संतोष देसाई का ब्लॉग: प्रदूषण के बीच जीने की जद्दोजहद

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 19, 2018 04:26 PM2018-12-19T16:26:12+5:302018-12-19T16:26:12+5:30

एक ऐसे उपकरण को पाना, जो प्रदूषण मापे, नामहीन भय को संख्या में बदल देता है, क्योंकि संदेह मात्रत्मक तथ्य में बदल जाते हैं. हवा प्रमाणित रूप से जहर में तब्दील हो जाती है. कुछ भ्रम जल्दी ही टूट जाते हैं.

Conflict of living between pollution, santosh desai blog | संतोष देसाई का ब्लॉग: प्रदूषण के बीच जीने की जद्दोजहद

फाइल फोटो

एक ऐसे उपकरण को पाना, जो प्रदूषण मापे, नामहीन भय को संख्या में बदल देता है, क्योंकि संदेह मात्रत्मक तथ्य में बदल जाते हैं. हवा प्रमाणित रूप से जहर में तब्दील हो जाती है. कुछ भ्रम जल्दी ही टूट जाते हैं. अलसभोर की हवा, जिसे दिन का सबसे शुद्ध भाग माना जाता है, भी अब वैसी नहीं रह गई है. जैसे कैंसर में जिंदगी खुद अपने ही खिलाफ हो जाती है, वैसे ही प्रदूषण से, जो सांस आप लेते हैं वही आपको मारने लगती है और आप ऐसे जाल में फंसा महसूस करने लगते हैं, जिससे बचने का कोई रास्ता नहीं होता.

अच्छी खबर यह है कि एयर प्यूरिफायर का परीक्षण किया गया है और यह प्रभावी पाया गया है. कुछ मिनटों में ही यह पीएम 2.5 के स्तर को उल्लेखनीय स्तर तक कम कर देता है. लेकिन बुरी खबर यह है कि यह समस्या को एक सीमा तक ही दूर कर सकता है. जो हमें जकड़े हुए है क्या यह उदासीनता है या असहायता की भावना है? प्रदूषण के दुष्प्रभाव आमतौर पर लंबे समय बाद सामने आते हैं और शायद ही कभी यह सीधे तौर पर प्रभावित करता है. अधिकांश लोगों को प्रदूषण अज्ञात तरीकों से प्रभावित करता है. एक समाज के रूप में हम प्रदूषण को अच्छी तरह से समझते हैं. लेकिन समस्या यह है कि इस समझने भर से समस्या हल नहीं होती.

वायु प्रदूषण हमें इसलिए प्रभावित करता है क्योंकि हमारा शरीर इसके हिसाब से नहीं बना है. हमारे फेफड़े प्राकृतिक रूप से पैदा होने वाले कचरे को तो फिल्टर कर लेते हैं लेकिन मानव निर्मित प्रदूषण को साफ करने की क्षमता उनमें नहीं होती. हम अन्य चीजों को तो किसी हद तक संभाल लेते हैं, जैसे पानी, जो जीवन के लिए बुनियादी चीज है, को हम पीने के लिए साफ कर सकते हैं. लेकिन हवा के लिए हम ऐसी व्यवस्था नहीं कर सकते कि सांस लेने के लिए हर समय उसे साफ करते रह पाएं.

लगता है हमारे पास चुनने के लिए सवरेत्तम विकल्प नहीं है. या तो हम प्रदूषण को नियति मानकर स्वीकार कर लें या प्यूरिफायर और मास्क के जरिए इससे लड़ें. यह एक ऐसा डरावना उपहार है जो हमने अपने आप को दिया है.

Web Title: Conflict of living between pollution, santosh desai blog

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