संपादकीयः सामुदायिक सेवा को स्कूल- कॉलेजों में अनिवार्य बनाए जाने की जरूरत

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: July 26, 2022 03:07 PM2022-07-26T15:07:15+5:302022-07-26T15:07:28+5:30

आज समाज से चारित्रिक मूल्य गायब होते जा रहे हैं, पैसा ही सबकुछ बनकर रह गया है। इसलिए उपराष्ट्रपति का यह सुझाव कि स्कूलों में सामुदायिक सेवा अनिवार्य होनी चाहिए, आज के समय की जरूरत है, क्योंकि श्रम के साथ स्वमेव बहुत सारे मूल्य जुड़े होते हैं। तकनीकी विकास ने जिंदगी को आसान तो बनाया है लेकिन इसका एक नकारात्मक प्रभाव यह पड़ा है कि हम शारीरिक परिश्रम से दूर होते चले गए हैं।

Community service needs to be made compulsory in schools and colleges | संपादकीयः सामुदायिक सेवा को स्कूल- कॉलेजों में अनिवार्य बनाए जाने की जरूरत

संपादकीयः सामुदायिक सेवा को स्कूल- कॉलेजों में अनिवार्य बनाए जाने की जरूरत

ऐसे समय में, जबकि बच्चों और युवाओं के भीतर अनुशासन, कड़ी मेहनत, संयम और सेवा भावना जैसे गुणों में कमी आती जा रही है, उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू का यह सुझाव कि स्कूलों और कॉलेजों में सामुदायिक सेवा अनिवार्य होनी चाहिए, निश्चित रूप से स्वागत योग्य है। इस्कॉन के संस्थापक की आत्मकथा ‘सिंग, डांस एंड प्रे : द इंस्पिरेशनल स्टोरी ऑफ श्रील प्रभुपाद’ के विमोचन अवसर पर युवाओं को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि वे बेहतर इंसान बनने के लिए अनुशासन, कड़ी मेहनत, संयम और सहानुभूति वाले गुणों को ग्रहण करें। उन्होंने कहा कि युवाओं को जाति, लिंग, धर्म और क्षेत्र की संकीर्ण मानसिकता से ऊपर उठना चाहिए और समाज में एकता के लिए काम करना चाहिए। 

दरअसल उपर्युक्त गुण ही किसी भी व्यक्ति को एक बेहतर इंसान बनाते हैं। प्राचीनकाल में बचपन से ही इन गुणों को शिक्षा का अंग बनाया जाता था, जिससे शिक्षा हासिल करने वाले छात्र एक बेहतर इंसान बनते थे। आजकल की शिक्षा व्यवस्था में दुर्भाग्य से एक बेहतर इंसान बनाने की ओर ध्यान नहीं दिया जाता, वह सिर्फ रोजगार केंद्रित होकर रह गई है। यही कारण है कि आज समाज से चारित्रिक मूल्य गायब होते जा रहे हैं, पैसा ही सबकुछ बनकर रह गया है। इसलिए उपराष्ट्रपति का यह सुझाव कि स्कूलों में सामुदायिक सेवा अनिवार्य होनी चाहिए, आज के समय की जरूरत है, क्योंकि श्रम के साथ स्वमेव बहुत सारे मूल्य जुड़े होते हैं। तकनीकी विकास ने जिंदगी को आसान तो बनाया है लेकिन इसका एक नकारात्मक प्रभाव यह पड़ा है कि हम शारीरिक परिश्रम से दूर होते चले गए हैं। जबकि बचपन और युवावस्था में सुगठित शरीर के लिए परिश्रम बेहद आवश्यक होता है। अगर छात्र जीवन में सामुदायिक सेवा अनिवार्य होगी तो इससे छात्रों में सामुदायिक भावना पैदा होगी और वे श्रम के महत्व को समझेंगे।

 उपराष्ट्रपति का यह कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि भारतीय सभ्यता एकता, शांति और सामाजिक सद्भाव के सार्वभौमिक मूल्यों पर आधारित है और सदियों पुराने इन मूल्यों को संरक्षित करने एवं प्रसारित करने के लिए आध्यात्मिक पुनर्जागरण की जरूरत है। वस्तुत: आधुनिकता को अपनाने के चक्कर में हमने अपने पुराने मूल्यों का परित्याग ही कर दिया है जबकि आवश्यकता दोनों में संतुलन साधने की है। जो भी पुराने सामाजिक मूल्य आज प्रासंगिक हैं उन्हें अपनाया जाए और आधुनिक मूल्यों में जो सामाजिक हितों के अनुकूल हों, उन्हें लेकर ही आगे बढ़ा जाए। उम्मीद की जानी चाहिए कि उपराष्ट्रपति नायडू के सुझाव पर समाज में विचार होगा और सामुदायिक सेवा को स्कूल- कॉलेजों में अनिवार्य बनाया जाएगा।

Web Title: Community service needs to be made compulsory in schools and colleges

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