ब्लॉगः हालात ऐसे हों कि किसानों को कर्ज लेने की जरूरत न पड़े 

By विजय दर्डा | Published: December 24, 2018 07:21 AM2018-12-24T07:21:47+5:302018-12-24T07:21:47+5:30

महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी किसानों के कर्ज माफ हुए हैं लेकिन हालात सुधरते नजर नहीं आ रहे हैं.

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ब्लॉगः हालात ऐसे हों कि किसानों को कर्ज लेने की जरूरत न पड़े 

तीन राज्यों के चुनाव से पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जो वादा किया था, चुनाव जीतते ही उसे पूरा कर दिया. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में किसानों के कर्ज माफ कर दिए गए. कांग्रेस ने एक बार फिर साबित किया है कि किसानों की वास्तविक हितैषी वही है. किसानों के दुख-दर्द का कांग्रेस को पूरा इल्म है. राहुल गांधी ने यह घोषणा भी कर दी है कि 2019 में देश के सभी किसानों के कर्ज माफ कर दिए जाएंगे. कांग्रेस इससे पहले इस तरह का कदम 2008 में उठा चुकी है  जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हुआ करते थे. उन्होंने करीब 65 हजार करोड़ का कर्ज माफ किया था. महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में भी किसानों के कर्ज माफ हुए हैं लेकिन हालात सुधरते नजर नहीं आ रहे हैं.

ताजा आंकड़े बताते हैं कि इस समय देश भर के किसानों पर करीब 12 लाख 60 हजार करोड़ रुपए का सरकारी कर्ज है. कांग्रेस सत्ता में आई तो यह कर्ज भी माफ हो जाएगा लेकिन इससे किसानों को केवल फौरी तौर पर राहत मिलेगी. सवाल यह है कि क्या कर्जमाफी किसानों की समस्याओं का स्थायी निदान है? पिछले दो दशक के हालात हमें बताते हैं कि कर्जमाफी तो हो जाती है लेकिन किसानों की समस्याएं नहीं सुलझतीं. कभी सूखा पड़ता है तो कभी बाढ़ में फसल बर्बाद हो जाती है. जो फसल वे उपजाते हैं, उसका उचित मूल्य उन्हें नहीं मिलता है. किसान ज्यादातर घाटे में रहते हैं. इसलिए वे फिर कर्ज लेते हैं. इस तरह कर्ज के दलदल में फंसे रहते हैं. 

हकीकत यह है कि सरकारी कर्ज तो कभी-कभार माफ भी हो जाता है लेकिन जो कर्ज वे साहूकारों से लेते हैं, वह तो हमेशा बना ही रहता है. कर्ज का यह तनाव किसानों की जान का दुश्मन साबित होता है. तनाव असहनीय हो जाता है तो किसान आत्महत्या कर लेते हैं. उनका पूरा परिवार तबाह हो जाता है. किसानों की आत्महत्या के प्रकरण लगातार बढ़ रहे हैं. हाल के वर्षो में कितने किसानों ने आत्महत्या की है, यह सही-सही बता पाना बहुत मुश्किल है क्योंकि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का कोई ताजा आंकड़ा उपलब्ध ही नहीं है. ब्यूरो के अनुसार 1995 से 2014 के बीच पूरे देश में  2 लाख 96 हजार 438 किसानों ने आत्महत्या की, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि वास्तविक आंकड़े इससे कई गुना ज्यादा हो सकते हैं. 

किसानों की स्थिति को लेकर मैंने अपने 18 वर्ष के संसदीय कार्यकाल में कई बार संसद में यह मुद्दा उठाया और संभावित निदान पर भी चर्चा की. कुछ पर अमल हुआ लेकिन बहुत सारे सुझावों पर अमल नहीं हुआ. फुटकर उपायों से समस्या नहीं सुलङोगी. हर तरफ से प्रयास करने होंगे. मैंने हमेशा कहा है कि कृषि को जब तक उद्योग का दर्जा नहीं दिया जाता तब तक स्थितियां नहीं सुधरेंगी. एक उद्योग स्थापित करने के लिए सरकारें सस्ती दर पर जमीन देती हैं, बिजली देती हैं, अनुदान देती हैं, टैक्स में छूट देती हैं. कर्ज के माध्यम से पूंजी उपलब्ध कराती हैं लेकिन किसानों के लिए कुछ भी नहीं! हजारों हजार किसान आत्महत्या कर चुके हैं. किसानों पर जितना कर्ज है उतना ही कर्ज मुट्ठीभर उद्योगपतियों पर है. क्या किसी एक उद्योगपति ने कभी आत्महत्या की? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि केवल 2 प्रतिशत उद्योगपति पूरे देश का माल समेट रहे हैं और किसान छोटे-छोटे कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या कर रहे हैं. 

मैं महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके का रहने वाला हूं जहां सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है. मैं उनके दर्द को करीब से जानता हूं. राहुल गांधी किसानों की समस्याओं पर ध्यान दे रहे हैं इसलिए मैंने उन्हें एक विस्तृत पत्र भी लिखा है. उस पत्र में किसानों की समस्याओं के समाधान की पूरी योजना का जिक्र है. मेरा मानना है कि एमएस स्वामीनाथन कमेटी की रिपोर्ट को पूरी तरह अमल में लाया जाना चाहिए. यह बहुत जरूरी है कि भारत में सामूहिक खेती की शुरुआत की जाए. विकसित देशों में बहुत सारे किसान मिलकर जमीन का क्लस्टर तैयार करते हैं. इससे काफी सुविधा होती है.

 मेरी राय है कि छोटे और मध्यमवर्गीय किसानों को 1000 से 2000 रुपए प्रतिमाह की राशि दी जाए जिससे वे खेती कर सकें. इसमें से 25 या 50 प्रतिशत राशि राज्यों की सरकारें दें और शेष राशि केंद्र की ओर से मिले. यदि यह सहायता मिलेगी तो किसानों को कर्ज लेने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. इसके साथ ही सस्ती दर पर खाद और उत्तम बीज की व्यवस्था की जानी चाहिए. अभी तो बाजार में नकली खाद और खराब किस्म का बीज धड़ल्ले से बिक रहा है जिसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है. किसान जो उत्पादन करता है उसे रखने के लिए पर्याप्त गोदाम, कोल्ड स्टोरेज और विक्रय के लिए बाजार की व्यवस्था बहुत जरूरी है. सुनियोजित मार्केटिंग होनी चाहिए. जब मैं सुनता हूं कि हजारों टन अनाज बारिश में भीगने के कारण खराब हो जाता है तो रूह कांप जाती है.  

जिन इलाकों में प्रकृति की मार की वजह से फसल खराब हो, वहां किसानों को उचित मुआवजा भी मिलना चाहिए. यदि हम चौतरफा प्रयास करेंगे तभी देश के किसानों की हालत सुधरेगी. वास्तव में हमें ऐसी स्थिति पैदा करने की जरूरत है जहां हमारे किसानों को किसी से कर्ज लेने की जरूरत ही न पड़े. वे सुखी और संपन्न रहें. 

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