प्रमोद भार्गव का ब्लॉग: भारत में फेसबुक की निष्पक्षता पर उठा राजनीतिक विवाद
By प्रमोद भार्गव | Published: August 19, 2020 05:57 PM2020-08-19T17:57:34+5:302020-08-19T17:57:34+5:30
अमेरिका के दैनिक अखबार द वॉल स्ट्रीट जनरल ने फेसबुक की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं. अखबार के अनुसार, सोशल मीडिया कंपनी फेसबुक ने भाजपा नेताओं और कुछ समूहों के हेट स्पीच, मसलन नफरत फैलाने वाली पोस्टों के खिलाफ न तो कोई जान-बूझकर कार्रवाई और न ही उन्हें हटाया. भारत में फेसबुक से जुड़ी नीतियों की निदेशक आंखी दास ने भाजपा नेता एवं तेलंगाना से विधायक टी. राजा सिंह के खिलाफ हेट स्पीच नियमों को लागू करने का विरोध किया था. उन्हें डर था कि इससे फेसबुक से भाजपा के संबंधों में खटाई आ सकती है. नतीजतन कारोबार प्रभावित हो सकता है. हालांकि अखबार में कहा गया है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान फेसबुक ने दावा किया था कि उसने पाकिस्तानी सेना, भारतीय कांग्रेस और भाजपा से जुड़ी अप्रमाणिक खबरों को फेसबुक पेज से हटा दिया है. जबकि हकीकत यह है कि आपत्तिजनक कुछ खबरें अभी भी पड़ी हुई हैं.
इस खबर पर पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सांसद राहुल गांधी ने तुरंत कहा कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत में फेसबुक और वाट्सएप्प को नियंत्रित करते हैं और इनके जरिए फर्जी व नफरत फैलाने वाली खबरों को डालकर मतदाताओं को प्रभावित किया जाता है. आखिरकार अमेरिकी मीडिया फेसबुक को लेकर सच्चाई के साथ सामने आया है. राहुल के इस बयान पर केंद्रीय मंत्नी रविशंकर प्रसाद ने तंज कसा कि जो नेता अपनी ही पार्टी में लोगों को प्रभावित नहीं कर पाते, ऐसे हारे हुए दावा कर रहे हैं कि भाजपा और संघ दुनिया को नियंत्रित कर रहे हैं.
अलबत्ता इतना सही है कि भारत में फेसबुक की दुनिया में सबसे ज्यादा 28 करोड़ यूजर्स हैं और वह इन्हें प्रभावित करने की क्षमता रखता है. भारतीय उदारता के चलते अपने लाभ के लिए यूजर्स के डाटा का मनचाहा उपयोग करने के आरोप भी फेसबुक पर लगते रहे हैं. इसीलिए यूरोपीय महासंघ की सर्वोच्च अदालत ने फेसबुक और गूगल द्वारा यूरोप से अमेरिका को डाटा हस्तांतरित करने पर रोक लगाई हुई है. किंतु हमारे यहां जुकरबर्ग द्वारा सरकारी दस्तावेजों समेत प्रयोगकर्ताओं की सभी सूचनाएं, मसलन चित्न, वीडियो, अभिलेख, साहित्य जो भी बौद्धिक संपदा के रूप में उपलब्ध हैं, उन्हें किसी को भी हासिल कराने का अधिकार प्राप्त है. इन जानकारियों को कंपनियों को बेचकर फेसबुक खरबों की कमाई कर रहा है.
इन्हीं सूचनाओं को आधार बनाकर बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय बाजार को अपनी मुट्ठी में ले रही हैं. इसके अलावा हर एक खाते से फेसबुक को औसतन सालाना 10,000 रुपए की आमदनी होती है. फेसबुक के अलावा वाट्सएप्प पर भी 16 करोड़ से भी ज्यादा भारतीय ग्राहक हैं. किंतु ये भारत में आयकर और सेवाकर से मुक्त हैं. फिलहाल तो फेसबुक के पास भारत के आयकर विभाग का पेन नबंर भी नहीं है. दरअसल फेसबुक के पास कुकीज नामक ऐसी फाइलें होती हैं, जो इंटरनेट यूजरों पर निगाह रखती हैं कि एक यूजर किस वेबसाइट पर गया और उसने क्या सूचना दर्ज कराई और किस अन्य वेबसाइट को साझा की. ये फाइलें यह भी नजर रखती हैं कि किस पेज पर कितना समय यूजर ने किसके साथ बिताया. मसलन फेसबुक व्यक्तिगत व सामूहिक जासूसी का बड़ा माध्यम है. निगरानी की इसी वजह से बेल्जियम की एक अदालत ने फेसबुक पर 2.50 लाख यूरो का जुर्माना लगाया था. साथ ही फेसबुक को बाध्य किया था कि लोगों की सूचनाएं एकत्न करने के लिए फेसबुक को उपयोगकर्ता से अनुमति लेनी होगी.
जुकरबर्ग भारत के इंटरनेट और ई-बाजार पर कब्जा करना चाहते थे. इस नाते उनका इंटरनेट डॉट ओआरजी प्रोजेक्ट भारतीय दूरसंचार विनियामक आयोग के पास लंबित था. जिसे दो-टूक फैसला सुनाकर ट्राई ने नकार दिया था. जुकरबर्ग ने चालाकी बरतते हुए ट्राई को अपने पक्ष में ग्राहकों द्वारा वोट के जरिए प्रभावित करने की कोशिश भी की थी. ट्राई के पास फ्री बेसिक्स के पक्ष में ज्यादा वोट आए थे, जबकि नेट न्युट्रेलिटी के पक्ष में कम वोट थे. किंतु ट्राई ने फैसला वोट के सिद्धांत की बजाय जनता के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए किया, जो देशहित में रहा था. दरअसल ये अपने लाभ के लिए भारतीय हितों से किसी भी प्रकार का खिलवाड़ कर सकती हैं. वॉल स्ट्रीट में छपा समाचार भी इनकी प्रायोजित चाल का हिस्सा हो सकता है.