कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग- अयोध्या : भावी इतिहास की फिक्र करें

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 21, 2019 07:44 AM2019-10-21T07:44:19+5:302019-10-21T07:44:19+5:30

विवाद के न्यायिक फैसले को लेकर उत्सुकता बेहद स्वाभाविक है, लेकिन हमें नागरिक के तौर पर उसके राजनीतिक व सामाजिक असर को लेकर भी सचेत रहने की जरूरत है.

Blog of Krishna Pratap Singh - Ayodhya: Care about future history | कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग- अयोध्या : भावी इतिहास की फिक्र करें

कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग- अयोध्या : भावी इतिहास की फिक्र करें

गत 16 अक्तूबर को देश के सबसे बड़े न्यायालय ने देश के सबसे संवेदनशील रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुनवाई पूरी की तो वह उसके इतिहास की दूसरी सबसे लंबी चलने वाली सुनवाई बन चुकी थी. वह चल रही थी तो न्यायालय ने खुद के मध्यस्थता पैनल के नाकाम रहने के बावजूद पक्षकारों को आपसी सुलह-समझौते के प्रयास जारी रखने की छूट दे रखी थी. अलबत्ता, उनके प्रयासों के लिए सुनवाई रोकना गवारा नहीं किया.

अब, सुनवाई खत्म हो जाने के बाद भी पक्षों के बीच सुलह-समझौते के प्रस्तावों को लेकर आ रही खबरें यह जताने के लिए पर्याप्त हैं कि विवाद के ऊंट को इस या उस करवट बैठाने के लिए परदे के आगे-पीछे अभी भी बहुत कुछ चल रहा है.

विवाद के न्यायिक फैसले को लेकर उत्सुकता बेहद स्वाभाविक है, लेकिन हमें नागरिक के तौर पर उसके राजनीतिक व सामाजिक असर को लेकर भी सचेत रहने की जरूरत है.  इस बार एक अच्छी बात यह भी हुई है कि अयोध्या की पुलिस फैसले के बाद अमन-चैन बनाए रखने को लेकर समय रहते सचेत हो गई है.

उसके आला अधिकारी जिले के कस्बों व गांवों में चौपालों व गोष्ठियों में लोगों को समझा रहे हैं कि देश में कोई अदालत सर्वोच्च न्यायालय से बड़ा नहीं है. इसलिए उसका फैसला कुछ भी और किसी के भी पक्ष या विपक्ष में हो, सभी को उसका सम्मान करना है. वे यह हिदायतें भी दे रहे हैं कि इस सिलसिले में किसी भी शरारत को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.

इस सिलसिले में पुलिस की एक बड़ी सुविधा यह है कि जो जमातें कभी यह कहती थीं कि यह कानूनी नहीं, आस्था का विवाद है और इस कारण अदालतें इसका फैसला ही नहीं कर सकतीं, वे भी सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को मानने की बात कह रही हैं. विवाद के पक्षकार तो उसे न्यायालय ले ही इसीलिए गए हैं कि वह उसका निपटारा कर दे.

इस फैसले पर देश की ही नहीं, दुनिया भर की नजर रहेगी. वह न सिर्फ चुपचाप देखेगी, बल्कि अपने इतिहास में दर्ज करेगी कि भारत के बहुभाषी-बहुधर्मी समाज ने इस फैसले को किस तरह ग्रहण किया.  यकीनन, सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की इस घड़ी में हमारे सामने अपने भावी इतिहास की फिक्र करने का वक्त आ खड़ा हुआ है. यह जताने का भी कि तमाम असहमतियों के बावजूद हम अपनी संवैधानिक संस्थाओं और उनके फैसलों का कितना सम्मान करते हैं.  
 

Web Title: Blog of Krishna Pratap Singh - Ayodhya: Care about future history

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