देश पुलवामा पर जवाब मांग रहा है, बीजेपी चुनावी गठबंधनों में लगी हुई है!
By विकास कुमार | Published: February 19, 2019 07:05 PM2019-02-19T19:05:49+5:302019-02-19T19:05:49+5:30
पुलवामा हमले के बाद राहुल गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ प्रेस कांफ्रेंस किया और पाकिस्तान के मोर्चे पर सरकार को हर संभव समर्थन की बात कही. लेकिन जब सरकार ने आल पार्टी मीटिंग बुलाई तो खुद पीएम मोदी नदारद रहे.
पुलवामा हमले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चिर-परिचित अंदाज में कहा था कि आतंकवादियों को सबक सिखाया जायेगा. लेकिन सबक सिखाने और कड़ी निंदा की पुरानी रिवायत के बाद केंद्र सरकार के मंत्री और खुद पीएम मोदी चुनावी समीकरणों को साधने में जूट गए. पहले शिवसेना और अब एआइएडीएमके से गठबंधन के बाद बीजेपी लोकसभा चुनाव से पहले अपने राजनीतिक जमीन को मजबूत कर लेना चाहती है. चुनावी तैयारियों में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन इसकी टाइमिंग पर सवाल उठाना लाजिमी है.
देश का विपक्ष पुलवामा हमले के बाद सरकार के साथ पूरी तरह से खड़ा रहा. राहुल गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ प्रेस कांफ्रेंस किया और पाकिस्तान के मोर्चे पर सरकार को हर संभव समर्थन की बात कही. लेकिन जब सरकार ने आल पार्टी मीटिंग बुलाई तो खुद पीएम मोदी नदारद रहे. जिस वक्त राजनाथ सिंह सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान के खिलाफ रणनीति बना रहे थे ठीक उसी वक्त पीएम मोदी महाराष्ट्र में लोगों को फिर से मोदी सरकार लाने की कसमें दिला रहे थे. देश गुस्से में है और आप राजनीतिक सत्ता को दुरुस्त करने में लगे हैं, प्रधान सेवक मोदी जी को यह आचरण शोभा नहीं देती.
पीएम मोदी की धुंआधार रैली
पुलवामा हमले में देश के 40 जवानों की शहादत के बाद सभी दलों ने अपने राजनीतिक इवेंट्स रद्द कर दिए थे. प्रियंका गांधी ने अपना प्रेस कांफ्रेंस रद्द करते हुए कहा था कि ये राजनीति करने का समय नहीं है. लेकिन आतंकवादी हमले के एक दिन बाद ही पीएम मोदी की झाँसी में रैली होती है, जहां वो पाकिस्तान को सबक सिखाने की बात कहते-कहते अपनी पार्टी के लिए वोट मांगने लगे. और अपने सरकार की उपलब्धियों का बखान करने लगे. नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने देश का इतना राजनीतिकरण कर दिया है कि हर चुनाव को एक धर्मयुद्ध की तरह लड़ा जाता है और देश की सारी नीतियां चुनावी बिसात को साधने के मकसद से प्रतीत होती हैं.
पीएम मोदी की छवि 'स्टैंड एंड डिलीवर' जैसी है
2016 में उरी हमले के ठीक 11 दिन बाद जिस तरह से मोदी सरकार ने सेना के जरिये पाकिस्तान को सबक सिखाया था उससे नरेन्द्र मोदी की छवि एक मजबूत नेता की बनी थी, पाकिस्तान पर जो कहते हैं वो करने की ताकत भी रखते हैं. ऐसा नहीं है कि नरेन्द्र मोदी के देश के प्रति कमिटमेंट पर शक किया जा सकता है लेकिन जिस तरह से लगातार चुनावी रैलियां हो रही हैं और समीकरण साधे जा रहे हैं उससे उनकी प्राथमिकताओं पर सवाल जरूर खड़ा होता है. पीएम मोदी ने सेना को अपनी तरह से कारवाई करने की खुली छूट दी है लेकिन कूटनीतिक स्तर पर सरकार कुछ ज्यादा करती हुई नहीं दिख रही है.
पुलवामा हमले के बाद देश गुस्से में है. सरकार से मांग की जा रही है कि पाकिस्तान को सभी मोर्चों पर सबक सिखाया जाये. मोदी सरकार अभी तक सिन्धु जल समझौते को लेकर कोई फैसला नहीं ले पायी है. लेकिन राजनीतिक फैसले बड़ी दृढ़ता से लिए जा रहे हैं. लेकिन चुनाव सामने हैं और देश की जनता पुलवामा पर सरकार से जवाब मांगेगी. और सरकार इस सवाल को बाकी सवालों की तरह टाल भी नहीं सकती है.