BJP-RSS: ‘तूफान’ गुजरने के बाद कायम हुआ सौहार्द्र!, आखिर क्या है कहानी

By हरीश गुप्ता | Updated: June 20, 2024 10:51 IST2024-06-20T10:49:33+5:302024-06-20T10:51:45+5:30

BJP-RSS: मोहन भागवत ने जेपी नड्डा द्वारा दिए गए इस असामान्य बयान का जवाब देने के लिए तीन सप्ताह से अधिक समय तक इंतजार किया.

BJP-RSS storm came 73 year long political journey RSS and political wing BJP now stopped blog harish gupta Harmony established after 'storm' passed! | BJP-RSS: ‘तूफान’ गुजरने के बाद कायम हुआ सौहार्द्र!, आखिर क्या है कहानी

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HighlightsBJP-RSS: नड्डा ने 21 मई, 2024 को लोकसभा चुनावों के दौरान यह बात कही. BJP-RSS: अब आरएसएस के समर्थन की जरूरत नहीं है. “हम अब सक्षम हैं.BJP-RSS: ‘स्वयंसेवक’ लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए देश पर शासन कर रहे हैं.

BJP-RSS: आरएसएस और उसकी राजनीतिक शाखा (भाजपा) की 73 साल लंबी राजनीतिक यात्रा में आया अब तूफान थम गया है. अक्तूबर 1951 में शुरू हुए इस रिश्ते ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के तहत अपना स्वर्णिम युग देखा, क्योंकि इसके ‘स्वयंसेवक’ लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए देश पर शासन कर रहे हैं. लेकिन इस सौहार्द्र में तब खटास दिखी जब भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा ने एक प्रमुख अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा कि पार्टी को अब आरएसएस के समर्थन की जरूरत नहीं है. “हम अब सक्षम हैं. पहले हमें उनके (आरएसएस के) समर्थन की जरूरत थी, लेकिन अब नहीं” नड्डा ने 21 मई, 2024 को लोकसभा चुनावों के दौरान यह बात कही. मोहन भागवत ने नड्डा द्वारा दिए गए इस असामान्य बयान का जवाब देने के लिए तीन सप्ताह से अधिक समय तक इंतजार किया.

उन्होंने 4 जून को भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जब भाजपा बहुमत से 32 सीटें पीछे रह गई और 11 जून 2024 को नागपुर में बोलने का फैसला किया. भागवत ने कहा, ‘‘एक सच्चा सेवक कभी अहंकार नहीं दिखाता और हमेशा सार्वजनिक जीवन में मर्यादा बनाए रखता है... जो व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए मर्यादा का पालन करता है, जो अपने काम पर गर्व करता है.

फिर भी अनासक्त रहता है, जो अहंकार से रहित है - ऐसा व्यक्ति वास्तव में सेवक कहलाने का हकदार है.’’ भागवत का संदेश जोरदार और स्पष्ट था. लेकिन जो लोग इस प्रकरण के लंबे समय तक जारी रहने की उम्मीद कर रहे थे, वे आश्चर्यचकित थे क्योंकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. भाजपा को एहसास हो गया कि आरएसएस के बिना वह ‘नई कांग्रेस’ बनकर रह जाएगी क्योंकि यह दलबदलुओं से भरी हुई है. मोदी को भी एहसास हुआ कि ‘संघ परिवार’ सर्वोच्च है न कि ‘मोदी का परिवार’.

भागवत की नागपुर में दी गई नसीहत के कुछ दिनों के भीतर, आरएसएस के तीन शीर्ष पदाधिकारियों ने मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर चर्चा करने के लिए नड्डा से मुलाकात की. इस बैठक को लेकर अभी तक कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है. लेकिन उम्मीद है कि नए भाजपा प्रमुख की नियुक्ति में आरएसएस की भूमिका बनी रहेगी और वफादार कार्यकर्ताओं का सरकार द्वारा ध्यान रखा जाएगा.

पी.के. मिश्रा के खुश होने की वजह

प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव पी.के. मिश्रा वस्तुतः एक चुपचाप काम करने वाले अधिकारी हैं. लेकिन गुजरात कैडर के इस आईएएस अधिकारी को मोदी ने मुख्यमंत्री रहते हुए पसंद किया था. मोदी को काम करने वाले लोगों को परखने की ईश्वर प्रदत्त क्षमता प्राप्त है. पी.के. मिश्रा ऐसे ही लोगों में से हैं. जब मोदी गुजरात में थे, तब भी उन्होंने शरद पवार को विशेष रूप से फोन करके मिश्रा को दिल्ली में अच्छी पोस्टिंग दिलाने का अनुरोध किया था. पवार, जो कृषि मंत्री थे, ने उनकी बात मान ली और उन्हें कृषि सचिव नियुक्त कर दिया, जो दिल्ली में प्रतिनियुक्ति पर थे.

जब मोदी प्रधानमंत्री बने, तो मिश्रा को पीएमओ में उप प्रधान सचिव बनाया गया. नृपेंद्र मिश्रा मोदी के प्रधान सचिव थे, जिन्होंने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले उन्हें राम मंदिर का तोहफा दिया. नृपेंद्र मिश्रा के बेटे को लोकसभा का टिकट दिया गया. यह अलग बात है कि वे हार गए. लेकिन ओडिशा के रहने वाले पी.के मिश्रा की राजनीतिक भूमिका भी रही है.

कहा जाता है कि आदिवासी नेता द्रौपदी मुर्मु को राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाने में उनकी भूमिका रही है. मुर्मु के चयन से न केवल ओडिशा बल्कि अन्य आदिवासी राज्यों में भी भाजपा को भरपूर लाभ हुआ. यह भी पता चला है कि मुर्मु ने केंद्रीय मंत्री बिश्वेश्वर टुडू की जगह प्रतिष्ठित मयूरभंज लोकसभा सीट से भाजपा के नाबा चरण माझी के चयन में भूमिका निभाई थी.

मुर्मु के कट्टर समर्थक माझी ने 1990 के दशक में उनके साथ काम किया था. पीके मिश्रा अक्सर उड़िया नौकरशाहों के साथ बातचीत करते थे और जमीन पर राजनीतिक स्थिति का आकलन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे और चुपचाप भाजपा के लिए ओडिशा जीतने में अपनी भूमिका निभाई.

अश्विनी वैष्णव का महत्व

मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल में 30 सदस्यीय मजबूत केंद्रीय मंत्रियों में से अश्विनी वैष्णव ही एकमात्र ऐसे मंत्री हैं जिन्हें तीन मंत्रालयों का प्रभार दिया गया है; रेलवे, आईटी और सूचना एवं प्रसारण. यहां तक कि चार बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके शिवराज सिंह चौहान को भी कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय दिए जाने पर पंचायती राज मंत्रालय से हाथ धोना पड़ा.

राज्यसभा के नेता पीयूष गोयल को भी लोकसभा में चुने जाने के बाद खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय से हाथ धोना पड़ा. उन्हें वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय से ही संतोष करना पड़ा. मोदी सरकार के एक और विश्वासपात्र भूपेंद्र यादव को श्रम एवं बेरोजगारी मंत्रालय से हाथ धोना पड़ा. डॉ. मनसुख मंडाविया और धर्मेंद्र प्रधान का भी कद घटा.

अश्विनी वैष्णव को तीन मंत्रालय मिलने के अलावा पार्टी के काम के लिए भी तैयार किया जा रहा है और वे किसी न किसी हिस्से में चुनाव की देखरेख में भूमिका निभा रहे हैं. पहले कयास लगाए जा रहे थे कि वैष्णव को वित्त मंत्रालय सौंपा जा सकता है. लेकिन निर्मला सीतारमण इसलिए बच गईं क्योंकि भाजपा को 300 से ज्यादा सीटें नहीं मिलीं और मोदी ने यथास्थिति बनाए रखने का फैसला किया.

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि वैष्णव पार्टी के घोषणापत्र के असली निर्माता थे, हालांकि घोषणापत्र समिति की अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की थी. घोषणापत्र जारी होने के बाद वैष्णव ने पार्टी के प्रमुख नेताओं के साथ वीडियो कॉन्फ्रेंस की और उन्हें घोषणापत्र की मुख्य विशेषताओं के बारे में जानकारी दी.

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