भारत-नेपाल के रिश्तों से बेचैन होता चीन, शोभना जैन का ब्लॉग
By शोभना जैन | Published: December 5, 2020 12:26 PM2020-12-05T12:26:15+5:302020-12-05T12:28:01+5:30
विदेश मंत्नी डॉ. एस. जयशंकर ने भी हाल में कहा, ‘एक समय था जब कि दोनों देशों के बीच मसले थे लेकिन जैसा कि पिछले कुछ हफ्तों के घटनाक्रम से जाहिर है कि भारत और नेपाल दोनों ने ही आगे बढ़ने का फैसला किया और दोनों ही देश यह चाहते हैं.’
भारत और नेपाल के बीच सीमा विवाद को लेकर पिछले कुछ समय के तनावपूर्ण दौर के बाद आखिरकार हाल के हफ्तों में दोनों देशों ने आपसी सहमति से विवादों को सुलझाने के साथ-साथ रिश्तों को पूर्ववत पटरी पर लाने के लिए कदम उठाने शुरू कर दिए.
विदेश मंत्नी डॉ. एस. जयशंकर ने भी हाल में कहा, ‘एक समय था जब कि दोनों देशों के बीच मसले थे लेकिन जैसा कि पिछले कुछ हफ्तों के घटनाक्रम से जाहिर है कि भारत और नेपाल दोनों ने ही आगे बढ़ने का फैसला किया और दोनों ही देश यह चाहते हैं.’
निश्चित तौर पर दोनों देशों के बीच आपसी सहमति से, खास तौर पर नेपाल सरकार की तरफ से भारत के साथ अपने कूटनीतिक और राजनीतिक रिश्तों को सुधारने की लगातार कोशिश ने चीन को बेचैन कर दिया है और उसने भारत के इन उच्चस्तरीय अहम दौरों से बेचैन होकर ताबड़तोड़ न केवल अपने रक्षा मंत्नी को नेपाल भेजा बल्कि नौ घंटे की अति संक्षिप्त नेपाल यात्ना के अगले पड़ाव में उसी दिन पाकिस्तान भी भेज दिया जहां उन्होंने पाकिस्तान के साथ एक नया रक्षा सहयोग समझौता भी कर डाला.
नेपाल की बात करें तो जाहिर है चीन की उसके साथ नजदीकियां दिखाने का मकसद एक ‘खास एजेंडे’ के साथ भारत को नजर में रखते हुए यह संदेश देना भी था- ‘हम आपके खास हैं, आप के साथ मजबूती से खड़े हैं.’ काठमांडू में चीन के रक्षा मंत्नी वेई फेंगही ने निहायत ही खैरख्वाह होने के अंदाज में कहा- ‘चीन राष्ट्रीय स्वतंत्नता, प्रभुसत्ता और क्षेत्नीय अखंडता की रक्षा करने के लिए नेपाल का दृढ़ता से समर्थन करता है.’ वेई ने नेपाल के साथ रक्षा क्षेत्न में सहयोग बढ़ाने के साथ रिश्तों को नए आयाम तक पहुंचाने की बात कही.
वैसे वेई चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बेहद खास माने जाते हैं. वे चीन के स्टेट काउंसलर, कम्युनिस्ट पार्टी केंद्रीय समिति के सदस्य हैं और राष्ट्रपति शी की अध्यक्षता वाले केंद्रीय सैन्य आयोग में एक प्रमुख व्यक्ति हैं. यह भी माना जा रहा है कि वे जिनपिंग का कोई अहम संदेश लेकर नेपाल पहुंचे हैं, जो क्षेत्न से संबंधित ही होगा.
बहरहाल, गत अक्तूबर में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की नेपाल यात्ना के बाद यह चीन की तरफ से नेपाल आने वाला पहला शीर्ष स्तरीय प्रतिनिधि मंडल रहा. साफ है कि चीन भारत के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने की नेपाल की पहल से बेचैन हो उठा है. उसकी चिंता है कि नेपाल पर उसका शिकंजा कहीं ढीला पड़ना न शुरू हो जाए.
दूसरी तरफ उसकी साजिश यह भी है कि एलएसी पर भारत के साथ पिछले आठ माह से चल रहे सैन्य गतिरोध को वह खींचे रखे. भारत-चीन के बीच आठ दौर की बातचीत के बाद भी जमीन पर कुछ बदलाव होता नजर नहीं आ रहा है. एक रक्षा विशेषज्ञ के अनुसार, ‘इस क्षेत्न में एलएसी में तैनात भारतीय सेना की माउंटेन स्ट्राइक कोर से चीन खासा सहमा हुआ है.
वह पहाड़ी क्षेत्न में नेपाली गोरखाओं की ताकत से भी परिचित है. ऐसे में उसकी चाल इन गोरखाओं को अपनी सेना में शामिल करने की हो सकती है. वेई के खास एजेंडे का एक पहलू यह भी हो सकता है.’ बहरहाल अभी इन खबरों की पुष्टि नहीं हो पाई है, लेकिन लगता नहीं है नेपाल ऐसे प्रस्ताव पर फिलहाल कोई तवज्जो देगा.
भारत के साथ करीब एक साल तक चले सीमा विवाद और संवादहीनता को तोड़ते हुए नेपाल के प्रधानमंत्नी के.पी. शर्मा ओली ने पिछले माह ही भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ प्रमुख सामंत गोयल को बुलाकर बातचीत की थी. उसके फौरन बाद भारतीय सेनाध्यक्ष जनरल एम.एम. नरवणो नेपाल में तीन दिन के अहम दौरे पर वहां पहुंचे और फिर पिछले सप्ताह ही 26 और 27 नवंबर को भारतीय विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला की दो दिवसीय नेपाल यात्ना हुई, जिनमें हुई मंत्नणाओं को खासा सफल माना गया.
विदेश सचिव के साथ मंत्नणा में नेपाल द्वारा सीमा विवाद मुद्दा उठाए जाने पर दोनों पक्षों ने खुल कर अपने पक्ष रखे और उचित उभयपक्षीय प्रणाली के माध्यम से वार्ता किए जाने के उपायों पर चर्चा की. बातचीत के इस सिलसिले को जारी रखने की इसी कड़ी में समझा जाता है कि दिसंबर के दूसरे हफ्ते में नेपाल के विदेश मंत्नी प्रदीप ज्ञवाली भारत-नेपाल संयुक्त आयोग की बैठक में हिस्सा लेने दिल्ली आएंगे.
जाहिर है नेपाल के साथ अपने ‘खास एजेंडे’ के तहत नजदीकियां बढ़ाने में जुटे चीन को भारत के इन दौरों ने बेचैन कर दिया. वेई फेंगही के दौरे के बाद अब संकेत हैं कि चीन की तरफ से 10 दिन में दो और अहम मंत्रियों का नेपाल दौरा होने जा रहा है. निश्चय ही मौजूदा दौर में नेपाल भी इस क्षेत्न के अनेक देशों की तरह अपना हित देखते हुए चीन से विकास सहायता लेते हुए अपनी स्वतंत्न पहचान भी बनाए रखना चाहता है. ये देश चीन से मदद लेते हुए भी एवज में उसके खास एजेंडा वाले परिणामों को समझ कर साथ लेते हुए भी सतर्कता बरतने की कोशिश करते हैं.
इसके विपरीत भारत की एक उदार, भरोसेमंद, लोकतांत्रिक पड़ोसी देश की छवि है. चीन तथा नेपाल में सक्रिय कुछ भारत विरोधी ताकतों के बावजूद नेपाली जनता कुल मिलाकर भारत के सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से बहुत नजदीक है.
निश्चय ही नेपाल के सम्मुख एक तरफ रोटी-बेटी के रिश्तों वाली साझी संस्कृति और प्रगाढ़ संबंधों वाला भारत है, जो उसके विकास कार्यक्र मों में बहुत बड़ा भागीदार है. विदेश सचिव ने भी पिछले हफ्ते की नेपाल यात्ना के दौरान नेपाल को भारत की ‘पड़ोसी सबसे पहले की नीति’ के ‘मूल’ वाला देश बताया. उम्मीद है कि चीन के निहित स्वार्थो और विस्तारवादी एजेंडा व तमाम नजदीकी बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद भारत और नेपाल के रिश्ते सहजता की ओर आगे बढ़ेंगे.