डेरेक ओ’ ब्रायन का ब्लॉग: देश को जवाब देना केंद्र सरकार की जवाबदेही

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: May 26, 2020 06:16 AM2020-05-26T06:16:37+5:302020-05-26T06:16:37+5:30

किसी भी संस्थान-कंपनी, सांस्कृतिक संगठन, राजनीतिक पार्टी या सरकार-के चरित्र को उसकी ट्रेडमार्क शब्दावली, उसके द्वारा अक्सर उपयोग किए जाने वाले शब्दों और वाक्यांशों के प्रयोग से पहचाना जा सकता है.

Derek O'Brien's Blog: Responding to the country Central Government Accountability | डेरेक ओ’ ब्रायन का ब्लॉग: देश को जवाब देना केंद्र सरकार की जवाबदेही

डेरेक ओ’ ब्रायन का ब्लॉग: देश को जवाब देना केंद्र सरकार की जवाबदेही

पिछले दो माह भीषण ढंग से नुकसानदेह रहे हैं. यह अनुभव कोविड-19 महामारी के खिलाफ चलने वाली शेष लंबी लड़ाई के लिए एक सबक है. यह शासन और नियोजन, केंद्र-राज्य संबंधों और  नागरिकों की देखभाल और गरिमा की रक्षा पर सरकार की नीतियों की सुसंगतता के बारे में भी बहुत कुछ बताता है.

बेशक, सबसे कठिन सवाल नई दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की सरकार के लिए रहेंगे. उसने राज्य सरकारों से सलाह-मशविरा किए बिना, नागरिकों को सिर्फ चार घंटे का नोटिस देकर संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी. इसे हम किस तरह देखें? भाषा एक संकेत प्रदान करती है.

किसी भी संस्थान-कंपनी, सांस्कृतिक संगठन, राजनीतिक पार्टी या सरकार-के चरित्र को उसकी ट्रेडमार्क शब्दावली, उसके द्वारा अक्सर उपयोग किए जाने वाले शब्दों और वाक्यांशों के प्रयोग से पहचाना जा सकता है. भाजपा सरकार के लिए ये शब्द हैं ‘मास्टर स्ट्रोक’, ‘सर्जिकल स्ट्राइक’, ‘शॉक ट्रीटमेंट’ और ‘गोपनीयता’. ये अचानक ही नाटकीय ढंग से उछाले जाते हैं जिनमें नियोजन की तो बात ही छोड़ दीजिए.

एक दशक से कुछ पहले, लेखक-एक्टिविस्ट नाओमी क्लेन ने ‘द शॉक डॉक्ट्रिन : द राइज ऑफ डिजास्टर कैपिटलिज्म’ नामक एक किताब लिखी थी. यह समाज के पुनर्गठन के लिए बिना किसी ठोस योजना के उठाए गए कदम के खिलाफ एक चेतावनी थी कि ये कैसे आपदा का कारण बन सकती है. ‘शॉक डॉक्ट्रिन’ को बढ़ावा देने वाले संकट की स्थिति और सत्ताधारियों पर भरोसा करने वाली जवाब के इंतजार में बैठी जनता का लाभ उठाते हैं.

24 मार्च को रात आठ बजे लॉकडाउन की घोषणा के बाद से मैंने कई बार सुश्री क्लेन और उनकी पुस्तक के बारे में सोचा है. यह सब इस तरह से किए जाने की जरूरत नहीं थी. मार्च के पहले तीन सप्ताह कें द्र सरकार द्वारा बर्बाद कर दिए गए थे. पांच मार्च को तृणमूल कांग्रेस ने पत्र लिखा और आग्रह किया कि कोविड-19 के बारे में योजना बनाने की खातिर आपातकालीन बैठकों के लिए संसदीय समितियों का गठन किया जाए.

उसी दिन प. बंगाल सरकार ने भावी कोविड-19 रोगियों के लिए आइसोलेशन वार्ड बनाना शुरू कर दिए. अगले दिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने क्विक रिस्पॉन्स टीमों का गठन किया. कें द्र ने कुछ नहीं किया. दो हफ्ते की कोशिशों के बाद हताश होकर तृणमूल कांग्रेस ने अंतत: दोनों सदनों से अपने सांसदों को वापस ले लिया. प. बंगाल में ममता बनर्जी ने कें द्र की घोषणा के पहले ही आंशिक लॉकडाउन शुरू कर दिया था.

चूंकि भाजपा सरकार ने इतने दिनों की देरी से काम शुरू किया, इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि एक विस्तृत खाका सामने लाया जाएगा. इनमें से एक प्रवासी श्रमिकों का मुद्दा तो स्पष्ट था. वास्तव में 26 मार्च को ही सुश्री बनर्जी ने अन्य राज्यों में समकक्षों को पत्र लिखकर अनुरोध किया था कि वे प. बंगाल के उनके यहां फंसे हुए श्रमिकों की देखभाल करें और वादा किया कि उनके राज्य में फंसे श्रमिकों का प. बंगाल खयाल रखेगा. इसके बाद प. बंगाल ने बिना किसी शोर-शराबे के, देश भर में फंसे चार लाख श्रमिकों में से प्रत्येक के लिए एक लाख रु. भेजे.

सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार केवल शारीरिक अधिकार नहीं है बल्कि इसमें मानवीय गरिमा के साथ जीने का अधिकार शामिल है. लेकिन कई वंचित नागरिकों, विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों के साथ जैसा बर्ताव किया गया, वह पूरी तरह से मानवीय गरिमा का उल्लंघन था. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि सड़कों और राजमार्गों पर कोई मजदूर नहीं हैं.

यह उस समय था जब सोशल मीडिया (और केवल एक या दो साहसी टेलीविजन चैनल) मीलों मील पैदल चलने वाले श्रमिकों के दृश्यों से पटे पड़े थे. प्रवासी श्रमिकों के लिए अंतरराज्यीय यात्रा के दिशानिर्देशों को लॉकडाउन के लगभग एक महीने बाद जारी किया गया. यह सब बहुत ही निष्ठुर था.
हम सब औरंगाबाद की उस दुखद घटना के बारे में जानते हैं जिसमें मालगाड़ी के नीचे आकर 16 प्रवासी कामगारों की मौत हो गई थी. हाईवे पर चलने वाले अन्य लाखों मजदूरों की तरह वे भी पैदल अपने गांव जा रहे थे और थककर रेल पटरियों पर ही सो गए थे.

एक मई को प्रवासी श्रमिक ट्रेनें बहुत धूमधाम से शुरू हुई. यहां भी केंद्र ने कठोर हृदयता दिखाई. उसने प्रवासी श्रमिकों से किराया वसूलने की बात कहते हुए राज्य सरकारों को इसकी जिम्मेदारी सौंपी. राज्य सरकारों ने बड़ी जिम्मेदारी दिखाई. प. बंगाल ने कोटा, वेल्लोर, चेन्नई और भारत के अन्य हिस्सों में फंसे लोगों को घर लाने के लिए भुगतान किया.

हमने अपने डेढ़ लाख लोगों का स्वागत किया और पूरी उदारता के साथ ऐसा किया. कुछ लोगों को लगता होगा कि केंद्र के पास धन की कमी है और राज्य सरकारों के पास भरपूर पैसा है.लेकिन यह सच से कोसों दूर है. अचानक किए गए लॉकडाउन ने राज्यों को तैयार होने का मौका नहीं दिया और उनका राजस्व गिर गया. इसके अलावा केंद्र,  मदद के लिए तैयार नहीं है. इन सभी मुद्दों पर केंद्र सरकार को जवाब देना होगा.

Web Title: Derek O'Brien's Blog: Responding to the country Central Government Accountability

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