत के एक और राज्य त्रिपुरा में शांति की दिशा में बुधवार को बेहद महत्वपूर्ण तथा ऐतिहासिक सफलता मिली. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में भारत सरकार, त्रिपुरा सरकार, नेशनल एग्रेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा तथा ऑल त्रिपुरा टाइगर्स फोर्स के बीच समझौते हुए. 

इस समझौते के फलस्वरूप 10 हजार युवक हथियार छोड़कर विकास की मुख्य धारा में शामिल हो जाएंगे और वर्षों से खूनखराबा झेल रहे त्रिपुरा के बड़े हिस्से में शांति, स्थिरता एवं विकास का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा. देश को उग्रवाद तथा आतंकवाद ने बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाया है. 

पंजाब और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद दम तोड़ चुका है, नक्सलवादियों के आतंक से देश के बड़े हिस्से को मुक्ति मिल गई है लेकिन पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में छापामार संगठन अभी भी सक्रिय हैं. मिजोरम, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, अरुणाचल प्रदेश के साथ-साथ असम में स्वायत्तता एवं विकास के नाम पर भारत सरकार से सशस्त्र संघर्ष करने वाले कई संगठनों ने हथियार डाल दिए हैं. 

इससे हजारों युवक हथियार छोड़कर राष्ट्र निर्माण में रचनात्मक भूमिका निभाने लगे हैं और घोर पिछड़ेपन का सामना कर रहे इन राज्यों में पिछले एक दशक से विकास की लहर चलने लगी है. त्रिपुरा ने भी इन पूर्वोत्तर राज्यों के साथ उग्रवाद की पीड़ा को झेला है. इसका असर उसके विकास पर पड़ा है. 

नतीजा यह हुआ कि आजादी के बाद अरबों-खरबों रु. खर्च करने के बाद  भी त्रिपुरा में अपेक्षित विकास नहीं हो सका और आज भी यह राज्य देश के सबसे बड़े गरीब एवं पिछड़े इलाकों में शामिल है. सन् 2014 में सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने अशांत पूर्वाेत्तर क्षेत्र में उग्रवादी हिंसा से मुक्त विकास सुनिश्चित करने के लिए ठोस प्रयास किए. 

त्रिपुरा तथा अन्य पूर्वोत्तर राज्यों को न केवल ज्यादा बजटीय आवंटन हुआ बल्कि इन राज्यों में सक्रिय उग्रवादी समूह को बातचीत के टेबल पर लाने की दिशा में भी गंभीरता से प्रयास शुरू हुए. इसके सकारात्मक नतीजे निकले. देश की सुरक्षा के लिहाज से उत्तरी राज्यों की तरह ही पूर्वोत्तर क्षेत्र भी अत्यंत  संवेदनशील है. भारत में अशांति तथा अस्थिरता फैलाने की साजिश के तहत चीन पूर्वाेत्तर सीमा से भारत में घुसपैठ तो करवाता ही है, साथ ही इन राज्यों में सक्रिय छापामार संगठनों की मदद भी करता है. 

पूर्वोत्तर सीमा से लगे म्यांमार में भारत के विरुद्ध सशस्त्र संघर्ष में उलझे तमाम उग्रवादी समूहों को सैन्य प्रशिक्षण एवं हथियार चीन ही देता है. पूर्वोत्तर में कुछ उग्रवादी संगठनों ने चीन के उकसावे पर भारत से अपने क्षेत्र को अलग कर स्वतंत्र देश बनाने की मांग को लेकर भी हथियार उठाए. चीन की यह चाल नाकाम ही रही क्योंकि उग्रवादी संगठनों की समझ में आ गया है कि चीन उनके कंधों पर रखकर बंदूक चला रहा है और उनके संघर्ष को स्थानीय जनता का समर्थन हासिल नहीं है. इन उग्रवादी समूहों को समय के साथ-साथ जनता के आक्रोश तथा असहयोग का भी सामना करना पड़ा. 

सरकार ने  इन संगठनों  के खिलाफ सघन अभियान भी चलाया और उनकी  कमर तोड़ दी. लेकिन इसके बावजूद पूर्वोत्तर में उग्रवाद पूरी तरह से खत्म नहीं हो पाया था. सरकार ने शांतिवार्ता के लिए कूटनीतिक तरीके अपनाए, पूर्वोत्तर में विकास पर जाेर देकर जनता का दिल जीता और साथ ही उग्रवादी संगठनों में यह भरोसा पैदा करने में सफल हुई कि वह पूर्वोत्तर राज्यों की आदिवासी जनता की मूल संस्कृति, जनजातीय पहचान तथा विकास के लिए प्रतिबद्ध है. इसके सकारात्मक परिणाम सामने आए और पिछले एक दशक में दर्जनभर से ज्यादा उग्रवाद संगठनों ने पूर्वोत्तर में हथियार डाले. 

त्रिपुरा में उग्रवाद अन्य पूर्वोत्तर राज्यों के बाद आया. आदिवासियों को बाहरी ताकतों ने गुमराह किया कि भारत सरकार उनकी  मूल पहचान तथा संस्कृति को खत्म करना चाहती है. त्रिपुरा के आदिवासी युवक इससे गुमराह होने लगे. गरीबी तथा बेरोजगारी के कारण त्रिपुरा के आदिवासी युवक आसानी से गुमराह होने लगे और त्रिपुरा अशांत राज्यों की श्रेणी में आ गया. 1971 में सबसे पहले त्रिपुरा उपजाति जुबा समिति का गठन हुआ. 

दस साल बाद त्रिपुरा नेशनल वालंटियर्स, 1989 में नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा, ऑल त्रिपुरा टाइगर्स फोर्स सामने आए. इन संगठनों को चीन ने इतना ज्यादा उकसाया कि वे त्रिपुरा के लिए संप्रभुता की मांग करने लगे और उन्होंने भारत में त्रिपुरा के विलय पर सवाल खड़ा कर दिया. इन संगठनों ने अपने ही देश की सरकार के विरुद्ध हथियार उठाए. भारत सरकार के कड़े रवैये, पलटवार के कारण इन संगठनों के इरादे सफल नहीं हुए. 

लेकिन त्रिपुरा का विकास प्रभावित होता रहा. बुधवार को हुआ समझौता शांति, विकास तथा लोकतंत्र के जरिये जनकल्याण में विश्वास करने वाली ताकतों की जीत है. यह भारत सरकार की ऐसी उपलब्धि है जो त्रिपुरा के विकास की दृष्टि से मील का पत्थर साबित होने के साथ-साथ समूचे पूर्वोत्तर में उग्रवाद की कमर तोड़ने में भी निर्णायक साबित होगी.

Web Title: doors to the development of historical settlement

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