संपादकीय: इन मजदूरों को देखकर दिल बार-बार रोता है..!

By राजेश बादल | Published: April 15, 2020 05:58 AM2020-04-15T05:58:04+5:302020-04-15T06:34:00+5:30

सवाल यह है कि लॉकडाउन है, हर जगह पुलिस का पहरा है तो शहर के विभिन्न स्थानों से इतने सारे मजदूर इकट्ठा कैसे हो गए? बहरहाल, जो भी हो, इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि मजदूरों के लिए ठीक से व्यवस्था नहीं की गई है.

Coronavirus lockdown Seeing these laborers, the heart cries again and again ..! | संपादकीय: इन मजदूरों को देखकर दिल बार-बार रोता है..!

प्रवासी मजदूर जो अलग-अलग शहरों से अपने घर लौटने के लिए परेशान हैं

मंगलवार की शाम मुंबई के बांद्रा रेलवे स्टेशन पर जो नजारा दिखा वह भयावह तो था ही, प्रशासनिक विफलता का बहुत बड़ा उदाहरण भी था. कोई तीन हजार से ज्यादा अप्रवासी मजदूर रेलवे स्टेशन परिसर में जमा हो गए. वे अपने गांव जाना चाहते थे. ज्यादातर मजदूर उत्तरप्रदेश और बिहार के थे.

कोरोना का हॉटस्पॉट बने मुंबई में इस तरह का जमावड़ा आग में घी का ही काम करेगा. हालांकि पुलिस ने लाठीचार्ज करके सबको खदेड़ दिया लेकिन इस पूरे घटनाक्रम ने कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े किए हैं. जमा हुए अप्रवासी मजदूरों का आरोप था कि उन्हें खाना नहीं मिल रहा है, काम मिलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता है.

वे मुंबई में रुक कर क्या करेंगे? कानून की दृष्टि में लॉकडाउन तोड़ना निश्चय ही अपराध है. स्वास्थ्य के संदर्भ में देखें तो यह कोरोना के फैलाव के लिए माकूल अवसर मुहैया कराता है लेकिन जरा मजदूरों की जगह खुद को रखकर देखिए तो हालात को समझने में ज्यादा आसानी होगी. पहले लॉकडाउन के साथ दिल्ली में यही हालात पैदा हुए थे.

हजारों की भीड़ वहां बस स्टैंड पर यूपी की ओर जाने के लिए जमा हो गई. सैकड़ों मजदूर पैदल ही अपने गांवों की ओर निकल पड़े. बड़ी मुश्किल से वहां स्थिति संभली. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बड़े पैमाने पर व्यवस्थाएं कीं और मजदूरों को वहां रुकवाया. तो यह सवाल उठना लाजिमी है कि मुंबई में बांद्रा रेलवे स्टेशन परिसर में मजदूर क्यों एकत्रित हो गए?

यदि उनके रुकने की ठीक-ठाक व्यवस्था की गई होती, उन्हें दोनों समय का भोजन आसानी से मिल रहा होता तो क्या वे लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाते? आखिर उन मजदूरों को भी तो अपनी जिंदगी प्यारी है! लेकिन जब ठीक से भोजन की व्यवस्था न हो तो मजदूर क्या करेंगे? अपने गांव में किसी तरह दो वक्त की रोटी की व्यवस्था तो हो ही जाएगी!

एक और सवाल यह है कि लॉकडाउन है, हर जगह पुलिस का पहरा है तो शहर के विभिन्न स्थानों से इतने सारे मजदूर इकट्ठा कैसे हो गए? बहरहाल, जो भी हो, इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि मजदूरों के लिए ठीक से व्यवस्था नहीं की गई है. उन्हें लेकर कोई तत्परता भी नहीं है. इन मजदूरों के लिए क्या सिस्टम में कोई जगह नहीं होनी चाहिए?

दुर्भाग्य देखिए कि सरकार में बैठे लोगों और विपक्ष के नेताओं के बीच एक दूसरे को दोषी ठहराने की कोशिश की जा रही है. यह समय क्या राजनीति का है? यह तो सभी की जिम्मेदारी है कि भीषण संकट के इस दौर में हम सभी मिलकर मजदूरों के लिए कम से कम ठीक से रहने और खाने की व्यवस्था करें. 

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