ब्लॉग: लंबा चलता मानसून कहीं राहत, तो कहीं बनता आफत
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: September 2, 2024 10:05 AM2024-09-02T10:05:02+5:302024-09-02T10:05:57+5:30
हाल के दिनों में गुजरात, राजस्थान और दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना अधिक बरसात का सामना कर रहे हैं. मौसम विभाग के वैज्ञानिकों के अनुसार ‘लो प्रेशर सिस्टम’ बनने की वजह से इस बार मानसून की वापसी देरी से होगी, जो सितंबर के अंत तक या उसके आगे भी जा सकती है.
भादों के मौसम में जैसी उम्मीद की जा रही थी कि मानसून का असर कम होगा और त्यौहारों की रौनक आएगी, लेकिन मौसम विभाग ने बता दिया है कि आने वाले दिनों में दक्षिणी प्रायद्वीप के अधिकांश क्षेत्रों और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य से अधिक वर्षा हो सकती है, जबकि उत्तर-पश्चिम और आस-पास के मध्य भारत के कई क्षेत्रों के साथ-साथ पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य से कम वर्षा भी होने का अनुमान है.
हाल के दिनों में गुजरात, राजस्थान और दक्षिणी राज्य आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना अधिक बरसात का सामना कर रहे हैं. मौसम विभाग के वैज्ञानिकों के अनुसार ‘लो प्रेशर सिस्टम’ बनने की वजह से इस बार मानसून की वापसी देरी से होगी, जो सितंबर के अंत तक या उसके आगे भी जा सकती है. ऐसे में गर्मियों में लगाई गई फसलों को नुकसान हो सकता है. चावल, कपास, सोयाबीन, मक्का और दालों को सितंबर के मध्य में काटा जाता है.
यदि वर्तमान की तरह बारिश होती रही तो कटाई मुश्किल होगी. वहीं दूसरी ओर सर्दियों में बोई जाने वाली गेहूं, चना जैसी अगली फसलों को लाभ पहुंच सकता है. उन्हें जमीन में नमी मिलेगी. वैसे इस साल मानसून का हाल बनता-बिगड़ता रहा. मौसम विभाग ने मई के अंत में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि देश में मानसून के चार महीने जून से सितंबर में सामान्य से अधिक बारिश हो सकती है, जो 106 फीसदी तक रहेगी. लेकिन देश के बड़े भाग में बरसात के मौसम की शुरुआत अच्छी नहीं रही.
मानसून की शुरुआत के बाद से देश में सामान्य से 20 फीसदी कम बारिश हुई, जिससे औसत से कम वर्षा का अनुमान लगाया जाने लगा. इस बीच, तूफानों ने बरसात के रुख को बदलने की कोशिश की, जिसका असर भी पड़ा. कुछ इलाकों में अधिक और कुछ इलाकों में कम बरसात हुई. किंतु अगस्त माह ने लगभग सभी स्थानों की कमी को पूरा कर दिया. इस बार कई स्थानों पर अचानक तेज और अधिक वर्षा देखी गई, जिससे बाढ़ आई.
देखते-देखते स्थितियां बिगड़ गईं. गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, केरल आदि में भारी बरसात के अनेक उदाहरण सामने आए. कुछ जगह बाढ़ के अलावा भूस्खलन भी हुआ. वायनाड में एक बड़ी त्रासदी देखने को मिली. कुल मिलाकर मौसम के बदलते रूप के नजारे खुलकर सामने आए, जिनमें से कुछ चौंकाने और कुछ जलवायु परिवर्तन का प्रमाण देने वाले थे. वैज्ञानिकों का मानना है कि वाष्पीकरण के बाद आकाशीय नदियों का असंतुलन अतिवृष्टि को जन्म दे रहा है, जिससे बचने के लिए पर्यावरण का संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता है. हाल के दिनों में तापमान का बढ़ना और उसके बाद बरसात का प्राकृतिक स्वरूप बदलना प्रकृति के साथ लगातार हो रही छेड़छाड़ के परिणाम माना जा रहा है. इसलिए अच्छी बरसात की अपेक्षा रखने के लिए आवश्यक यह भी है कि बेहतर मानसून की अपेक्षा के लिए पृथ्वी का संरक्षण भी किया जाए. जिससे राहत की उम्मीद में आफत का सामना न करना पड़े.