कपिल सिब्बल का ब्लॉग: चुनावी लाभ के लिए किया जा रहा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण
By कपील सिब्बल | Published: November 30, 2022 01:43 PM2022-11-30T13:43:34+5:302022-11-30T13:48:13+5:30
गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान हमारे गृह मंत्री का हालिया बयान आने वाली चीजों का पूर्व संकेत है। गोधरा की त्रासदी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि दंगाइयों को सबक सिखाया गया था, कि सांप्रदायिक दंगे इसलिए हुए क्योंकि कांग्रेस ने इसे आदत बना लिया था, ऐसा सबक 2002 में सिखाया गया था और तब से गुजरात में कोई सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए हैं। एक तरह से गृह मंत्री ने हुई हिंसा का समर्थन किया।
जैसे-जैसे हम 2024 के लोकसभा चुनाव की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे हमारे राष्ट्रीय विमर्श पर जो विषय हावी हो रहे हैं, वे परेशान करने वाले हैं। पहला है समान नागरिक संहिता का हो-हल्ला। अधिकांश भाजपा शासित राज्यों में यह तेज हो रहा है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पहले ही राज्य विधानसभा में इसे पेश कर चुके हैं। यह हाल ही में संपन्न हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा के चुनावी घोषणापत्र में भी था।
अब, यह गुजरात विधानसभा चुनाव में एक चुनावी वादा है। इस विषय पर किसी भी भाषण में भावनात्मक और विभाजनकारी दोनों तत्व होते हैं। यह इसे एक सांप्रदायिक रंग देता है, जिसके राजनीतिक नतीजे देखने को मिलेंगे। दूसरा, उस पर आक्रोश की अभिव्यक्ति है जब एक विशेष अल्पसंख्यक समुदाय का लड़का एक हिंदू लड़की के साथ संबंध रखता है या उससे शादी करता है।
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि जिस जघन्य तरीके से श्रद्धा वालकर की हत्या की गई, वह 'लव जिहाद' का एक उदाहरण है और अगर मोदी 2024 में फिर से नहीं चुने जाते हैं, तो 'लव जिहाद' के मुजरिम देश के हर शहर में देखने को मिलेंगे। यह बयान इस बात का संकेत है कि किस तरह एक समुदाय विशेष को निशाना बनाकर हिंदू वोट बटोरने के लिए हत्या की भयावह घटना का इस्तेमाल कर उसे एक खास समुदाय की मानसिकता से जोड़कर देखा जा रहा है।
गुजरात में चुनाव प्रचार के दौरान हमारे गृह मंत्री का हालिया बयान आने वाली चीजों का पूर्व संकेत है। गोधरा की त्रासदी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि दंगाइयों को सबक सिखाया गया था, कि सांप्रदायिक दंगे इसलिए हुए क्योंकि कांग्रेस ने इसे आदत बना लिया था, ऐसा सबक 2002 में सिखाया गया था और तब से गुजरात में कोई सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए हैं। एक तरह से गृह मंत्री ने हुई हिंसा का समर्थन किया।
जिन लोगों को निशाना बनाया गया उनमें महिलाएं, बच्चे और अन्य शामिल थे जिनका गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के साथ हुई कथित त्रासदी में कोई हाथ नहीं था। लगभग 20 करोड़ की संख्या वाले अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ जहर उगलना हिंदू वोट पर पकड़ को मजबूत कर सकता है लेकिन हमारी लोकतांत्रिक राजनीति पर इसका प्रभाव अंतत: खेद का विषय हो सकता है। नि:संदेह भारत बदल गया है। यह अब वह समावेशी भारत नहीं है जिसमें हम पैदा हुए थे। आज के संवाद चिंताजनक हैं। अगर हम इस प्रवृत्ति के खिलाफ खड़े नहीं हुए तो हमारा कल खतरे में पड़ जाएगा।