डॉ. आशीष दुबे का ब्लॉग: राजनीतिक अवसरवाद कोविड के खिलाफ जंग को कर रहा कमजोर
By डॉ. आशीष दुबे | Published: May 10, 2021 11:05 AM2021-05-10T11:05:43+5:302021-05-10T11:05:43+5:30
कोरोना संकट के इस दौर में राजनीति भी जारी है. जबकि ये ऐसा समय है जब आरोप-प्रत्यारोप को दूर छोड़कर कोविड से कैसे निपटा जाए, इस पर ध्यान देने की जरूरत है.
पिछले दो माह से देश के हर राज्य, हर शहर व हर गांव में कोविड संक्रमण से हाहाकार मचा हुआ है. आम नागरिक से लेकर न्यायालय तक इसे लेकर चिंतित है. लोगों की जाने जा रही है. हर दिन लाखों लोग संक्रमण की चपेट में आ रहे है. हर एक कोने से ऑक्सीजन की कमी, बेड की कमी, जीवन रक्षक दवाइयों की कमी की गूंज सूनाई दे रही है.
राज्य सरकारें एक ओर कोविड संक्रमण से लड़ने के लिए मजबूत इरादे जता रही है. लॉकडाउन को लागू कर नागरिकों से कोविड प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए कह रही है. केंद्र सरकार राज्य सरकार व आम नागरिकों को हर संभव सहायता का भरोसा जता रही है. साथ ही कोविड के साथ जंग में कारगर हथियार बने टीकाकरण अभियान को तेज करने की बात कह रही है.
नागरिकों से अपील की जा रही है कि वे टीकाकरण केंद्रों में जाकर कोविड वैक्सीन लगवाएं. हालांकि इन सबके बीच कई राजनीतिक दल राजनीतिक अवसरवाद के शिकार हो गए है. कोविड संक्रमण से मचे हाहाकार के बीच अपने लिए वर्ष 2024 के भविष्य को तलाश रहे है. एक ओर वे मजबूती से कोविड के खिलाफ लड़ने का दावा कर रहे हैं, दूसरी ओर केंद्र सरकार पर लगातार आरोपों की झड़ी लगा रहे है.
यह साबित करने की पूरजोर कोशिश कर रहे है कि कोविड के खिलाफ जंग में केंद्र सरकार पूरी तरह से विफल साबित हो रही है. केंद्र सरकार ही कोविड संक्रमण की रफ्तार बढ़ने के पीछे जिम्मेदार है. केंद्र सरकार की विफलता की वजह से देशभर में बेड, ऑक्सीजन, जीवनरक्षक दवाइयों की किल्लत हो रही है. इनके अभाव में लोग मर रहे है.
राजनीतिक अवसर के शिकार कई राज्य है. इन राज्यों को बेहद आसानी से पहचाना जा सकता है. पहले इन राज्यों के कर्ताधर्ताओं ने लॉकडाउन का विरोध किया. फिर केंद्र से लॉकडाउन व अन्य फैसले लेने के लिए स्वायत्ता मांगी. पहली लहर के दौरान हालात सुधरे तो उसका श्रेय भी खुद लिया. कोविड वैक्सीन के खिलाफ सूर भी निकलने लगे.
एक पार्टी के प्रमुख ने यहां तक कह दिया था यह बीजेपी का टीका है. फरवरी माह से कोविड संक्रमण की दूसरी लहर का असर देखने को मिल रहा था. राजनीतिक अवसर का शिकार लोग फैसला लेने से कतरा रहे थे. इंतजार इस बात का कर रहे थे कि केंद्र सरकार ही लॉकडाउन की घोषणा कर दे. ताकि उन्हें लोगों की नाराजगी का शिकार नहीं होना पड़े. केंद्र पर ही सारा ठीकरा फोड़ दिया जाए.
इसी फेर में मार्च आते तक कोविड संक्रमण रौद्र रूप धारण करने लगा था. राज्यों में त्राही-त्राही मचना शुरू हो गई. जब तक राज्य कदम उठाते तब तक काफी देर हो गई थी. संक्रमण बेकाबू हो गया था. हालात दिन ब दिन बिगड़ते जा रहे थे. बावजूद इसके राजनीतिक अवसर की तलाश भी जारी रही. यह तलाश अब भी जा रही है.
आम लोगों को यही समझाने का प्रयास किया जा रहा है कि वे सही विकल्प है. मौजूदा केंद्र सरकार उनकी रक्षा करने में विफल साबित हो रही है. इस सरकार को उखाड़ फेंकना चाहिए. हालांकि वे इस बात को भूल रहे है कि देश की जनता समझदार है.
आपदा के बीच वे समझ रहे है कि आखिर उन्हें यह संकट क्यों झेलना पड़ा है. यही आज बेड नहीं है. ऑक्सीजन की किल्लत है. जीवनरक्षक दवाइयां कम पड़ रही है. इसके पीछे असल वजह क्या है. और कौन इसका दोषी है.
लिहाजा केंद्र व राज्य सरकारों के साथ ही सभी राजनीतिक दलों को राजनीतिक अवसर को त्याग कर देश के लोगों की जान बचाने पर अधिक ध्यान देना चाहिए. हालांकि अब तक जो हालात है उसमें यह संभव होता नजर नहीं आ रहा है.