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ब्लॉग: शशि थरूर की गुगली! सोचना होगा, कांग्रेस खुद जीतना चाहती है या भाजपा को हराना?

By राजकुमार सिंह | Updated: April 11, 2023 12:23 IST

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राजनय से राजनीति में आए शशि थरूर ने जो गुगली फेंकी है, उसे खेल पाना कांग्रेस और उसके अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए आसान नहीं. नेहरू परिवार का आशीर्वाद प्राप्त खड़गे से अध्यक्ष पद के चुनाव में भारी अंतर से हारने के बावजूद थरूर ने हिम्मत नहीं हारी है. हालांकि उम्रदराज खड़गे खुद कर्नाटक से आते हैं, लेकिन अपेक्षाकृत युवा थरूर चाहते हैं कि कांग्रेस कम-से-कम दक्षिण भारत में तो उन्हें अपना चेहरा बनाए. 

कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों को आगे लाते हुए व्यापक विपक्षी एकता की सार्वजनिक रूप से दी गई थरूर की सलाह भी इसी महत्वाकांक्षा से प्रेरित लगती है. नहीं भूलना चाहिए कि दक्षिण भारत में ही क्षेत्रीय दलों का दबदबा ज्यादा है. इस सलाह से खासकर क्षेत्रीय दलों में थरूर की छवि स्वाभाविक ही बेहतर बनी होगी. जाहिर है, विपक्षी एकता की दिशा में पहल की रणनीति कांग्रेस नेतृत्व को ही तय करनी है. यह समझना मुश्किल नहीं होना चाहिए कि उसमें सिर्फ खड़गे नहीं, बल्कि सोनिया-राहुल-प्रियंका गांधी की निर्णायक भूमिका होगी.  

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दोहरा ही रहे हैं कि उन्हें विपक्षी एकता के लिए कांग्रेस की पहल का इंतजार है. वैसे भी अगर तृणमूल, सपा, बीआरएस और आप जैसे कुछ प्रमुख विपक्षी दल हाल तक भाजपा-कांग्रेस से समान दूरी की राजनीति की बात करते रहे हैं, तो उन्हें निकट लाने की पहल कांग्रेस को ही करनी होगी. आगामी लोकसभा चुनाव की दृष्टि से देखें तो क्षेत्रीय दलों की तुलना में कांग्रेस का राजनीतिक भविष्य ज्यादा दांव पर होगा. 

क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में भाजपा का मुकाबला करने में समर्थ हैं, पर कांग्रेस महज तीन-चार राज्यों में भाजपा का मुकाबला करने या सरकार भी बना सकने की अपनी सामर्थ्य पर संतुष्ट होने का राजनीतिक जोखिम नहीं उठा सकती. इसलिए यह समझ पाना ज्यादा मुश्किल नहीं होना चाहिए कि विपक्षी एकता की कांग्रेस को ज्यादा जरूरत है, पर क्षेत्रीय दलों को आगे लाने के जिस फॉर्मूले का सुझाव थरूर ने दिया है, उसे अपनाने से पहले कांग्रेस को खुद अपनी राजनीति-रणनीति की बाबत बड़ा फैसला करना होगा. 

साफ कहें तो कांग्रेस को पहले यह तय करना होगा कि वह खुद जीतना चाहती है या भाजपा को हराना. प्रथम दृष्टया ये दोनों स्थितियां एक ही सिक्के के दो पहलू लग सकती हैं, पर ऐसा है नहीं. अगर कांग्रेस की मंशा खुद जीतने की है तो वह अपना खोया हुआ जनाधार और स्थान वापस पाने के लिए क्षेत्रीय दलों से अपनी शर्तों पर गठबंधन की कोशिश करेगी, पर यदि एकमात्र उद्देश्य भाजपा को हराना है तो वह अपनी पुनरुत्थान-योजना को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल विपक्षी एकता के लिए जहां-तहां अपने तात्कालिक राजनीतिक हितों पर भी समझौता करने में संकोच नहीं करेगी.

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