SC/ST Act पर ब्राह्मण-बनिया समुदाय नाराज, भाजपा सरकारों को चुकानी पड़ सकती है कीमत
By वेद प्रताप वैदिक | Published: September 6, 2018 07:53 AM2018-09-06T07:53:17+5:302018-09-06T07:53:17+5:30
अदालत ने दलित अत्याचार की शिकायत आने पर गिरफ्तारी के पहले कुछ सावधानियां बरतने का कानून बना दिया था। दलितों ने इसका विरोध किया। मोदी की सरकार ने कानून में संशोधन करके उसके सभी कठोर प्रावधानों को जस का तस लौटा लिया।
भाजपा आज बहुत बड़ी दुविधा में फंस गई है। जनसंघ और भाजपा का मुख्य जनाधार था- बनिया-ब्राह्मण जातियां। अब ये ही उसके विरुद्ध बंदूक ताने खड़ी हो गई हैं। इनके साथ राजपूत और लगभग सभी पिछड़ी जातियां भी जुड़ गई हैं।
ये सब मिलकर भाजपा सरकार को इसलिए कोस रहे हैं कि उसने सर्वोच्च न्यायालय के उस फैसले को उलट दिया है, जिसके तहत कानून में अनुसूचित जातियों और जनजातियों को दिए गए उस अधिकार पर अंकुश लगा दिया गया था जिससे उन पर अत्याचार होने पर किसी भी नागरिक को तत्काल गिरफ्तार किया जा सकता था।
अदालत ने दलित अत्याचार की शिकायत आने पर गिरफ्तारी के पहले कुछ सावधानियां बरतने का कानून बना दिया था। दलितों ने इसका विरोध किया। मोदी की सरकार ने कानून में संशोधन करके उसके सभी कठोर प्रावधानों को जस का तस लौटा लिया।
कांग्रेस समेत सभी विरोधी पार्टियों ने इस कानून का समर्थन कर दिया, क्योंकि सभी पार्टियां थोक वोटों की इच्छुक हैं। कोई भी पार्टी राष्ट्रहित को सर्वोपरि नहीं मानती। उनका अपना हित सर्वोपरि है।
सवर्ण आंदोलनकारी
अब मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में सवर्णों के आंदोलनकारियों ने भाजपा और कांग्रेस, दोनों को परेशानी में डाल दिया है। उन्होंने अपनी सभाएं और जुलूस स्थगित कर दिए हैं।
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का आरोप है कि ये प्रदर्शन कांग्रेस करवा रही है। शायद यह सच हो, क्योंकि असली नुकसान तो भाजपा का ही होना है। वह सत्तारूढ़ है। केंद्र की भाजपा सरकार ने ही अदालत की राय को उल्टा है।
उसके दुष्परिणाम अब राजस्थान, मप्र, उप्र और छत्तीसगढ़ की भाजपा सरकारें भुगतेंगी। कोई आश्चर्य नहीं कि देश के दलित और आदिवासी भाजपा के साथ हो जाएं लेकिन देश के बहुसंख्यक - सवर्ण, पिछड़े एवं अल्पसंख्यक विपक्ष के खेमे में खिसक जाएं।
यह जातिवादी राजनीति पता नहीं, क्या-क्या गुल खिलाएगी? अभी तो इसने भाजपा और कांग्रेस, दोनों को शीर्षासन करवा दिया है।