प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: भारत की संस्कृति में हैं संविधान की जड़ें

By प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल | Published: November 26, 2022 07:54 AM2022-11-26T07:54:59+5:302022-11-26T07:55:53+5:30

भारत की संविधान सभा ने संविधान के निर्माण में भारत के विविध धर्मों, सामाजिक परंपराओं, भारतीय इतिहास के गौरवशाली अध्याय का विस्तृत विवेचन तो किया ही, श्रेष्ठ ज्ञान को संपूर्ण विश्व से लेने की अपनी महान ज्ञान परंपरा को भी सामने रखा।

Constitution has its roots in Indian culture | प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: भारत की संस्कृति में हैं संविधान की जड़ें

प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल का ब्लॉग: भारत की संस्कृति में हैं संविधान की जड़ें

Highlightsकठोरता और लचीलेपन का यह अनोखा संगम केवल भारत में संभव है इसलिए संभव है कि यहां वैदिक परंपरा की बात करें या श्रमण परंपरा की बात करें।नियम पालन बाध्यकारी तो है लेकिन लोक व्यवस्थापन में बाधक होने पर कोई भी नियम अबाध्य नहीं है। भारतीय संविधान का अधिनियमन इसी स्वीकृत सांस्कृतिक मूल्य पर आधारित है।

भारत का संविधान एक सफल लोकतंत्र के नियमन, संचालन के 73 वर्ष पूरे कर चुका है। 26 नवंबर 1949 से आज तक इस संविधान ने भारत के इस विशाल लोकतंत्र और दुनिया के सबसे महनीय गणराज्य के संचालन में सर्वविध सफलता प्राप्त की है। भारत के संविधान को यह शक्ति केवल संविधान में लिखी इबारतों या संविधि से प्राप्त नहीं होती है। 

अपितु इस कारण से प्राप्त होती है कि भारत की संविधान सभा ने संविधान निर्माण के दौरान भारत के वर्तमान का यथोचित मूल्यांकन करते हुए भारतीय इतिहास और उसकी सांस्कृतिक परंपरा के अजस्र प्रवाह में विकसित जीवन पद्धति और मूल्यदृष्टि के आलोक में संविधान की रचना की है। भारत की संविधान सभा ने संविधान के निर्माण में भारत के विविध धर्मों, सामाजिक परंपराओं, भारतीय इतिहास के गौरवशाली अध्याय का विस्तृत विवेचन तो किया ही, श्रेष्ठ ज्ञान को संपूर्ण विश्व से लेने की अपनी महान ज्ञान परंपरा को भी सामने रखा।

यही कारण है कि दुनिया के सबसे बड़े लिखित संविधान में भारत के समक्ष आने वाली सभी समस्याओं के उत्तर हैं। कठोर और लचीले संविधान का अद्भुत सम्मिश्रण, जहां एक ओर भारत में संविधि के निर्माण की मान्य व्यवस्था का दिग्दर्शन होता है कि श्रुति, स्मृति और सदाचार, जिसे आज के शब्दों में हम संविधान, संसद निर्मित विधि और समाज निर्मित पारंपरिक अधिकार के रूप में समझते हैं, इन सबको ध्यान में रखते हुए आवश्यकतानुसार परिवर्तन और परिवर्धन का व्यापक अवकाश देता है। 

कठोरता और लचीलेपन का यह अनोखा संगम केवल भारत में संभव है इसलिए संभव है कि यहां वैदिक परंपरा की बात करें या श्रमण परंपरा की बात करें। नियम पालन बाध्यकारी तो है लेकिन लोक व्यवस्थापन में बाधक होने पर कोई भी नियम अबाध्य नहीं है। अर्थात लोक संग्रह और लोकाराधन के लिए आदर्श स्थिति की निर्मिति और नागरिकों के आचरण और व्यवहार के सार्वभौमिक नियमों का गठन भारत में प्राचीन काल से ही स्वीकृत सिद्धांत रहा है।

भारतीय संविधान का अधिनियमन इसी स्वीकृत सांस्कृतिक मूल्य पर आधारित है। इसको ठीक से समझना हो तो भारत के संविधान की मूल प्रति को उसके चित्र और वाक्य के आधार पर समझा जा सकता है। यह दुनिया का अकेला संविधान है जो सचित्र है। चित्र संविधान का भाग तो नहीं है पर उसका आत्मतत्व जरूर है, ठीक वैसे ही जैसे आत्मा शरीर का हिस्सा नहीं है। 

आत्महीन शरीर भी हो सकता है तथापि शरीर के साथ आत्मा ही जीवन का लक्षण है। उसी प्रकार भारत के संविधान के 22 अध्यायों में चित्रित भारतीय संस्कृति, परंपरा को संविधान के साथ जोड़ करके ही यह समझा जा सकता है कि दुनिया के 10 देशों के संविधान में जो श्रेष्ठ है उपयोगी है उन उपबंधों और विधानों को संकलित करने वाला यह संविधान भारतीय संस्कृति के उदात्त और चैतन्य जीवन मूल्यों तथा महनीय अवधारणाओं के आधार पर उन सभी को जो बाहर से लिया गया है, भारतीय जनगण के मनमानस के अनुरूप आत्मसात करता है। 

अशोक के चिह्न की विशिष्ट चित्रात्मक शैली से प्रारंभ होने वाला संविधान आवरण पृष्ठ में ही हमें अजंता के भित्तिचित्रों से जोड़ते हुए कला, साहित्य और नाट्य संगीत आदि से निर्मित होने वाले एक विशिष्ट राष्ट्रीय सांस्कृतिक जीवन के संविधान के रूप में इसको प्रस्तुत करने के लिए पर्याप्त है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना का प्रारंभ हाथी, बैल, शेर और घोड़े के अत्यंत कलात्मक चित्र से घिरे बार्डर में शतदल कमल को केंद्र में रखकर किया गया है। 
शतदल कमल सुख, शांति, समृद्धि का प्रतीक है। इस शतदल कमल सा पुष्पित भारत बने, इसके लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के सुनिश्चयन के लिए ही संविधान आत्मार्पित हुआ है। भारत के जन को भारत के जनगण के द्वारा। इसके प्रारंभ में ही संघ और उसके क्षेत्र को केवल भूगोल के आलोक में ही नहीं, उसके प्राचीन इतिहास के आलोक में भी देखा गया है। इसको प्रतीकीकृत करने के लिए भारत की प्राचीनतम ज्ञात सभ्यता की मुहर, जिसमें एक पुष्ट बैल चित्रित है, से ही संविधान का शुभारंभ है। 

यह चित्र मूल भारत के भौतिक विस्तार को प्रस्तुत करता हुआ एक राष्ट्र की ऐतिहासिक प्राचीनता को भी प्रतिपादित करता है। भारत के संविधान को एक पवित्र पुस्तक के रूप में स्वीकृति प्राप्त है। परंतु इसकी पवित्रता इसमें लिखे गए वाक्यों मात्र से नहीं बनती है। राज और समाज का वह यत्न जिससे सबके कल्याण और सबकी समुन्नति का मार्ग प्रशस्त हो, इस संविधान की ताकत है। 

व्यक्ति की स्वतंत्रता सुरक्षित रहे, उसकी अस्मिता गरिमा अक्षुण्ण रहे, इसका यत्न करने की जिम्मेदारी भारत के समस्त जनगण की है। इस अवसर पर हमें डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के इस कथन को याद रखना होगा कि संविधान चाहे जैसा हो यदि इसको चलाने वाले योग्य और प्रामाणिक हैं तो श्रेष्ठ राष्ट्र बनाया जा सकता है। स्वाभाविक है यह कि चलाने वाले ठीक हों, यह सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी भारत के समस्त नागरिकों की है। हम भारत के लोग भारत के लिए आत्मार्पित संविधान को ध्यान में रखकर अपने मौलिक अधिकारों का उपयोग करें, यह आवश्यक और अपरिहार्य हो गया है।

Web Title: Constitution has its roots in Indian culture

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