Child Marriage Free India Campaign: बाल विवाह की चुनौती अभी समाप्त नहीं हुई?
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: November 29, 2024 05:26 AM2024-11-29T05:26:20+5:302024-11-29T05:26:20+5:30
Child Marriage Free India Campaign: बाल विवाह की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है. सरकार का लक्ष्य 2029 तक बाल विवाह की दर को 5 प्रतिशत से नीचे लाना है.
Child Marriage Free India Campaign: बाल विवाह मुक्त भारत अभियान का शुभारंभ करते हुए केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने कहा कि बाल विवाह हमारे सामने एक बड़ी चुनौती है. भारत के कई हिस्सों में बाल विवाह की प्रथा अभी भी बड़े पैमाने पर व्याप्त है. सरकार के इस अभियान का मुख्य फोकस पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, राजस्थान, त्रिपुरा, असम और आंध्र प्रदेश पर होगा. दरअसल, यहां बाल विवाह की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है. सरकार का लक्ष्य 2029 तक बाल विवाह की दर को 5 प्रतिशत से नीचे लाना है.
बालविवाह यह एक ऐसी प्रथा है जो लाखों लड़कियों की क्षमता को सीमित करती है. बाल विवाह मानवाधिकार उल्लंघन है और कानून के तहत एक अपराध भी. पिछले एक वर्ष में करीब दो लाख बाल विवाह रोके गए, इसके बावजूद भारत में पांच में से एक लड़की की शादी कानूनी आयु 18 वर्ष तक पहुंचने से पहले ही हो जाती है. देश को इस बुराई से पूरी तरह मुक्त करना होगा.
बाल विवाह बच्चों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है जिससे उनपर हिंसा, शोषण और यौन शोषण का खतरा बना रहता है. बाल विवाह लड़कियों और लड़कों दोनों पर असर डालता है, लेकिन इसका प्रभाव लड़कियों पर अधिक पड़ता है. जब बच्चों की कम उम्र में शादी कर दी जाती है, तो इससे उनके सपने टूट जाते हैं, जीवन भर के लिए स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा हो जाती हैं, वे पढ़ाई से वंचित रह जाते हैं और उनकी क्षमताएं खत्म हो जाती हैं. लड़कियों को अक्सर घर के कामों को लगा दिया जाता है, उन पर परिवार की देखभाल करने का दबाव डाला जाता.
शिक्षा की कमी के कारण लड़कियां आर्थिक रूप से अपने पतियों पर निर्भर हो जाती हैं और वे गरीबी के चक्र में फंस जाती हैं. जब लड़कियों की शादी होती है, तो उन पर जल्द से जल्द बच्चे पैदा करने का दबाव होता है. लेकिन उनका शरीर और दिमाग अभी गर्भधारण के लिए तैयार नहीं होता है. जिन लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हो जाती है, उनके पतियों द्वारा शारीरिक, यौन और भावनात्मक दुर्व्यवहार का शिकार होने की आशंका अधिक होती है. कई बार शिक्षा के अभाव के कारण माता-पिता बाल विवाह के दुष्परिणामों के प्रति जागरूक नहीं हो पाते हैं और अपने बच्चों का विवाह कम उम्र में ही कर देते हैं.
छोटी उम्र और शिक्षा के अभाव के कारण ही बाल विवाह के शिकार बच्चे भी इसका विरोध करने की स्थिति में नहीं रहते. साथ ही इन्हें बाल विवाह संबंधी नियम-कानूनों की भी जानकारी नहीं रहती. हमारे देश में गरीबी भी बाल विवाह का एक प्रमुख कारण है. गरीबी और दहेज जैसी कुप्रथा अभी समाप्त नहीं हुई है.
इसके कारण माता-पिता लड़कियों को बोझ समझने लगते हैं और इस प्रयास में रहते हैं कि जल्द से जल्द उनका विवाह करके अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हो जाएं. हमारे समाज में एक उम्र की सीमा पार करते ही लड़कियों पर विवाह न करने को लेकर सवाल उठने लगते हैं, भले ही वह उस समय शिक्षा ही क्यों न ग्रहण कर रही हो.
ऐसे में कई बार माता-पिता सामाजिक दबाव के कारण भी अपनी बेटियों का विवाह कम उम्र में ही कर देते हैं. वैसे, इस दबाव के शिकार लड़के भी होते हैं. बाल विवाह का अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और यह पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को गरीबी की ओर धकेलता है.
बाल विवाह के खिलाफ वकालत और अभियान चलाने के लिए युवाओं को सशक्त बनाना होगा. बाल विवाह रोकथाम अधिनियम जैसे कानून अपना काम कर रहे हैं, लेकिन हमें जागरूकता बढ़ाने पर भी ध्यान देना चाहिए.