नवीन जैन का ब्लॉग: नेहरूजी बच्चों में ही देखते थे देश का भविष्य

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: November 14, 2019 09:42 AM2019-11-14T09:42:26+5:302019-11-14T09:42:26+5:30

कभी 20 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल दिवस मनाया जाता था. यह तब की बात है, जब संयुक्त राष्ट्र के घोषणा पत्र पर 191 देशों ने दस्तखत किए थे, लेकिन जब नेहरूजी का निधन हुआ तो उनके जन्मदिन को ही भारत में बाल-दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.

Children Day: Jawaharlal Nehru see the future of the country only among the children | नवीन जैन का ब्लॉग: नेहरूजी बच्चों में ही देखते थे देश का भविष्य

नवीन जैन का ब्लॉग: नेहरूजी बच्चों में ही देखते थे देश का भविष्य

आज  14 नवंबर है, बाल-दिवस.  भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू की स्मृति में श्रद्घांजलि के तौर पर यह दिन मनाया जाता है. चाचा नेहरू आधुनिक भारत का भविष्य बच्चों की आंखों में ही देखा करते थे. इसीलिए उनका जन्मदिन आधुनिक भारत के अनुस्मारक दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन भविष्य में भी बच्चों के सुघड़ भविष्य के लिए समाज को प्रेरित करता रहेगा. पंडित नेहरू देश निर्माता ही नहीं, युगद्रष्टा, स्वप्नदर्शी भी थे. वे बच्चों के व्यक्तित्व का निर्माण समय के अनुसार और मूल मानवीय सिद्घांतों के आधार पर ही करना चाहते थे.

वैसे, कभी 20 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाल दिवस मनाया जाता था. यह तब की बात है, जब संयुक्त राष्ट्र के घोषणा पत्र पर 191 देशों ने दस्तखत किए थे, लेकिन जब नेहरूजी का निधन हुआ तो उनके जन्मदिन को ही भारत में बाल-दिवस के रूप में मनाया जाने लगा.

चाचा नेहरू का संदेश था कि बच्चों को बिना किसी भेदभाव पूरी सुरक्षा, समान अवसर, प्रेमपूर्ण, पर्याप्त और अनुकरणीय अवसर दिए जाएं, ताकि उनकी व्यक्तिगत उन्नति तो हो ही सके, राष्ट्र निर्माण में भी उनका भरपूर योगदान हो. बाल-दिवस पर जश्न की बात ठीक है, मगर नेहरू की खास और सबसे बड़ी इच्छा यह थी कि बच्चों को मानवीय मूल्यों से संस्कारित किया जाए, ताकि उनका पूरा कल्याण हो. कोई भी बच्चा उसकी भाषा से नहीं संस्कारों से जाना जाता है. यदि कोई बच्चा गलती से भी कोई असभ्य आचरण कर बैठता है तो फब्तियां कसी जाती हैं और कहा जाता है कि कैसे संस्कार पड़े हैं आप में. चाचा नेहरू सबसे पहले शिष्टाचार पर जोर देते थे. शिष्टाचार संस्कारों से आते हैं, जो बचपन में डाले जाते हैं. इन्हें कॉपी-कलम देकर कदापि नहीं सिखाया जा सकता, बल्कि खुद के आचरण से इसकी सीख दी जा सकती है. दरअसल, संस्कार खाद की तरह होते हैं. अनेक शोधों में पाया गया है कि बच्चे वह नहीं सीखते जो आप उन्हें सिखाते हैं, बल्कि उसका अनुसरण करते हैं, जैसा आचरण या सकारात्मक दृष्टिकोण आप रखते हैं.

चाचा नेहरू का हरदम मानना रहा कि छोटे-छोटे काम खुद करने से ही आत्मनिर्भर व्यक्तित्व का गठन होता है. एक बार उनके पिता पंडित मोतीलाल नेहरू ने उन्हें जूतों की पॉलिश करते देख लिया. उन्होंने  कहा कि ऐसे छोटे-छोटे काम तो तुम नौकर से भी करा सकते हो. नेहरूजी ने पूरी नम्रता से जवाब दिया कि मेरा मानना है कि छोटे-छोटे कामों को करने से ही आत्मनिर्भरता आती है.  

भोपाल में एक सर्वे में बच्चों ने मनोविश्लेषकों को बताया कि हमारी समस्याएं सुलझाना तो दूर, उन्हें सुनने का समय ही अकसर हमारे माता-पिता के पास नहीं रहता.  अभिभावकों को चाचा नेहरू का यह संदेश हरदम मानना चाहिए कि घर ही बच्चे का सबसे पहला स्कूल होता है.

Web Title: Children Day: Jawaharlal Nehru see the future of the country only among the children

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