मैं गाय माता आपसे कुछ कह रही हूं, बेटा एक मिनट सुन लो
By रोहित कुमार पोरवाल | Published: June 28, 2019 05:12 PM2019-06-28T17:12:50+5:302019-06-28T17:12:50+5:30
गाजियाबाद के कौशांबी में भौतिक चकाचौंध के बीचों-बीच अप्रिय दिखने वाली यह तस्वीर आज तकरीबन पूरे भारत की हो चली है। माता कही जाने वाली गाय हमारी-आपकी जुबान तो नहीं बोलती हैं लेकिन उसके मन की बात तो यही है।
इस हरे भरे पार्क के उस पार वो जो बड़ी सी इमारत आप देख रहे हैं, उस इमारत और इस पार्क के दरमियान मैं आपके फेकें हुए कूड़े से भोजन खोज रही हूं। मैं गाय हूं। यहां पास में एक दीवार पर सरकार के स्वच्छता मिशन की बातें लिखीं हैं। पांच सितारा होटल एकदम सटा हुआ है। पीछे मॉल और डिस्को भी हैं। उस तरफ एक शानदार चिकनी सड़क है जिसपर गांड़ियां सरपट दौड़ रही हैं। आसपास पॉश सोसाइटी है। होटल की लोन में बगीचा और मन को सुकून देने वाला फव्वारा भी है। सोसायटी में खाने-पीने की दुकाने हैं। लोग वहां खाते हैं, घरों में खाते हैं और मेरे हिस्से में पॉलीथीन में लिपटी जूठन आ जाती है। कभी कभार प्लास्टिक की पॉलीथीन गले में अड़ जाती हैं या पेट में चली जाती है और कोई डॉक्टर मेरा इलाज नहीं करता है। मैं कराहती हूं, जोर से कराहती हूं, शहर की गाड़ियों के शोर में कराह दब जाती है और मैं सिसकते-सिसकते दम तोड़ देती हूं।
आजकल यही मेरा आशियाना है। मेरे बच्चे और कुछ इंसानों के बच्चे यहां एक जैसे लगते हैं। वे भी कूड़ा बीनते हैं। जब वे कूड़ा बीनते हैं तो कुछ बच्चे स्कूल में मेरे ऊपर निबंध लिख रहे होते हैं। मैं गाय माता जो हूं। मेरे बच्चों को मेरा दूध नहीं मिल पाता है, मुझे इस बात की खुशी हैं कि आपके बच्चों को वह बहुत पोषण देता है। इंसानों का एक शिक्षित वर्ग मुझमें तैतीस करोड़ देवी-देवता देखता है। उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ मेरी सेवा करते हैं। मुझे चारा खिलाते हैं। मेरे संरक्षण के लिए योजनाएं बनाते हैं। गांवों में गौशालाएं बनाने का निर्देश देते हैं लेकिन क्या करूं साहब घर मिलता नहीं और पापी पेट के लिए खेतों में घुसना पड़ता है। वहां भी खदेड़ी जाती हूं। साहूकार भी दूध देने तक मुझे रखते हैं और फिर आजाद कर देते हैं।
रात गुजारने के लिए जहां जाती हूं, भगा दी जाती हैं, फिर सड़क की ओर देखती हूं, वहां जाती हूं और भीमकाय लोहे का जानवर हमें कुचल जाता है, हमें मुक्ति मिल जाती हैं। वो बात अलग है कि मेरी खातिर कभी-कभी भीड़ किसी की जान ले लेती है, राजनीति हो जाती है, बाजार में मेरा मूत्र बिक जाता है। एक बड़ी आबादी को मेरा जिस्म स्वादेंद्रियों को तुष्ट करने वाला लगता है तो वो मेरा दूछ नहीं पीते हैं, पूरा मुझे ही पका कर खा जाते हैं। आप सोच रहे होंगे कि मैं आपसे ये सब क्यों कह रही हूं? तो बस आज यूं ही मन की बातें साझा कर लीं। आखिर आप मुझे माता जो कहते हैं।
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