प्रदीप सरदाना का ब्लॉगः नाजुक अवस्था में पहुंचते चिकित्सक-मरीज के रिश्ते
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: July 1, 2019 11:01 AM2019-07-01T11:01:30+5:302019-07-01T11:01:30+5:30
एक जुलाई 1882 को पटना में जन्मे बिधान चंद्र रॉय ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से चिकित्सा विज्ञान में डिग्री के साथ लंदन से एमआरसीपी और एफआरसीपी की भी डिग्री प्राप्त की. इसके बाद सन 1911 में स्वदेश लौट कर उन्होंने चिकित्सा क्षेत्न में ऐसे कई महान कार्य किए जो आज भी स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हैं.
प्रदीप सरदाना
भारत एक ऐसा देश है जहां लोग चिकित्सकों में अपना भगवान देखते हैं. यूं दुनिया भर में अधिकतर लोग डॉक्टर्स पर भरोसा करते हैं. यही कारण है कि आज विश्व के बहुत से देशों में अलग-अलग तिथियों को ‘डॉक्टर्स डे’ मनाया जाता है. हमारा एक जुलाई को ‘चिकित्सक दिवस’ मनाने का कारण भी वह महान चिकित्सा विभूति डॉ. बिधान चंद्र रॉय हैं, जिन्होंने चिकित्सा और समाज सेवा क्षेत्न में अनेक आदर्श कार्य किए.
एक जुलाई 1882 को पटना में जन्मे बिधान चंद्र रॉय ने कलकत्ता विश्वविद्यालय से चिकित्सा विज्ञान में डिग्री के साथ लंदन से एमआरसीपी और एफआरसीपी की भी डिग्री प्राप्त की. इसके बाद सन 1911 में स्वदेश लौट कर उन्होंने चिकित्सा क्षेत्न में ऐसे कई महान कार्य किए जो आज भी स्वर्ण अक्षरों में दर्ज हैं.
डॉ. रॉय ने मेडिकल की दो बड़ी संस्थाएं ‘मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया’ और ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ की स्थापना में अहम भूमिका निभाई. आजादी के बाद वे पहले उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बने, फिर 1948 में प. बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्नी. प. बंगाल के महान वास्तुकार के रूप में भी डॉ. रॉय को याद किया जाता है. वह करीब 14 साल प. बंगाल के मुख्यमंत्नी रहे. यह भी संयोग है कि जहां उनकी जन्म तिथि एक जुलाई है वहीं उनका निधन भी 1962 में एक जुलाई को हुआ. डॉ. बीसी रॉय के सम्मान में ही सन 1991 से भारत सरकार ने एक जुलाई को ‘डॉक्टर्स डे’ मनाने की शुरु आत की.
रोगियों के रिश्तेदारों ने पिछले दिनों कोलकाता में जिस तरह का तूफान मचाया उसके विरुद्ध देश के तमाम डॉक्टर्स उतर आए. ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ की इस बार ‘डॉक्टर्स डे’ की थीम -‘चिकित्सकों और चिकित्सीय संस्थाओं के विरु द्ध हिंसा के प्रति शून्य सहिष्णुता’, डॉक्टर्स की इसी चिंता को दर्शाती है.
यह सही है कि अधिकतर डॉक्टर्स अपने मरीज को ठीक करने और उसकी जान बचाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा देते हैं. लेकिन उनके प्रयास हर हाल में सफल होंगे, इसकी गारंटी कोई नहीं दे सकता. आज अस्पतालों में मरीजों की अधिक संख्या के चलते बहुत से डॉक्टर्स को तो भारी दबाव में काम करना पड़ता है. सरकारी अस्पताल में तो संसाधनों की कमी में भी मरीजों के बीच घिरकर डॉक्टर्स बड़ी मुश्किल से काम कर पाते हैं. ऐसे में जब डॉक्टर्स मरीज को ठीक करने के लिए जूझ रहे होते हैं, तब उनके साथ कोई मारपीट या गाली-गलौज करे तो डॉक्टर्स काम कैसे करेंगे.