कुणाल कामरा आपराधिक अवमानना के घेरे में, व्यंग्यबाण पर सवालिया निशान? लेकिन सवाल और भी हैं!
By प्रदीप द्विवेदी | Published: November 13, 2020 04:06 PM2020-11-13T16:06:36+5:302020-11-13T16:07:34+5:30
खबरें हैं कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ कथित अपमानजनक ट्वीट के लिए उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना का केस चलाने की सहमति दी है.
स्टेंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा, रिपब्लिक टीवी के एडिटर अर्नब गोस्वामी को अंतरिम जमानत देने के लिए सुप्रीम कोर्ट की आलोचना वाले ट्वीट के लिए आपराधिक अवमानना के सवालों के घेरे में आ गए हैं? खबरें हैं कि अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ कथित अपमानजनक ट्वीट के लिए उनके खिलाफ आपराधिक अवमानना का केस चलाने की सहमति दी है.
अटॉनी जनरल का कहना है कि- यह समय है कि लोग इस बात को समझे कि सुप्रीम कोर्ट पर अकारण हमला करने से सजा का सामना करना पड़ सकता है. उनका यह भी कहना है कि कॉमेडियन कुणाल कामरा के ट्वीट न केवल- खराब टेस्ट, के थे बल्कि ये स्पष्ट रूप हास्य और अवमानना के बीच की मर्यादा-रेखा को पार कर गए थे. खबरों पर भरोसा करें तो उनका तो यह भी कहना है कि ये ट्वीट सुप्रीम कोर्ट और इसके न्यायाधीशों की निष्ठा का घोर अपमान है. इन दिनों लोग खुले तौर पर और ढिठाई के साथ सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करते हैं और वे मानते हैं कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है.
उल्लेखनीय है कि यह सहमति एक लॉ और दो वकीलों के उन्हें इस बारे में लिखे जाने के बाद आई है. उधर, एक खबर यह भी है कि- वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष दुष्यंत दवे ने सुप्रीम कोर्ट के महासचिव को रिपब्लिक टीवी के एडिटर अर्नब गोस्वामी के मामले में सुनवाई से पहले एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने अर्नब की जमानत याचिका को सुनवाई के लिए अगले ही दिन लिस्ट करने पर प्रश्नचिन्ह लगाया था.
पत्र में दवे का कहना था कि- अर्नब की याचिका तो दायर होते ही लिस्ट हो गई, लेकिन ऐसे ही कुछ मामलों में इस तरह की त्वरित कार्रवाई नहीं हुई थी. उन्होंने यह भी जानना चाहा कि क्या अर्नब गोस्वामी की याचिका पर तुरंत सुनवाई को लेकर चीफ जस्टिस एसए बोबडे ने तो विशेष निर्देश नहीं दे रखे हैं?
उनका यह भी कहना था कि गंभीर मुद्दा यह है कि कोविड महामारी के दौरान पिछले आठ महीनों से केस की लिस्टिंग में निष्पक्षता नहीं बरत जा रही है. एक तरफ हजारों नागरिक जेलों में बंद हैं और सुप्रीम कोर्ट में दायर उनकी याचिकाएं सुनवाई के लिए हफ्तों और महीनों तक लिस्ट नहीं होती हैं. ऐसे में यह बहुत दुखद है कि गोस्वामी जब भी सुप्रीम कोर्ट से दरख्वास्त करते हैं, तो हर बार उनकी याचिका तुरंत क्यों और कैसे लिस्ट हो जाती है.
दवे का सवाल यह भी कि- जब लिस्टिंग के लिए कंप्यूटराइज्ड सिस्टम है, जिसमें काम ऑटोमैटिक लेवल पर होता है, तो फिर इस तरह की सेलेक्टिव लिस्टिंग क्यों हो रही है? उनका कहना है कि सिस्टम की खामियों की वजह से गोस्वामी जैसे लोगों को विशेष सुविधा मिलती है, जबकि सामान्य भारतीयों को जेल जाने समेत तमाम तरह की कठिनाइयां झेलनी पड़ती हैं.
खबर पर भरोसा करें तो दवे ने साफ शब्दों में कहा कि- गोस्वामी की याचिका की तत्काल लिस्टिंग आधिकारिक शक्तियों का पूरा-पूरा दुरुपयोग है. यदि कोई व्यक्ति अभिव्यक्ति की मर्यादा लांघता है, तो यकीनन उसके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई होनी चाहिए, लेकिन साथ ही कुछ अन्य तथ्यात्मक सवालों के जवाब भी तलाशे जाने चाहिएं!