एन. के. सिंह का ब्लॉग: यूपी में अच्छे शासन के सभी मानदंडों की उड़ती धज्जियां
By एनके सिंह | Published: December 5, 2018 07:49 AM2018-12-05T07:49:09+5:302018-12-05T07:49:09+5:30
उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ जैसे कि 2014 में देश में हुआ था।
गोकशी की अफवाह के चलते अराजक भीड़ ने बुलंदशहर में एक पुलिस इंस्पेक्टर की हत्या कर दी जबकि एक सिपाही जख्मी है। ऐसी ही भीड़ ने कुछ दिनों पहले दिल्ली से सटे गौतमबुद्धनगर के बिसहरा गांव में अखलाक को इसी अफवाह के चलते मार दिया था। उधर कुछ माह पहले उत्तर प्रदेश पुलिस के एक सिपाही ने तथाकथित चेकिंग के दौरान प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक मल्टीनेशनल कंपनी के मैनेजर को गोली मार दी थी। बुलंदशहर की घटना में आरोप है कि इंस्पेक्टर के साथी हमला देख कर भाग खड़े हुए जबकि लखनऊ की घटना में उस सिपाही की उस आपराधिक कृत्य पर कार्रवाई के खिलाफ पुलिस का सामूहिक दबाव देखने में आया। अगर ट्रेनिंग सही होती तो स्थिति उल्टी होती।
उत्तर प्रदेश में 2017 के चुनाव के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ जैसे कि 2014 में देश में हुआ था। शुरू में लगा कि एक बेबाक ‘गेरुआ संत’ का नेतृत्व भले ही विचारधारा के प्रति अटूट प्रतिबद्धता रखता हो, गवर्नेस में आने के बाद कल्याणकारी राज्य के मूल्यों के प्रति अपनी श्रद्धा को सभी प्राथमिकताओं से ऊपर रखेगा। लेकिन या तो योगी के रूप में मुख्यमंत्नी सक्षम नहीं हैं या उनकी क्षमता पर ‘अन्य ताकतों’ ने ग्रहण लगा दिया है। \
कहते हैं चावल का एक दाना देखने से ही पूरे भात के पकने का जायजा लिया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में आज योगी शासन के एक साल के बाद शासन की स्थिति देखने के लिए कुछ घटनाएं और उनके विश्लेषण काफी हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जब एक सिपाही कार में जा रहे दो लोगों में से एक को तथाकथित चेकिंग के दौरान सीधे गोली मार देता है और जब मीडिया और समाज इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं तो प्रजातंत्न के मूल सिद्धांत -सामूहिक दबाव- का इस्तेमाल करते हुए पुलिस सामूहिक रूप से विरोध करती है, शायद यह बताने के लिए कि ‘बंदूक है तो चलेगी ही’, मरना तो उस युवा की किस्मत की बात है। सीतापुर में जब कुछ गुंडे एक महिला को बलात्कार का शिकार बनाना चाहते हैं और वह थाने में शिकायत करती है तो थानेदार के कान पर जूं भी नहीं रेंगती। उन गुंडों को यह नागवार गुजरता है और इसे महिला की ‘हिमाकत’ मानते हुए वे नाराज हो जाते हैं। इधर यह पीड़ित महिला मोदी-योगी और भाजपा के ‘नारी सम्मान’ के हर दिन के दावे पर भरोसा करते हुए जब दुबारा थाने जा कर पूछना चाहती है तो रास्ते में ही ये गुंडे उसे घेर कर जला देते हैं।
अभी भी समय है। अगर प्रदेशों में भाजपा की सरकारें भावनात्मक मुद्दे पर ध्यान देने के बजाय पक्षपात-शून्य ‘गवर्नेस’ पर लग जाएं तो न तो बुलंदशहर में कोई पुलिस इंस्पेक्टर मारा जाएगा न ही लखनऊ में कोई कार-यात्नी गुस्से में आपा खोये किसी सिपाही की गोली का शिकार होगा।