वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: डॉ. कोटनीस और नूर इनायत की याद, भारत की नई पीढ़ी को होना चाहिए अवगत
By वेद प्रताप वैदिक | Published: August 31, 2020 08:20 AM2020-08-31T08:20:41+5:302020-08-31T08:20:41+5:30
चीन में डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस और लंदन में नूरुन्निसा इनायत खान को भी उनके बलिदान के लिए बड़े प्रेम के साथ याद किया जा रहा है.
कमला हैरिस की वजह से अमेरिका में तो भारत का डंका बज ही रहा है, साथ-साथ यह भी खुश खबर है कि चीन में डॉ. द्वारकानाथ कोटनीस और लंदन में नूरुन्निसा इनायत खान को भी उनके बलिदान के लिए बड़े प्रेम के साथ याद किया जा रहा है. डॉ. कोटनीस की याद में एक कांस्य की प्रतिमा चीन में खड़ी की जा रही है और नूरुन्निसा (नूर) के सम्मान में लंदन में एक नीली तख्ती लगाई जा रही है. इन भारतीय पुरुष और महिला के योगदान से भारत की नई पीढ़ी को अवगत होना चाहिए.
डॉ. कोटनीस तथा अन्य चार भारतीय डॉक्टर 1938 में चीन गए थे. उन दिनों चीन पर जापान ने हमला कर दिया था. नेहरूजी और सुभाष बाबू ने चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अनुरोध पर इन डॉक्टरों को चीन भेजा था. डॉ. कोटनीस 28 साल के थे. वे सबसे पहले वुहान शहर पहुंचे थे, जो आजकल कोरोना के लिए बहुचर्चित है. वहां उन्होंने सैकड़ों चीनी मरीजों की जी-जान से सेवा की और एक चीनी नर्स गुओ क्विगलान के साथ शादी भी कर ली.
उनका एक बेटा हुआ, जिसका नाम उन्होंने रखा- यिन हुआ- अर्थात भारत-चीन. दिसंबर 1942 में उनका वहीं निधन हो गया. उनके आकस्मिक निधन पर माओत्से तुंग और सन यात सेन ने उन्हें अत्यंत भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी. चीन का जो भी राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री भारत आता है, वह पुणे-निवासी डॉ. कोटनीस के परिजनों से मिलता है.
जहां तक सुश्री नूर का सवाल है, उनके माता-पिता भारत के प्रतिष्ठित मुस्लिम थे. उनकी मां तो टीपू सुल्तान की रिश्तेदार थीं. नूर का जन्म मास्को में 1 जनवरी 1914 को हुआ. सितंबर 1919 से उनका परिवार लंदन में रहने लगा. 1920 में ये लोग फ्रांस में जा बसे. जब द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हुआ तो नूर का परिवार वापस लंदन चला गया. वहां नूर ने ब्रिटिश सेना में वायरलेस ऑपरेटर का पद ले लिया.
1943 में नूर को ब्रिटेन ने अपने गुप्तचर विभाग में नियुक्ति दे दी ताकि वह फ्रांस जाकर जर्मन नाजी सेना के विरुद्ध गुप्तचरी करें. नूर ने जबर्दस्त काम किया लेकिन नाजियों ने उन्हें गिरफ्तार करके 1944 में हत्या कर दी. नूर के अहसान को अंग्रेज लोग आज तक नहीं भूले हैं. भारत को भी अपनी बेटी पर गर्व है.