ब्लॉगः विपक्ष के लिए विधानसभा चुनाव संजीवनी के समान
By राजेश बादल | Published: December 13, 2022 02:39 PM2022-12-13T14:39:14+5:302022-12-13T14:40:30+5:30
जिस दल को पिछले चुनाव में एक प्रतिशत मत भी नहीं मिले हों, उसे इस चुनाव में तेरह प्रतिशत वोट प्राप्त होना इसका सबूत है कि गुजरात में विपक्ष के दृष्टिकोण से सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है।
दो विधानसभाओं और अन्य राज्यों में हुए उपचुनाव यकीनन भारतीय लोकतंत्र में प्राणवायु का काम करेंगे। इनका असर अगले साल होने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा और फिर 2024 में लोकसभा निर्वाचन पर अवश्य दिखाई देगा। पिछले लोकसभा चुनाव के बाद पक्ष और प्रतिपक्ष के आकार में बड़ा फासला बन गया था। इससे मुल्क में लोकतांत्रिक असंतुलन पैदा हो गया था। कहा जाने लगा था कि पक्ष का कद इतना विराट हो गया है कि उसके सामने विपक्ष अत्यंत दुर्बल और बौना नजर आने लगा है। इससे अवाम के मसलों का स्वर मद्धम पड़ने का खतरा मंडराने लगता है। वह संसद या विधानसभाओं में जनता का पक्ष पुरजोर ढंग से नहीं उठा पाता। दूसरी ओर पक्ष के व्यवहार और सोच में अधिनायकवादी मानसिकता झलकने लगती है। वह महत्वपूर्ण मसलों पर विपक्ष को भरोसे में भी नहीं लेता और न ही सदन में चर्चा जरूरी समझता है। गुजरात में भारतीय जनता पार्टी और हिमाचल में कांग्रेस की जीत ने इस जनतांत्रिक असंतुलन को काफी हद तक संतुलित करने की संभावना जगाई है। कुछ राज्यों के उपचुनाव भी प्रतिपक्ष को ढाढ़स बंधाते नजर आते हैं।
हिमाचल में यूं तो हर चुनाव में पार्टी बदलने की परंपरा सी बन गई थी इसलिए कांग्रेस के लिए जीत का एक आधार सा बन गया था। इसके बाद प्रचार का नेतृत्व प्रियंका गांधी के हाथ में आया तो अपने हिमाचली अनुभवों का उन्होंने लाभ उठाया। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा का प्रदेश होने के कारण पार्टी ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था। हिमाचल में भाजपा सरकार को अपनी उपलब्धियों का खजाना रीता होने के कारण भी अनेक मुश्किलें आईं। केंद्र सरकार कहां तक उसका बचाव कर सकती थी? इस कारण यह परिणाम विपक्ष के रूप में कांग्रेस के लिए राहत भरा माना जा सकता है।
गुजरात में भी नतीजे अपेक्षित ही रहे। मोदी सरकार किसी भी कीमत पर इस राज्य में पराजय नहीं देख सकती थी। यदि ऐसा होता तो अगले चुनावों में पार्टी के मनोबल पर उल्टा असर पड़ता इसलिए उसने अंधाधुंध आक्रामक अभियान चलाया। सामने प्रतिपक्ष बंटा हुआ था। लिहाजा, मत भी विभाजित हो गए। इस नजरिये से गुजरात के परिणाम संतोषजनक कहे जा सकते हैं, पर इस प्रदेश ने भी विपक्ष को मजबूती प्रदान की है। एक नई क्षेत्रीय पार्टी को इस प्रदेश ने राष्ट्रीय पार्टी में बदल दिया और करीब तेरह फीसदी वोट आम आदमी पार्टी की झोली में डाल दिए। जिस दल को पिछले चुनाव में एक प्रतिशत मत भी नहीं मिले हों, उसे इस चुनाव में तेरह प्रतिशत वोट प्राप्त होना इसका सबूत है कि गुजरात में विपक्ष के दृष्टिकोण से सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है।