पंकज चतुर्वेदी ब्लॉग: किशोरों के लिए ठोस नीति के अभाव का नतीजा है साक्षी की पाशविक हत्या

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 10, 2023 03:03 PM2023-06-10T15:03:35+5:302023-06-10T15:07:13+5:30

राजधानी दिल्ली में शाहबाद डेयरी इलाके में एक नाबालिग बच्ची की सरेआम चाकू मार कर हत्या कर दी गई और उसकी हत्या करने वाला और कोई नहीं उसका अपना दोस्त था।

Brutal murder of Sakshi is the result of lack of concrete policy for juveniles | पंकज चतुर्वेदी ब्लॉग: किशोरों के लिए ठोस नीति के अभाव का नतीजा है साक्षी की पाशविक हत्या

फाइल फोटो

जब एक 16 साल की लड़की को पाशविकता से मार दिया गया तो देश, समाज, धर्म, सरकार सभी को याद आई कि दिल्ली में रोहिणी के आगे कोई शाहबाद डेयरी नामक बस्ती भी है।

महज जीने की लालसा लिए दूरदराज के इलाकों से सैकड़ों किलोमीटर पलायन कर आए मजदूर-मेहनतकश बहुल झुग्गी इलाका है। यह यहां रहने वाली आबादी को साफ पानी नहीं मिलता है, गंदे नाले, टूटी-फूटी सड़कों की भीषण समस्या तो है ही, एक इंसान होने के अस्तित्व की तलाश यहां किसी गुम अंधेरे में खो जाती है। 

चूंकि साक्षी की हत्या दूसरे धर्म को मानने वाले ने की थी तो किसी के लिए यह धार्मिक साजिश है तो किसी के लिए पुलिस की असफलता तो किसी के लिए और कुछ एक सांसद पहुंच गए, कई विधायक, मंत्री गए, यथासंभव सरकारी फंड से पैसे दे आए।

दुर्भाग्य है कि नीतिनिर्धारक एक बच्ची की हत्या को एक अपराध और एक फांसी से अधिक नहीं देख रहे। मरने वाली 16 की और मारने वाला भी 20 वर्ष का। दिल्ली की एक तिहाई आबादी शाहबाद डेयरी जैसी नारकीय झुग्गियों में बसती है।

मेरठ, आगरा में कुल आबादी का 45 फीसदी ऐसे असहनीय पर्यावास में बसता है. अब देश का कोई कस्बा-शहर-महानगर बचा नहीं है जो पलायन-मजदूरी और मजबूरी के त्रिकोण के साथ ऐसी बस्तियों में न बस रहा हो।

 इस हत्याकांड के व्यापक पक्ष पर कोई प्रश्न नहीं उठा रहा- एक तो इस तरह की बस्तियों में पनप रहे अपराध और कुंठा और देश में किशोरों के लिए, खासकर निम्न आयवर्ग और कमजोर सामाजिक स्थिति के किशोरों के लिए किसी ठोस कार्यक्रम का अभाव।

सन् 2013 में अर्थात एक दशक पहले विभिन्न गंभीर अपराधों में किशोरों की बढ़ती संलिप्तता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिए थे कि हर थाने में किशोरों के लिए विशेष अधिकारी हो लेकिन देश में शायद ही इसका कहीं पालन हुआ हो. सवाल तो यह है कि किशोर या युवा अपराधों की तरफ जाएं न, इसके लिए हमारी क्या कोई ठोस नीति है?

रोजी-रोटी के लिए मजबूरी में शहरों में आए ये युवा फांसी पर चढ़ने के रास्ते क्यों बना लेते हैं? असल में किसी भी नीति में उन युवाओं का विचार है ही नहीं. वस्तुत: कुशल जन-बल के निर्माण के लिए निम्न आय वर्ग बस्तियों में रहने वाले किशोर वास्तव में ‘कच्चे माल’ की तरह हैं, जिसका मूल्यांकन कभी ठीक से किया ही नहीं गया।

जरूरत है ऐसी बस्तियों में नियमित काउंसलिंग, मनोवैज्ञानिक और स्वास्थ्य विमर्श की. किशोरों को स्वस्थ मन:स्थिति के लिए व्यस्त रखने वाली गतिविधियों की और इस ताकत को समाज और देश निर्माण के लिए परिवर्तित करने वाली गतिविधि, नीति और मार्गदर्शकों की।

Web Title: Brutal murder of Sakshi is the result of lack of concrete policy for juveniles

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