BJP-RSS News: आरएसएस को खुश करना चाहती है भाजपा!

By हरीश गुप्ता | Published: September 5, 2024 11:43 AM2024-09-05T11:43:56+5:302024-09-05T11:45:48+5:30

BJP-RSS News: आरएसएस ने लगभग 40 साल पहले कांग्रेस शासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को हटाने का आग्रह 2015 में सरकार से किया था.

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HighlightsBJP-RSS News: दुनिया के सबसे बड़े सामाजिक संगठन आरएसएस में शामिल होने की अनुमति दे दी.BJP-RSS News: आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान करना. BJP-RSS News: आरएसएस प्रमुख ने अपनी सुरक्षा को और बढ़ाने की कोई मांग नहीं की थी.

BJP-RSS News: भले ही यह अजीब लगे, लेकिन सच है. यह सामने आया है कि भाजपा नेतृत्व अपने मातृ संगठन आरएसएस को खुश करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा है. मोदी सरकार के दो हालिया फैसलों ने न केवल राजनीतिक पर्यवेक्षकों को बल्कि आरएसएस को भी हैरान कर दिया है. सरकार ने स्वप्रेरणा से लिए गए फैसले में सरकारी कर्मचारियों को दुनिया के सबसे बड़े सामाजिक संगठन आरएसएस में शामिल होने की अनुमति दे दी. इसमें कोई संदेह नहीं है कि आरएसएस ने लगभग 40 साल पहले कांग्रेस शासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को हटाने का आग्रह 2015 में सरकार से किया था.

आरएसएस ने 2015 के बाद से सरकार को कभी इसकी याद नहीं दिलाई, हालांकि दोनों एक-दूसरे को मजबूत करने के लिए मिलकर काम कर रहे थे. एक और फैसला जो अचानक आया, वह है आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत को उच्चतम स्तर की सुरक्षा प्रदान करना. आरएसएस प्रमुख ने अपनी सुरक्षा को और बढ़ाने की कोई मांग नहीं की थी.

लेकिन खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों की सिफारिशों के आधार पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बराबर सुरक्षा कवर को जेड प्लस स्तर का कर दिया. हालांकि जेपी नड्डा की जगह नए भाजपा प्रमुख की नियुक्ति के सवाल पर आरएसएस नरम पड़ने को तैयार नहीं है.

आरएसएस नेतृत्व ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अगला भाजपा प्रमुख उसके द्वारा सुझाया गया व्यक्ति होना चाहिए. प्रधानमंत्री सरकार के कामकाज को चलाने के लिए स्वतंत्र हैं और किसे मंत्रिमंडल में शामिल किया जाए, यह पूरी तरह से उनका विशेषाधिकार है. लेकिन जब बात भाजपा की आती है, तो उसे अपनी पसंद का व्यक्ति रखने की अनुमति दी जानी चाहिए.

समय की कमी के मुख्य कारण सहित अन्य कारणों से नए भाजपा प्रमुख पर आम सहमति नहीं बन पाई है. इस निर्णय को अगले साल की शुरुआत तक टाल दिया गया है और आरएसएस को उम्मीद है कि ‘पारिवारिक मामला’ सुलझ जाएगा.

हर आईएएस अधिकारी भाग्यशाली नहीं

जम्मू-कश्मीर सेवा के 2010 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ. शाह फैसल भाग्यशाली रहे कि आईएएस की नौकरी छोड़ने और एक बार ‘परिवर्तन की राजनीति’ से जुड़ने के बाद उन्हें फिर से सेवा में शामिल होने की अनुमति दी गई. यह एक दुर्लभ मामला था क्योंकि वे सरकार में वापस आ गए.

डॉ. शाह ने वीआरएस लिया और एक राजनीतिक पार्टी बनाई, दो साल बाद उन्होंने राजनीति छोड़ दी और सेवा में वापस आ गए. इस पर कुछ लोगों की भौंहें तन गईं, लेकिन मोटे तौर पर लोगों ने इसका स्वागत किया. अब एक और आईएएस अधिकारी को भी यही उम्मीद है. लेकिन लोकसभा चुनाव 2024 से ठीक पहले वीआरएस लेकर राजनीति में शामिल होने वाले यूपी कैडर के 2011 बैच के तेजतर्रार और मुखर आईएएस अधिकारी अभिषेक सिंह का इस्तीफा स्वीकार होने के बाद सेवा में वापस आना मुश्किल लग रहा है.

मॉडल और फिल्म अभिनेता अभिषेक सिंह ने अब केंद्र को आवेदन देकर सेवा में वापस लेने का अनुरोध किया है, लेकिन राज्य सरकार ने उन्हें वापस न लेने की सिफारिश की है. अंतिम फैसला केंद्र सरकार को लेना है. सूत्रों ने बताया कि अभिषेक सिंह की राजनीतिक सक्रियता के कारण भारत सरकार भी उनके नाम पर विचार करने को तैयार नहीं है.

सिंह ने अक्तूबर 2023 में नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने जौनपुर से भाजपा से लोकसभा का टिकट हासिल करने के लिए काफी प्रयास किए थे, लेकिन उनके प्रयास सफल नहीं हुए. जाति जनगणना और आरक्षण के लिए उनके समर्थन ने चीजों को और भी मुश्किल बना दिया है. उनकी पत्नी दुर्गा शक्ति नागपाल वर्तमान में लखीमपुर खीरी की डीएम हैं.

जब दुश्मन भी प्रशंसक बन जाता है!

यह सुनने में अजीब लग सकता है, लेकिन सच है. जब से कांग्रेस पार्टी ने 2024 के चुनावों में 99 लोकसभा सीटें जीती हैं और राहुल गांधी विपक्ष के नेता बने हैं, तब से उनके बारे में दुनिया का नजरिया काफी बदल गया है. यह स्पष्ट रूप से सामने आया है कि राहुल गांधी एजेंडा सेट कर रहे हैं और भाजपा को जाति जनगणना सहित उनके द्वारा उठाए गए कई मुख्य मुद्दों पर जवाब देने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

लेकिन चौंकाने वाली बात स्मृति ईरानी का पलटवार था, जो दशकों से उनकी धुर विरोधी रही हैं. 2019 के लोकसभा चुनावों में अमेठी में राहुल गांधी को हराने के बाद, ईरानी सातवें आसमान पर थीं. उन्होंने उनका नाम लेकर मजाक उड़ाया. लेकिन राहुल गांधी के सहयोगी किशोरी लाल शर्मा द्वारा अमेठी से अपमानजनक हार के बाद, वह अपना मंत्री के नाते मिला बंगला खाली करने के बाद लगभग गायब हो गईं.

अचानक वह परिदृश्य में आईं और राहुल गांधी के नए दृष्टिकोण की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्हें कम करके नहीं आंका जाना चाहिए. एक पॉडकास्ट में उन्होंने कहा कि राहुल अब ‘अलग तरह की राजनीति’ का प्रतिनिधित्व करते हैं. हालांकि, उन्होंने जल्दी से यह भी जोड़ दिया कि राहुल की रणनीति में बदलाव राजनीति से प्रेरित था.

हो सकता है कि यह ‘नरम हिंदुत्व’ में शामिल होने के उनके असफल प्रयासों से उपजा हो. लेकिन भाजपा नेतृत्व इस बात से खुश नहीं है कि ईरानी एक राजनीतिक भूमिका की तलाश कर रही हैं जो अब तक फलीभूत नहीं हुई है. एक और लोकप्रिय हरियाणवी गायक-संगीतकार जय भगवान मित्तल उर्फ रॉकी मित्तल ने भी अपना मन बदल लिया है.

कई सालों तक राहुल गांधी के कटु आलोचक रहे जय भगवान मित्तल ने सार्वजनिक रूप से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘माफ करना, राहुल मेरे भाई, मैं भाजपा नेतृत्व का अंधभक्त था, मैं लड़खड़ा गया. कृपया मुझे माफ कर दो.’’

आजाद के लिए आगे क्या?

गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस से राज्यसभा सीट न मिलने के बाद पार्टी छोड़ दी थी, जिससे उनका 45 साल पुराना साथ खत्म हो गया. उन्होंने जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस को खत्म करने के लिए डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी बनाई, जिसमें भाजपा ने मौन समर्थन दिया. लेकिन वे लोकसभा चुनावों में कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाए और अब उनकी पार्टी खस्ताहाल में है.

क्योंकि उनके साथ आए सभी लोग उनका साथ छोड़ चुके हैं. आजाद ने खुद विधानसभा चुनावों से नाम वापस ले लिया और अपने कदम पीछे खींच लिए. यहां तक कि भाजपा अब अन्य छोटी पार्टियों का समर्थन कर रही है और कथित तौर पर केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी के साथ राम माधव को प्रभारी बनाकर पीडीपी के साथ गठबंधन की संभावनाओं पर विचार कर रही है.

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