ब्लॉग: क्या देश के तटीय राज्य खतरे की चपेट में! सिकुड़ती समुद्री तट रेखा से पैदा हो रहा संकट
By पंकज चतुर्वेदी | Published: May 24, 2023 12:27 PM2023-05-24T12:27:14+5:302023-05-24T12:31:02+5:30
केंद्र सरकार की ओर से एनमसीसीआर ने ताजा आंकड़े जारी किए हैं जिसके अनुसार, देश के तटीय राज्य जल्द तट सीमा कटाव से संकट का सामना कर सकते हैं।
केंद्र सरकार के वन तथा पर्यावरण मंत्रालय के अंतर्गत नेशनल सेंटर फॉर कोस्टल रिसर्च(एनसीसीआर) की एक ताजातरीन रिपोर्ट चेतावनी दे रही है।
देश की समुद्री सीमा कटाव और अन्य कारणों के चलते सिकुड़ रही है और यह कई गंभीर पर्यावरणीय, सामाजिक और आजीविका के संकटों की जननी है।
अकेले तमिलनाडु में राज्य के कुल समुद्र किनारों का कोई 42.7 प्रतिशत हिस्सा संकुचन का शिकार हो चुका है। हालांकि कोई 235.85 किमी की तट रेखा का विस्तार भी हुआ है।
जब समुद्र के किनारे कटते हैं तो उसके किनारे रहने वाले मछुआरों, किसानों और बस्तियों पर अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाता है। सबसे चिंता की बात यह है कि समुद्र से जहां नदियों का मिलन हो रहा है, वहां कटाव अधिक है और इससे नदियों की पहले से खराब सेहत और बिगड़ सकती है।
ओडिशा के छह जिलों- बालासोर, भद्रक, गंजम, जगतसिंहपुर, पुरी और केन्द्रपाड़ा की लगभग 480 किमी समुद्र रेखा पर भी कटाव का संकट गहरा गया है।
ओडिशा जलवायु परिवर्तन कार्य योजना – 2021-2030 में बताया गया है कि राज्य में 36.9 फीसदी समुद्र किनारे तेजी से समुद्र में टूटकर गिर रहे हैं। जिन जगहों पर ऋषिकुल्य, महानदी आदि समुद्र में मिलती हैं उन स्थानों पर भूमि कटाव की रफ्तार ज्यादा है।
ओडिशा में प्रसिद्ध बंदरगाह पारादीप के एर्सामा ब्लोक के सियाली समुद्र तट पर खारे पानी का दायरा बढ़ कर सियाली, पदमपुर, राम्तारा, संखा और कलादेवी गांवों के भीतर पहुंच गया है, करीबी जिला मुख्यालय जगतसिंहपुर में भी समुद्र के तेज बहाव से भूमि कटने का कुप्रभाव सामने आ रहा है।
पारादीप के समुद्र किनारे के बगीचे, वहां बने नाव के स्थान, महानदी के समुद्र में मिलने के समागम स्थल तक पर समुद्र के बढ़ते दायरे ने असर डाला है।
हालांकि बंगाल में समुद्री किनारे महज 210 किमी में हैं लेकिन यहां कटाव के हालात सबसे भयावह हैं।
यूनिवर्सिटी ऑफ केरल, त्रिवेंद्रम द्वारा किए गए और जून -22 में प्रकाशित हुए शोध में बताया गया है कि त्रिवेंद्रम जिले में पोदियर और अचुन्थंग के बीच के 58 किलोमीटर के समुद्री तट का 2.62 वर्ग किलोमीटर हिस्सा बीते 14 सालों में सागर की गहराई में समा गया।
कई जगह कटाव का दायरा 10.5 मीटर तक रहा है। यह शोध बताता है कि सन् 2027 तक कटाव की रफ्तार भयावह हो सकती है।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत काम करने वाले चेन्नई स्थित नेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबल कोस्टल मैनेजमेंट के आंकड़े बताते हैं कि देश की कुल 6907 किलोमीटर की समुद्री तट सीमा है और बीते 28 सालों के दौरान हर जगह कुछ न कुछ क्षतिग्रस्त हुई ही है।