भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः मनरेगा में निजी कृषि कार्य की छूट दीजिए

By भरत झुनझुनवाला | Published: November 10, 2018 12:49 AM2018-11-10T00:49:47+5:302018-11-10T00:49:47+5:30

वर्तमान में किसान दो समस्याओं से एक साथ जूझ रहा है। किसान की आय न्यून है। इसे दोगुना करने के लिए सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रमुख फसलों के समर्थन मूल्य को उत्पादन लागत से डेढ़ गुना कर दिया जाएगा। इससे किसान की आय में वृद्धि होगी।

concession in private farm work in MGNREGA | भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः मनरेगा में निजी कृषि कार्य की छूट दीजिए

भरत झुनझुनवाला का ब्लॉगः मनरेगा में निजी कृषि कार्य की छूट दीजिए

भरत झुनझुनवाला

नीति आयोग द्वारा गठित मुख्यमंत्रियों के समूह ने सुझाव दिया है कि मनरेगा के अंतर्गत किसानों को अपनी निजी भूमि पर कृषि कार्य करने की छूट होनी चाहिए। यानी यदि किसान को अपने खेत में निराई करनी है तो उसके लिए रखे गए खेत मजदूरों की दिहाड़ी मनरेगा द्वारा दी जाए। यह सुझाव सही दिशा में है और सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। 

वर्तमान में किसान दो समस्याओं से एक साथ जूझ रहा है। किसान की आय न्यून है। इसे दोगुना करने के लिए सरकार ने निर्णय लिया है कि प्रमुख फसलों के समर्थन मूल्य को उत्पादन लागत से डेढ़ गुना कर दिया जाएगा। इससे किसान की आय में वृद्धि होगी। लेकिन जमीनी हालत यह है कि फूड कारपोरेशन द्वारा उपलब्ध फसल को उठाया नहीं जा रहा है, किसानों को अपनी फसल को बाजार में बेचना पड़ रहा है और बढ़े हुए समर्थन मूल्य का दाम उन्हें नहीं मिल पा रहा है। यदि मान लिया जाए कि फूड कारपोरेशन द्वारा संपूर्ण फसल को उठा लिया जाएगा तो दूसरी समस्या उत्पन्न हो जाएगी। 

किसान को फसल के ऊंचे दाम मिलने से वह उनका उत्पादन बढ़ाएगा। जैसे यदि गेहूं के दाम में वृद्धि होती है तो किसान गेहूं का उत्पादन ज्यादा करेगा। लेकिन देश में गेहूं की खपत की सीमा है। प्रश्न उठता है कि इस बढ़े हुए उत्पादन का निष्पादन कहां किया जाएगा। इसका एकमात्र उपाय यह है कि इसे निर्यात कर दिया जाए। लेकिन वर्तमान में अपने देश में अधिकतर कृषि फसलों का मूल्य अंतर्राष्ट्रीय मूल्यों से ऊंचा है। अर्थात गेहूं के बढ़े हुए उत्पादन को निर्यात करने के लिए निर्यात सब्सिडी देनी पड़ेगी। इस प्रक्रिया में सरकार को दोहरी चपत लगेगी। पहले फूड कारपोरेशन को सब्सिडी देनी पड़ेगी जिससे वह बढ़े हुए समर्थन मूल्य पर किसान से फसल को खरीद सके। उसके बाद फूड कारपोरेशन को दोबारा सब्सिडी देनी पड़ेगी कि महंगे खरीदे गए अनाज को अंतर्राष्ट्रीय बाजार के सस्ते मूल्यों पर निर्यात कर सके। 

किसानों की दूसरी समस्या मनरेगा है। इसके अंतर्गत खेत मजदूरों को 100 दिन की मजदूरी सुनिश्चित होती है। इससे किसानों की प्रवृत्ति अपने घर पर रहने की बन रही है। जो किसान पूर्व में उत्तर प्रदेश एवं बिहार से पंजाब व हरियाणा एवं तमिलनाडु से केरल जाते थे अब वे अपने गांव में ही रहकर मनरेगा की मजदूरी से जीविका चलाना पसंद कर रहे हैं। इससे पंजाब, हरियाणा और केरल के किसानों को खेत मजदूर कम मिल रहे हैं और उन्हें बढ़ाकर मजदूरी देनी पड़ रही है जिससे उनकी लागत बढ़ रही है और आय कम हो रही है। 

इन दोनों समस्याओं का एक साथ समाधान हो सकता है, यदि मनरेगा के अंतर्गत निजी कृषि कार्यो को करने की छूट दे दी जाए। जैसे किसान को अपने खेत में निराई करनी है तो उसमें लगाए गए खेत मजदूर की दिहाड़ी मनरेगा द्वारा दी जाए। ऐसा करने से किसान को अपनी जेब से खेत मजदूर को दिहाड़ी नहीं देनी होगी। उसकी लागत कम होगी और आय में सहज ही वृद्धि हो जाएगी। इसके विपरीत वर्तमान में जो मनरेगा में कार्य कराए जा रहे हैं उनसे किसान को दोहरी चपत पड़ रही है। एक तरफ खेत मजदूर की दिहाड़ी बढ़ रही है तो दूसरी तरफ मनरेगा के अंतर्गत व्यर्थ के कार्य कराए जा रहे हैं। जैसे अनुपयुक्त स्थानों पर चेकडैम बनाए जा रहे हैं और वे शीघ्र ही मिट्टी से भर जाते हैं।  

इस परिस्थिति में मनरेगा के अंतर्गत निजी कृषि कार्य की छूट दे दी जाए। पहला लाभ यह होगा कि किसान की आय सहज में बढ़ जाएगी। उतने ही गेहूं के उत्पादन के लिए निराई अथवा सिंचाई के लिए जो मजदूरी वह अपनी जेब से देता था वह अब मनरेगा से दी जाएगी। उसकी लागत कम हो जाएगी तद्नुसार उसकी आय बढ़ जाएगी। विशेष यह कि आय में यह वृद्धि उत्पादन में बिना किसी वृद्धि के हो जाएगी। यानी किसान यदि पहले 10 क्विंटल गेहूं का उत्पादन करता था तो मनरेगा के अंतर्गत उत्पादन कराने के बाद भी वह पूर्ववत 10 क्विंटल गेहूं का ही उत्पादन करेगा जबकि उसकी लागत कम हो जाएगी। उत्पादन पूर्ववत रहने से सरकार के फूड कारपोरेशन को अधिक मात्र में गेहूं नहीं खरीदना पड़ेगा। न ही सरकार को उस अधिक उत्पादन के निर्यात के लिए सब्सिडी देनी पड़ेगी। इस प्रकार मनरेगा के अंतर्गत निजी कार्य कराने से किसान की आय बढ़ेगी लेकिन सरकार पर निर्यात सब्सिडी का बोझ नहीं बढ़ेगा। 

 चौथा लाभ यह होगा कि मनरेगा के अंतर्गत जो भ्रष्टाचार व्याप्त है वह कम होगा। वर्तमान में मनरेगा में भ्रष्टाचार व्याप्त होने का कारण यह है कि मुख्यत: सार्वजनिक कार्य ही कराए जाते हैं। जैसे इन सार्वजनिक कार्यो की नाप करने में, इन सार्वजनिक कार्यो की स्वीकृति लेने में और इनका पेमेंट करने में ग्राम के प्रधान तथा सरकारी कर्मी घूस खाते हैं। लेकिन इसके स्थान पर जब मनरेगा के अंतर्गत निजी कार्य कराए जाएंगे तो जिस किसान के खेत में यह कार्य कराए जाते हैं वह इन पर निगरानी रखेगा और उसमें भ्रष्टाचार की संभावना कम होगी।

Web Title: concession in private farm work in MGNREGA

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